व्यापारियों के लिए सबक- वोटर बने रहें कोई नहीं लूटेगा

व्यापारियों के लिए दूसरा सबक यह है कि जब कोई सरकार से सवाल करे, तो उसका साथ दे। आज के दौर में सवाल करना आसान नहीं है।

New Delhi, Nov 12: जिन लोगों ने जीएसटी की तकलीफ़ों को लेकर आवाज़ मुखर की वो सही साबित हुए। व्यापारियों ने डर डर कर अपनी बात कही। उनके डर को हम जैसे कुछ लोगों ने आसान कर दिया। उसके बारे में लिखा और बोला कि जीएसटी बिजनेस को बर्बाद कर रही है। लोगों से काम छिन रहे हैं। जवाब मिलता रहा कि ये व्यापारी ही चोर हैं। चोरी की आदत पड़ी है इसलिए जीएसटी नहीं देना चाहते। क्या त्रासदी रही व्यापारियों की, जो लुट रहा था , वही चोर कहा जा रहा था। विपक्ष भी लंबे समय तक चुप रहा। बाद में राहुल गांधी ने इसे आक्रामकता से उठाया तो फिर से मज़ाक उड़ा कि राहुल को जीएसटी की समझ नहीं है। वे अमीरों और चोरों का साथ दे रहे हैं। अंत में सरकार को वही करना पड़ा जो पहले कर देना चाहिए था मगर अहंकार के बूते वह लंबे समय तक अनसुना करती रही। सोचिए अगर एक ही बार में लोकसभा और विधान सभा के चुनाव हो गए होते तो क्या व्यापारी वर्ग की आवाज़ सुनी जाती? बहुत कम मीडिया संस्थानों ने जीएसटी के दर्द को मुखरता से उभारा। बड़े व्यापारिक घराने और उद्योगपति भी डर से नहीं बोल पा रहे थे। जितनी तकलफ थी उस तादाद में गली गली में बने व्यापारिक संगठन भी नहीं बोल रहे थे। कराह रहे थे और नहीं चाह रहे थे कि कोई आह सुन ले।

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तकलीफ बताते थे मगर यह भी ताक़ीद कर देते थे कि प्लीज़ मेरा नाम मत लेना। मैंने भी जीएसटी को लेकर शो किया। इस पेज पर भी पोस्ट किया। जो ज़मीन पर दिखा, उसी को लिखा। व्यापारी बीजेपी के सही समर्थक माने जाते थे, अपने समर्थकों की पीड़ा को लिखना भी चोरों का साथ देना हो गया और एंटी मोदी हो गया। इस अभियान में प्रवक्ता से लेकर आई टी सेल के खलिहर सब शामिल थे। अब ये सब मूर्ख बने। मेरे ही पेज पर उन मूर्खों के सैंपल मिल जाएँगे। सरकार भी कई महीनों से अनसुना कर रही थी। छोटे मोटे बदलावों को लागू करती रही मगर मुख्य माँगों की तरफ ध्यान नहीं दिया। सब मान चुके हैं कि गुजरात में बीजेपी का विजय निश्चित है। उसमें कोई अगर मगर नहीं है। मैं भी मानता हूँ। फिर ऐसा क्या हुआ कि जो सरकार देश भर के व्यापारी वर्ग को नहीं सुन रही थी वो अचानक सुनने लगी? गुजरात चुनाव के बहाने ही सही डरे सहमे और बर्बाद हो रहे व्यापारी वर्ग को फायदा हुआ है। वैसे चुनाव आयोग की आचार संहिता का अचार पड़ गया है। अब इस संस्था को भूल ही जाना चाहिए। इतने बड़े पैमाने पर रेट कट हुए हैं।

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पहले आप चुनावों के दौरान पेट्रोल के दाम कम नहीं कर सकते थे। ख़ैर, हम सब संस्थाओं को ढहते हुए देख रहे हैं। एक दिन इसकी कीमत आप ही चुकाएंगे। व्यापारियों को सोचना चाहिए कि उन्हें डर क्यों लग रहा था? वे रो रहे थे मगर क्यों बोल नहीं पा रहे थे? ऐसा इसिलए हुआ क्योंकि वे समर्थक और भक्ति में ख़ुद को ढाल कर अपनी शक्ति गँवा चुके थे। वे भी लंबे समय तक इस खेल में शामिल थे कि जो भी सरकार पर सवाल करे, उसे गाली दो। उन्हें पता नहीं था कि वे क्या कर रहे हैं। वे गालियों में शामिल होकर लोकतंत्र में आवाज़ उठाने की स्पेस को ख़त्म कर रहे थे जिसका सबसे पहले और सबसे ज़्यादा नुकसान उन्हीं को उठाना पड़ा। छह महीने में कितना नुकसान हुआ होगा। उन्हें पता चल रहा था कि गोदी मीडिया उनका साथ नहीं देगा। आएगा तो सरकार की एजेंसियों के डर से वे बोलने के लायक भी नहीं रहे। सबक यही है कि आप ज़रूर एक पार्टी को पसंद करें, बार-बार वोट करें या किसी को एक बार भी करें तो भी आप मतदाता की हैसियत को बचाए रखिए। गुजरात चुनाव का भय नहीं होता तो उनकी मांगें कभी नहीं मानी जाती। जब तक वे मतदाता हैं, नागरिक हैं तभी तक उनके पास बोलने की शक्ति है।

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जैसे ही वे भक्त और समर्थक में बदलते हैं, शक्तिविहीन हो जाते हैं। तब असंतोष ज़ाहिर करने पर बाग़ी करार दिए जाएंगे। लोकतंत्र में असंतोष ज़ाहिर करने का अधिकार हर किसी के पास होना चाहिए। अगर व्यापारी वर्ग पहले से ही वोटर की तरह व्यवहार करते तो आपके बिजनेस को लाखों का घाटा न होता। व्यापारियों के लिए दूसरा सबक यह है कि जब कोई सरकार से सवाल करे, तो उसका साथ दे। आज के दौर में सवाल करना आसान नहीं है। नौकरी तक दांव पर लग जाती है। कोई सवाल किसके लिए करता है। अगर जीएसटी पर हमारे जैसे दो चार दस लोग नहीं लिखते तो क्या होता?इसलिए सवाल करने वालों का बचाव कीजिए। वरना एक दिन जब फंसेंगे तो आपकी बात कहने वाला कोई नहीं होगा। आप जानते ही हैं कि सुनने वाले को सत्ता में पहुंच कर फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कह रहे हैं। विपक्ष की आवाज़, सवाल करने की परंपरा का साथ दीजिए, उसका बचाव कीजिए वरना मौके का लाभ उठा कर रक्षक ही भक्षक बन जाएगा। बन ही गया था। गोदी मीडिया ने व्यापारी वर्ग की आवाज़ को दबाया। व्यापारी भी ये महसूस करने लगे थे। इसलिए उन सभी पत्रकारों को बधाई जिनकी जीएसटी की बर्बादी की ख़बर भले ही अंदर के पन्ने पर और कहीं कोने में छपी।

(वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक पेज से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)