लालू यादव जैसे सजायाफ्ता नेताओं को नहीं बनाना चाहिए पार्टी अध्‍यक्ष, संसद में बनें कानून

सजायाफ्ता नेताओं के लिए तमाम कानून हैं लेकिन, देश का कानून लालू यादव सरीखे सजायाफ्ता नेताओं को पार्टी अध्‍यक्ष बनने से नहीं रोक सकता है।

New Delhi Dec 02 : एक मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट के भीतर एक याचिका लगाई गई थी। जिसमें मांग की गई थी कि देश में जो सजायाफ्ता नेता हैं उन्‍हें पार्टी का अध्‍यक्ष बनाए जाने से रोका जाना चाहिए। देश में लालू यादव जैसे ढेरों उदाहरण मौजूद हैं जिन पर या तो आपराधिक मुकदमें चल रहे हैं या फिर उन्‍हें किसी ना किसी अदालत से सजा मिल चुकी है फिर भी वो नेता अपनी पार्टी के प्रमुख के पद पर विराजमान हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में खुद को असहाय महसूस करता है। सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि ऐसा नहीं होना चाहिए। लेकिन, कानून के भीतर लालू यादव सरीखे सजायाफ्ता नेताओं को पार्टी प्रमुख बनने से रोकने का कोई विकल्‍प मौजूद नहीं है। जिस पर सुप्रीम कोर्ट भी ये कहता है कि हमारी भी कुछ सीमाएं हैं। ये काम सरकार और संसद का है। सरकार को इस संबंध में कानून लाना चाहिए। ताकि सजायाफ्ता नेताओं की मठाधीशी पर रोक लगाई जा सके।

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दरसअल, वकील अश्विनी उपाध्‍याय ने सुप्रीम कोर्ट के भीतर एक याचिका लगाई थी। अश्विनी उपाध्‍याय ने अपनी याचिका में मांग की थी कि जिन नेताओं को आपराधिक मामलों में दोषी ठहराया जा चुका है उनके राजनीतिक पार्टी के प्रमुख बनने से रोक लगाई जाए। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी उपाध्‍याय की इस याचिका को खारिज कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट के भीतर ये याचिका चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस ए.एम. खानविलकर की बेंच के पास गई थी। इसी बेंच ने इस याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने अश्विनी उपाध्‍याय की इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि अदालत किस स्तर तक जा सकता है ? इस मामले पर सरकार और संसद को फैसला लेना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि क्या हम किसी दोषी व्यक्ति को किसी पार्टी का अध्‍यक्ष या प्रमुख बनने से रोक सकते हैं ?

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सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि ये वाक स्वतंत्रता पर रोक होगी। अदालत किसी भी दोषी व्‍यक्ति को अपने विचार रखने से नहीं रोक सकती है। जबकि याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्‍याय का कहना था कि वर्तमान में किसी गंभीर आपराधिक मामले में दोषी व्यक्ति पर इस बात की पाबंदी तो है कि वो चुनाव नहीं लड़ सकता है। लेकिन, उसके पॉलिटिकल पार्टी बनाने और उसके अध्‍यक्ष बनने पर कोई रोक नहीं है। लालू यादव, ओम प्रकाश चौटाला और शशिकला जैसे नेता इस बात के उदारहण हैं। इन नेताओं को किसी ना किसी अदालत ने किसी ना किसी मामले में दोषी ठहराया है। फिर भी ये तीनों अपनी-अपनी पार्टी के प्रमुख हैं। ओमप्रकाश चौटाला जेबीटी घोटाले में सलाखों के पीछे हैं। जबकि शशिकला को आय से अधिक संपत्ति के मामले में पांच साल की कैद की सजा हुई है। लालू यादव चारा घोटाले के दोषी हैं।

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लालू यादव को चारा घोटाले में लोअर कोर्ट सजा सुना चुकी है। उन्‍होंने इसके खिलाफ ऊंची अदालत में अपील की। लेकिन, इस केस में उनके कंविक्‍शन से उनकी राजनैतिक हैसियत कम नहीं हुई। अभी हाल ही में लालू यादव को आरजेडी दसवीं बार आरजेडी के अध्‍यक्ष चुने गए हैं। दरसअल, आरजेडी के भीतर कोई दूसरा नेता अध्‍यक्ष बनने की सोच भी नहीं सकता। देश में कुछ पार्टियां ऐसी हैं जहां पर एक ही परिवार या फिर व्‍यक्ति विशेष का ही वर्चस्‍व रहता है। चाहें वो सजायाफ्ता ही क्‍यों ना हो। अब मुलायम सिंह यादव, सुरेश कलमाड़ी, ए राजा, जगन रेड्डी, मधु कोड़ा, अशोक चव्हाण, अकबरुद्दीन ओवैसी, अधीर रंजन चौधरी, वीरभद्र सिंह, कनिमोई, मुख्तार अंसारी और मोहम्मद शहाबुद्दीन को ही देख लीजिए इन लोगों पर तमाम मुकदमें दर्ज हैं फिर भी सभी के सभी पॉलिटिकल पार्टियों में ऊंची स्थितियों पर बैठ कर राजनीति कर रहे हैं।