गुजरात विधानसभा चुनाव में इस चुनौती से कैसे निपटेंगे अमित शाह ?

गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी की जीत का फार्मूला ही उसकी चुनौती बनता जा रहा है, सवाल ये है कि आखिर अमित शाह इस चुनौती से कैसे निपटेंगे ?

New Delhi Nov 19 : गुजरात विधानसभा चुनाव इस वक्‍त अपने पूरे चरम पर है। हर दल, हर पार्टी ने गुजरात फतेह करने के लिए अपनी जीत के घोड़ों को खोल दिया है। लेकिन, कड़ा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच देखने को मिल रहा है। कांग्रेस की जीत की अपनी रणनीति है तो भारतीय जनता पार्टी की अपनी। लेकिन, गुजरात फतह करने के लिए पार्टी अध्‍यक्ष अमित शाह ने जो रणनीति बनाई थी वहीं रणनीति उनके लिए चुनौती बनती जा रही है। अमित शाह की चुनावी रणनीति से पार्टी के कुछ नेता बागी होते हुए नजर आ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर अमित शाह इस चुनौती से कैसे निपटेंगे। बागी हो रहे नेताओं को वो कैसे समझाएंगे। या फिर बीजेपी के कुछ नेताओं की बगावत के साथ ही पार्टी को मतदान में जाना होगा और चुनाव नतीजों का इंतजार करना होगा। गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति क्‍या है और चुनौती क्‍या है जरा ये भी समझ लीजिए।

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दरअसल, अमित शाह का एक पुराना फार्मूला रहा है, खासतौर पर उन जगहों पर अमित शाह ने ये फार्मूला आजमाया है जहां लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकारें रही हैं। वो फार्मूला ये है कि अमित शाह चुनावों में उम्‍मीदवारों को रिपीट नहीं करते हैं। यानी अगर कोई पांच साल या दस साल विधायक रह चुका है तो बीजेपी उम्‍मीदवार को बदलने में ही अपनी भलाई समझती है। इसके पीछे पार्टी नेताओं का तर्क ये रहता है कि अकसर क्षेत्रीय लोगों में अपने नेता के प्रति नाराजगी और एंटी इनकमबैंसी फैक्‍टर बढ़ जाता है। इससे सिर्फ उम्‍मीदवार बदलकर ही बचा जा सकता है। गुजरात विधानसभा चुनाव में भी अमित शाह ने इसी फार्मूले को अपनाया है। भारतीय जनता पार्टी की ओर से गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए उम्‍मीदवारों की दो लिस्‍ट जारी की जा चुकी है। पहली लिस्‍ट में 70 उम्‍मीदवारों के नाम हैं। जबकि दूसरी लिस्‍ट में 36 नेताओं को टिकट दिया गया।

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यानी बीजेपी अब तक 106 उम्‍मीदवारों को टिकट दे चुकी है। लेकिन, इन दोनों ही लिस्‍ट में पार्टी हाईकमान ने बीजेपी के कई मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए हैं। जिससे पार्टी में बगावत शुरु हो गई है। अपने नेताओं के टिकट कटने से नाराज बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पार्टी हाईकमान के खिलाफ ही मोर्चा खोल लिया है। खेरालु में भरत सिंह डाभी और निकोल के जगदीश पंचाल को बीजेपी ने टिकट नहीं दिया तो उनके समर्थक नाराज हो गए। इन लोगों ने बीजेपी दफ्तर पर जमकर हंगामा किया। इतना ही पार्टी हाईकमान को सामूहिक इस्‍तीफे की धमकी भी दी जा रही है। ऐसे में फिर वही सवाल है कि आखिर अमित शाह इस तरह के विरोध प्रदर्शन से कैसे निपटेंगे। क्‍या उन्‍हें इस बात की पूरी उम्‍मीद है कि वो और उनकी टीम के सदस्‍य रूठे हुए नेताओं को मना लेंगे। वो भी तब तब बगावत चरम पर पहुंचती जा रही हो।

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हालांकि ऐसा नहीं है कि अमित शाह या फिर पार्टी हाईकमान की ओर से हर विधायक का ही टिकट काटा गया हो। दरअसल, टिकट वितरण से पहले पार्टी की ओर से एक कमेटी बनाई जाती है। जो उम्‍मीदवारों के नामों पर विचार करती है। इसके साथ ही वो मौजूदा विधायक के कामकाज का फीडबैक भी अपने स्‍तर से लेती है। जिन विधायकों के खिलाफ निगेटिव रिपोर्ट मिलती है उनके ही टिकट काटे जाते हैं। बीजेपी दफ्तर में जिन नेताओं के समर्थकों ने हंगामा किया उनके खिलाफ भी पार्टी के पास टिकट काटने के पुख्‍ता आधार हैं। पार्टी हाईकमान को भी पता है कि इस तरह के मामले में दागी नेता अपने समर्थकों को आगे कर पार्टी को ब्‍लैकमेल करने की कोशिश करते हैं। लेकिन, ऐसे लोगों की चाल अमित शाह के सामने सफल हो भी पाएगी या नहीं इस पर सस्‍पेंस बना हुआ है। बहरहाल, इस वक्‍त मुद्दा हर बागी को शांत रखने और शांत करने का है। एक भी नेता की बगावत बीजेपी को भारी पड़ सकती है।