प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस पर तो तारीफ बनती है

मूडीज के मूड को मोदी सरकार की उपलब्धि बताने वालों को खुश होने दिया जाता, तब तक कांग्रेसी कहीं किसी और बात पर पिकनिक मना सकते थे।

New Delhi Nov 19 : मोदी मैजिक जारी है। तीन साल पूरे होने पर निस्संदेह नरेन्द्र मोदी सरकार ने उपलब्धियों की हैट्रिक बनाई है। ‘‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’ में लम्बी छलांग लगाते हुए शतकीय स्तर हासिल करना, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज से रेटिंग में अपग्रेड होना और अमेरिकी एजेंसी पीइडब्लू के सर्वे में पीएम मोदी के लिए 88 प्रतिशत लोकप्रियता; ये तीनों उपलब्धियां हासिल करने का श्रेय खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है। समर्थक फूले नहीं समा रहे हैं और विरोधी इसे मोदी को ‘‘अमेरिका का तोहफा’ बता रहे हैं। तटस्थ नजरिए से देखा जाए तो आलोचनाएं तो भुला दी जाती हैं, लेकिन उपलब्धियां कभी मिटाई नहीं जा पातीं। लिहाजा, मोदी की उपलब्धि विरोधियों पर भारी है।मूडीज ने भारत की रैंकिंग 13 साल पहले घटाई थी, जब यूपीए की सरकार ने देश में फीलगुड कराने वाली अटल बिहारी सरकार की जगह ली थी। इसलिए मूडीज के कदम को जबरन मनमोहन सिंह सरकार के साथ जोड़ना राजनीतिक दुश्मनी ही हो सकती है।

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मगर, कांग्रेस के लिए अपने दस साल के कार्यकाल में भी मूडीज का मूड नहीं बदल पाने पर सफाई देना मुश्किल है। इसलिए अच्छा यही होता कि मूडीज के मूड को मोदी सरकार की उपलब्धि बताने वालों को खुश होने दिया जाता, तब तक कांग्रेसी कहीं किसी और बात पर पिकनिक मना सकते थे। लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में मोदी विरोधी मानने को तैयार नहीं हैं। वे सवाल कर रहे हैं कि मूडीज मनमोहन सरकार रहने तक क्यों मौन रहा?मूडीज की रेटिंग में भारत के लिए सुधार की उपलब्धि से एक उम्मीद जगी है। उपलब्धि में उपलब्धियां छिपी हुई प्रतीत हो रही हैं। शेयर बाजार ने इसका आभास कराते हुए एक प्रतिशत का उछाल लेकर खुशी का इजहार किया है। मूडीज ने भारत की रेटिंग बीएए3 से बढ़ाकर बीएए2 कर दी है। इसका व्यावहारिक मतलब यह है कि भारत में निवेश के लिए जोखिम कम हुआ है यानी आर्थिक सुधारों की वजह से पूंजी निवेश के जरिए कमाने का मौका पहले से बेहतर हुआ है।

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चीन से स्पर्धा कर रहे भारत के लिए दोहरी खुशी की बात यह है कि मूडीज ने इस बार चीन के प्रति उदार रवैया हमेशा की तरह नहीं दिखलाया है। उसकी रेटिंग गिर गई है। इस तरह भारत और चीन के बीच पूंजी निवेश के नजरिए से फर्क घटा है और अब यह चार अंकों की खाई के तौर पर सिमटा है।मूडीज की तर्ज पर दो और रेटिंग एजेंसियां हैं, जो भारत के लिए अब तक रेटिंग सुधारने को तैयार नहीं हुई हैं। इनमें ‘‘एस एंड पी’ और ‘‘फिच’ शामिल हैं। ‘‘एस एंड पी’ ने जनवरी 2007 से और ‘‘फिच’ ने अगस्त 2006 से भारत को सबसे निचले निवेशक देश का दर्जा दे रखा है। अगर आने वाले दिनों में मूडीज की तर्ज पर बाकी दोनों एजेंसियों ने भी भारत के लिए रेटिंग में सुधार किया, तो उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत में पूंजी निवेश का माहौल बनेगा और ये घटनाएं मोदी सरकार के लिए वर्तमान हैट्रिक की उपलब्धि से आगे की उपलब्धि कहलाएगी।

