खुल गया कांग्रेस का वो राज, जिसके दम पर पब्लिक को बेवकूफ बनाया

कांग्रेस का खेल अब पब्लिक के सामने खुल गया है, अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया केवल एक नाटक भर है, राहुल के अलावा कौन बनेगा कांग्रेस का अध्यक्ष

New Delhi, Nov 22: देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी कांग्रेस में इस समय एक अलग ही उत्साह और जोश दिखाई दे रहा है। गुजरात में पार्टी को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। कांग्रेस में नई जान आती दिख रही है। इसी के साथ कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। 19 दिसंबर को कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाएगा। पब्लिक को ये बताया जाता है कि लोकतांत्रिक तरीके से कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव किया जाता है। दरअसल राजनीति में लोकतंत्र शब्द की महिमा अपरम्पार है, आप कुछ भी करिए लेकिन उसे लोकतंत्र की चादर से ढककर पेश करिए, कोई सवाल नहीं खड़ा करेगा। यही है वो दिखावा जिसके दम पर कांग्रेस ने सालों से जनता को उल्लू बनाया है।

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देखिए 1 दिसंबर से कांग्रेस मं अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। 4 दिसंबर को नामांकन दाखिल होंगे, 11 दिसंबर को नामांकन वापस लेने की आखिरी तारीख है। उसके बाद 16 को चुनाव किया जाएगा और 19 को नतीजे आएंगे। जनता को उल्लू बनाने के लिए पूरी स्क्रिप्ट लिखी गई है। बाकायदा दिन गिनाए गए हैं कि किस दिन को कौन सा सीन शूट किया जाएगा। ये सब कुछ नाटक नहीं तो और क्या है, अरे कांग्रेस में गांधी परिवार के अलावा कोई सदस्य  अध्यक्ष बन सकता है क्या। 1998 से सोनिया गांधई कांग्रेस को अपने हिसाब से चला रही हैं। कांग्रेस में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड सोनिया गांधी के नाम पर ही है।

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सोनिया को आज तक किसी नेता से चुनौती नहीं मिली, तो राहुल को क्या मिलेगी। पब्लिक को दिखाने के लिए लोकतंत्र और चुनाव का नाटक किया जा रहा है। परिवारवाद में आकंठ डूबी पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव का नाटक अब जनता के सामने खुल गया है। दरअसल ये राहुल गांधी की इच्छा पर था कि वो कब अध्यक्ष बनना चाहते हैं। ये कुर्सी तो उनके पैदा होने के साथ ही उनके नाम हो गई थी। ये अलग बात है कि इस पर बैठने से पहले राहुल को जनता के सामने लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हवाला दे रहे हैं। लोकतंत्र की दुहाई दी गई, अपनी दादी इंदिरा के किस्से सुनाए गए. जनता को ये बताया गया कि किस तरह से सत्ता जहर की तरह होती है। और कैसे इस जहर का पान करने के लिए धरती पर अवतरित हुए हैं।

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राहुल गांधी और कांग्रेस के अतीत में जरा सा पीछे जाएं तो पता चल जाएगा कि किस तरह से राहुल गांधी को परिवारवाद और वंशवाद के तीरों से बचाने के लिए भूमिका बांधी गई. चुनाव का ड़्रामा इसकी एक कड़ी है, इस से पहले अमेरिका में राहुल गांधी वंशवाद पर बोल चुके हैं, बोल चुके हैं कि देश ऐसे ही चलता है,. हर क्षेत्र में परिवारवाद है। इस तरह से राहुल ने खुद पर लगने वाले वंशवाद के आरोपों को जस्टीफाई कर दिया। क्या कमाल के वक्ता हैं राहुल, लेकिन अब पब्लिक उतनी बेवकूफ नहीं रह गई है। उसे सब दिखाई दे रहा है। लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव कराने के नाम पर जो ड्रामा किया जा राह है वो जनता अच्छे से समझ रही है। मगर हमारे नेतागण इस बात को समझने को तैयार ही नहीं है।