राममंदिर विवाद में संतों के खिलाफ आखिर क्‍यों बेवजह दखल देना चाहते हैं श्रीश्री रविशंकर ?

क्‍या श्रीश्री रविशंकर अयोध्‍या में राममंदिर के विवाद में दखल देकर ख्‍याति हासिल करना चाहते हैं। आखिर इस मसले पर वो इतने उतावले क्‍यों हैं ?

New Delhi Nov 13 : अध्‍यात्मिक गुरू श्रीश्री रविशंकर में राममंदिर को लेकर अचानक काफी उतावलापन नजर आ रहा है। हर पक्षकार की तरह श्रीश्री रविशंकर भी चाहते हैं कि इस विवाद का समाधान बातचीत के जरिए निकले। लेकिन, सबसे बड़ी बात ये है कि श्रीश्री रविशंकर इस मामले में ना तो कभी पक्षकार रहे हैं और ना ही राममंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं। फिर भी वो अपनी ओर से चाहते हैं कि बातचीत की पहल हो। जो काफी पहले से ही शुरु हो चुकी है। श्रीश्री रविशंकर की इस पहल को लेकर संत समाज में फूट पड़ती नजर आ रही है। जहां कुछ संतों से चुप्‍पी साध रखी है वहीं, संतों का एक धड़ा खुलकर इस बात का विरोध कर रहा है कि आखिर वो किस हैसियत से इस मसले में बातचीत करना चाहते हैं। कुछ जानकारों का तो यहां तक कहना है कि अगर अदालत के बाहर कोई सेटेलमेंट होता भी है तो वो पक्षकारों के बीच ही होना चाहिए। तभी उसे अदालत स्‍वीकार करेगा। नहीं तो वो खारिज भी हो सकता है। यानी इस डगर में कई कानूनी पचड़े भी हैं।

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इस बीच श्रीश्री रविशंकर ने साफ कर दिया है कि वो 16 नवंबर को अयोध्‍या जाएंगे और पक्षकारों से मुलाकात करेंगे। इसके साथ ही श्रीश्री इस मसले को लेकर उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ से भी मुलाकात करेंगे। श्रीश्री का कहना है कि अयोध्‍या जैसा मसला बातचीत के जरिए ही सुलझ सकता है। लेकिन, दूसरी ओर हिंदू महासभा का कहना है कि आखिर वो किस हैसियत से पक्षकारों से बात करेंगे। वो आज तक कभी अयोध्‍या नहीं गए। कभी राम मंदिर आंदोलन में हिस्‍सा नहीं लिया। राममंदिर निर्माण में उन्‍होंने कभी कोई भूमिका नहीं निभाई। हिंदू महासभा के लोगों का कहना है कि श्रीश्री रविशंकर इस मसले को लपक कर ख्‍याति हासिल करना चाहते हैं। जबकि इस केस में पक्षकार हमेशा से सक्रिय भूमिका में रहे हैं। इससे पहले अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद भी इस केस में श्रीश्री रविशंकर के दखल पर आपत्ति जता चुका है।

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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने तो श्रीश्री रविशंकर को यहां तक कह डाला था कि वो कोई संत नहीं हैं जो उनकी बात को माना जाए। महंत नरेंद्र गिरि का कहना था कि अयोध्‍या में राममंदिर बनवाना रविशंकर के बस की बात नहीं है। श्रीश्री रविशंकर से जब ये पूछा किया गया कि हिंदू महासभा और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद राममंदिर के विवाद में उनके दखल से खुश नहीं है और इस पर विवाद खड़े हो रहे हैं तो उनका कहना था कि वो अपनी इच्‍छा से इस विवाद को सुलझाना चाहते हैं। इसके साथ उन्‍होंने ये भी कहा कि लोग जो कहना चाहते हैं कहते रहें वो अपना काम करते रहेंगे। इससे पहले यूपी सेंट्रल शिया वक्‍फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने भी रविशंकर से राममंदिर के मसले पर मुलाकात की थी। रविशंकर से मुलाकात के बाद वसीम रिजवी ने कहा था कि राम मंदिर वहीं बनेगा। मस्जिद को दूसरी जगह शिफ्ट किया जा सकता है।

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हालांकि वसीम रिजवी इससे पहले भी इस तरह की बात कर चुके हैं। यूपी सेंट्रल शिया वक्‍फ बोर्ड इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के भीतर एक हलफनामा भी दाखिल कर चुका है। उस हलफनामे भी यही कहा गया था कि राम मंदिर जहां हैं वहीं पर बनना चाहिए। मंदिर को मुस्लिम बाहुल्‍य इलाके में बनाना चाहिए। हालांकि मुसलमानों की ओर से दूसरे पक्षकार इस पक्ष में नहीं थे। उनका कहना है कि इस केस में सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला सुनाएगा उन्‍हें मान्‍य होगा। इस वक्‍त यूपी में इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि छह दिसंबर तक राममंदिर निर्माण को लेकर आम सहमति बना ली जाए। वसीम रिजवी भी अपने स्‍तर पर सभी पक्षकारों से बात कर उन्‍हें मनाने में जुटे हैं। राजनैतिक स्‍तर पर भी सुलह की कोशिशें जारी हैं। लेकिन, संत समाज और हिंदू महासभा को राममंदिर विवाद में श्रीश्री रविशंकर की एंट्री कतई नहीं भा रही है। इसके साथ ही इस विवाद में सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड भी बड़ा रोड़ा है। जिसे मनाने की कोशिशें जारी हैं।