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मूडीज ने जिन आधारों पर भारत के लिए रेटिंग में सुधार किया है, उसकी वजह है आर्थिक सुधार के लिए उठाए गए कदम। इन कदमों में जीएसटी लागू करना, आधार को डिजिटल लेन-देन के लिए बैंकों से जोड़ना, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में सुधार आदि शामिल हैं, जिनसे मूडीज को उम्मीद है कि भारत के ऋण की स्थिति में सुधार होगा।अगर राजनीतिक विरोधियों की इस बात में दम है कि मोदी सरकार को अमेरिका परस्त होने का इनाम मिल रहा है तब भी यह बात गौर करने लायक है कि ऐसी उपलब्धि हासिल करने की कोशिश पूर्ववर्ती सरकारों ने भी की थी, लेकिन सफल नहीं हो सकी थी। मनमोहन सरकार खुद अमेरिका परस्ती में ही अपनी सरकार तक गिरवा चुकी थी। सरकार गिराने वाले वामपंथी दलों ने 2009 में कांग्रेस की वापसी को ‘‘परमाणु करार से समझौता के बदले जीत’ बताया था।

मगर, अब देश काफी आगे बढ़ चुका है। बीते 13 साल में 10 साल मनमोहन सरकार के हैं तो 3 साल मोदी सरकार के। इसमें शक नहीं कि मूडीज की रेटिंग में सुधार नहीं पाने की विफलता का ठीकरा पराजित सरकार यानी यूपीए सरकार पर फोड़ा जाएगा और उपलब्धि वाला हिस्सा मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के हिस्से आएगा। लेकिन ऐसी राजनीति विकसित करने की जरूरत है, जहां ऐसी उपलब्धियां देश के नाम हों, सरकार के नाम नहीं। अमेरिकी एजेंसी पीईडब्लू के सर्वे को लेकर अगर विरोधी दल बीजेपी पर बेवजह उत्साहित होने का आरोप लगा रहे हैं तो उन्हें खामोश कर देने का तर्क भी नहीं नजर आता है। इस साल फरवरी-मार्च में तकरीबन ढाई हजार के छोटे सैम्पल साइज में हुए इस सर्वे पर अगर बीजेपी इतराए भी, तो उनसे उनका यह अवसर नहीं छीना जाना चाहिए। अगर सर्वे में 88 फीसद वोट पाकर नरेन्द्र मोदी सबके प्रिय बने हुए हैं तो यह पार्टी के लिए जश्न जैसी खबर है। वैसे भी, अब तक किसी भी सर्वे में प्रधानमंत्री बनने के बाद से नरेन्द्र मोदी के सामने कोई विरोधी नहीं टिका है।

इससे पहले ‘‘ईज ऑफ डुइंग बिजनेस’ मामले में भी भारत की ऊंची छलांग को विरोधियों ने कमतर आंकने की कोशिश की थी। कांग्रेस ने इस उपलब्धि की तुलना सरकार की नाकामियों से करके अपनी झेंप मिटाने की कोशिश की थी। लेकिन क्या हुआ? दो और उपलब्धियां आ गई और उन्हें जवाब नहीं मिल रहा है। यही स्थिति मोदी सरकार और मोदी समर्थकों के लिए उत्साहजनक है।अमेरिकी दबाव में भारत को यह उपलब्धि मिली है, ऐसा कहने वाले वही लोग हैं, जो नोबेल पुरस्कार को भी प्रायोजित बताते रहे हैं। फिर भी हिन्दुस्तान का कौन-सा नेता है जो अपने लिए नोबेल पुरस्कार की आकांक्षा छोड़ सका है? अटल से लेकर इंदिरा और नेहरू तक ऐसे आरोप लग चुके हैं। लेकिन अब तक कोई सफल नहीं हो पाया है। अगर, इसी कोशिश में नरेन्द्र मोदी सफल हो जाते हैं तो क्या हम खुशी मनाने के बजाए इसे प्रायोजित साबित करने में जुट जाएंगे?

वास्तव में यह काम विश्लेषकों पर छोड़ देना चाहिए। ऐसे मुद्दों को राजनीतिक मुद्दा बनाकर असली मुद्दों से ध्यान हटाया जाता है। हिन्दुस्तान की सभी बड़ी राजनीतिक पार्टयिां ऐसा बहुत सोच-समझ कर करती हैं। कभी यही काम उनके हित में होता है, कभी ख़्िालाफ में हो जाता है।मोदी सरकार में जो ‘‘उपलब्धियां’ हासिल हो रही हैं उसका चरित्र ही ऐसा है, जो कांग्रेस के खिलाफ है। अन्यथा एनडीए और यूपीए सरकार में फर्क है कहां? यह फर्क दिखाने की कोशिश में जब कभी भी राहुल गांधी ‘‘सूट-बूट की सरकार’ कहते हैं तो उसे अनावश्यक टिप्पणी के तौर पर ही लिया जाता है। जब विरोध में गंभीरता होगी, तभी विरोधी भी गंभीर कहलाएंगे। राजनीति का स्तर उठाना है तो विरोध का स्तर भी उठाना होगा। देखना यह है कि इस स्तर की रेटिंग में कब सुधार आता है। (वरिष्‍ठ पत्रकार उपेंद्र राय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)