गुजरात छोडि़ए अपने गढ़ में ही उड़े हैं अहमद पटेल के होश, इज्जत दांव पर
गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच जंग जारी है। कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल की प्रतिष्ठा उनके घर पर ही दांव पर लगी है।
New Delhi Dec 03 : गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला है। जहां एक ओर बीजेपी की ओर से इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस में राहुल गांधी और अहमद पटेल की प्रतिष्ठा दांव पर है। अहमद पटेल गुजरात से ही ताल्लुक रखते हैं। उन्हें कांग्रेस का चाणक्य भी माना जाता है। लेकिन, अहमद पटेल को भी ये बात मालूम है कि ये चुनाव कांग्रेस के लिए निकालना आसान नहीं होगा। आलम ये है कि अहमद पटेल की इज्जत उनके ही घर में दांव पर लग गई है। भरूच और आसपास के इलाके में अहमद पटेल ने अपनी लाज बचाने के लिए छुटभैये नेताओं की मदद लेनी शुरु कर दी है। पटेल यहां पर बाहुबलि नेताओं से भी मदद मांग रहे हैं। उन्होंने भरूच और उसके आसपास के इलाके में बीजेपी के खिलाफ खेमेबंदी शुरु कर दी है।
बताया जा रहा है कि इस इलाके में अहमद पटेल ने अपनी और पार्टी की लाज बचाने के लिए स्थानीय बाहुबलि नेता छोटू भाई बसावा और शकूर पठान से मदद मांगी है। हालांकि दोनों ही नेताओं को दो ध्रुव माना जाता है। लेकिन, पटेल चाहते हैं कि बीजेपी के खिलाफ ये दोनों ही नेता एकजुट हों। छोटू भाई बसावा की पकड़ आदिवासी इलाके में बहुत अच्छी मानी जाती है। जबकि शकूर पठान भरूच और उसके आसपास के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं। दरसअल, भरूच के इलाके में भारतीय जनता पार्टी का अच्छा वर्चस्व है। पिछले चुनाव में इस जिले की छह सीटों में से पांच सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। जबकि एक सीट जेडीयू के खाते में गई थी। भरूच अहमद पटेल का गृहजनपद है। इसके बाद भी भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में यहां पर अपनी जीत का परचम लहराती है।
इस बार गेम बदलने के मकसद से अहमद पटेल ने छोटू भाई बसावा को अपने पाले में मिला लिया है। छोटू भाई बसावा शरद यादव गुट के नेता हैं। इससे पहले ये चर्चा थी कि शरद यादव के गुट वाली जेडीयू कांग्रेस के साथ गठबंधन कर गुजरात विधानसभा चुनाव लड़ेगी। इस संबंध में पार्टी स्तर पर बातचीत भी हुई थी। लेकिन, बातचीत परवान नहीं चढ़ी। छोटू भाई बसावा जितनी सीटें मांग रहे थे कांग्रेस पार्टी उतनी सीट देने को राजी नहीं थी। ऐसे में छोटू भाई बसावा ने कांग्रेस से दूरी बना ली थी। लेकिन, ये जरूर कह दिया था कि हम मिलकर चुनाव लड़ेंगे। वैसे भी छोटू भाई बसावा के कई अहसान अहमद पटेल पर पहले से ही लदे हुए हैं। सिर्फ छोटू भाई बसावा की वजह से ही राज्यसभा चुनाव में अहमद पटेल की लाज बच पाई थी। नहीं तो पटेल के लिए अमित शाह का चक्रव्यूह तोड़ना उस वक्त बेहद मुश्किल था।
अहमद पटेल राज्यसभा चुनाव में अपनी करारी फजीहत का भी बदला लेना चाहते हैं इसके साथ ही भरूच में वो बीजपी की बाजी पलटवाना चाहते हैं। लेकिन, मसला इतना आसान नहीं हैं जिनता अहमद पटेल को लग रहा है। हालांकि कांग्रेस के सिपहसलार अपनी बैटिंग और फिल्डिंग में जुट गए हैं। शायद यही वजह है कि कांग्रेस ने छोटू भाई बसावा के सबसे खास आदमी अनिल भगत को अंकलेश्वर से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस आदिवासी क्षेत्र में छोटू भाई बसावा की मसीहा वाली छवि को भी भुनाना चाहती है। इसके साथ ही मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने के लिए शकूर पठान की मदद मांगी जा रही है। देखिए अहमद पटेल अपने गृह जनपद में बीजेपी के खिलाफ रणनीति बनाने में कामयाब हो भी पाते या नहीं। या फिर खुद उनकी ही सियासी इज्जत लुटती है।