अन्ना हजारे से इस बयान की उम्मीद केजरीवाल को नहीं होगी, रो भी नहीं सकते

अन्ना हजारे फिर से आंदोलन करने वाले हैं, लेकिन वो नहीं चाहते हैं कि आंदोलन की कोख से दोबारा केजरीवाल पैदा हो, इसके लिए वो सख्त कदम उठाएंगे।

New Delhi, Dec 14: पांच साल पहले दिल्ली से एक आंदोलन शुरू हुआ था, जिसने देश की राजनीति को हमेशा के लिए बदल के रख दिया, एक नई पार्टी का जन्म हुआ था। उस पार्टी के मुखिया बने अरविंद केजरीवाल, जनके गुरू थे अन्ना हजारे, वही अन्ना जिनके चेहरे को आगे रख के आंदोलन किया गया था। राजनीति की राहों पर चलने के दौरान केजरीवाल आगे निकल गए, अन्ना राजनीति में आने के पक्ष में नहीं थे, लिहाजा वो अपनी राह चलते रहे। अब एक बार फिर से अन्ना आंदोलन करने वाले हैं, लेकिन इस बार वो किसी चेहरे को आगे करने के मूड में नहीं है। उन्होंने साफ कर दिया है कि आंदोलन से दोबारा केजरीवाल नहीं पैदा होना चाहिए।

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ये अन्ना का डर है या फिर आशंका कि फिर से कोई केजरीवाल बन कर उनके सपनों को सीढ़ियां बना कर राजनीति में ऊपर जाएगा. या फिर वो नहीं चाहते कि केजरीवाल को कोई चुनौती मिले, ये तो वही जाने, लेकिन अभी तक दोनों के रिश्तों की डोर जिस तरह से कमजोर होती गई है उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि अन्ना अब आंदोलन की कोख से केजरीवाल जैसा नेता नहीं चाहते हैं। 2011 के आंदोलन का क्या हुआ ये सभी को पता है, उस आंदोलन से केजरीवाल को ही फायदा हुआ था, ना तो जन लोकपाल पास हो पाया ना ही उसके बाद की रणनीति सफल हो पाई। अन्ना ने कहा कि वो 2018 में फिर से आंदोलन करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि वो उम्मीद करते हैं कि अब कोई केजरीवाल पैदा न हो।

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ऐसा नहीं है कि अन्ना हजारे केवल केजरीवाल से ही नाराज हैं, उन्होंने बीजेपी और कांग्रेस पर भी हमला किया, अन्ना ने कहा कि लोकपाल विधायक के फेल होने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जिम्मेदार हैं। अन्ना ने अपनी आगे की योजना के बारे में बताया, उन्होंने कहा कि वो 23 मार्च 2018 से आंदोलन शुरू करेंगे, इस के जरिए लोकपाल की नियुक्ति, किसानों की समस्या और चुनाव सुधार को लेकर जनता को जागरूक करेंगे। अन्ना ने बीजेपी पर खास तौर पर निशाना साधा, उन्होंने कहा कि बीजेपी पूंजीपतियों की सरकार है। सरकार को सभी के विकास के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार पूंजीपतियों के बारे में सोचती है लेकिन किसानों के बारे में नहीं सोचती है। अन्ना ने कहा कि वो मोदी और राहुल गांधी दोनों से निराश हैं।

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2011 के आंदोलन के राजनीतिक टर्न लेने के बाद अब अन्ना सतर्क हैं। उन्होंने बताया कि वो इस बार कार्यकर्ताओं से मिलेंगे, उनसे कहेंगे कि वो स्टांप पेपर पर लिख कर दें कि कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाएंगे। अन्ना ने कहा कि वो ना तो किसी पार्टी का समर्थन करेंगे ना ही किसी कार्यकर्ता को चुनाव लड़वाएंगे। कुल मिलाकर पहली बार के अनुभव के आधार पर अन्ना आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन सवाल ये है कि उनका आंदोलन कितना सफल होगा। पिछली बार उनके साथ जानकार और अनुभवी लोगों की टीम थी, इस बार वो अकेले ही हैं। गुरू को इस बार केजरीवाल जैसे शिष्य की जरूरत तो है लेकिन वो अपने शिष्य की महत्वकांक्षाओं से ही डर रहा है। आंदोलन की राह पर अन्ना के लिए मुश्किलें कई हैं।