राहुल गांधी को बदलनी होगी अपनी रणनीति, नहीं तो कांग्रेस के खात्‍मे के खुद होंगे जिम्‍मेदार

राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने इस वक्‍त अपनी जो सियासी रणनीति अपना रखी है उसे जनता ने नकार दिया है। ऐसे में पार्टी के भीतर बदलाव की जरुरत है।

New Delhi Dec 19 : गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं। कांग्रेस पार्टी गुजरात जीतने का ख्‍वाब देख रही थी। जो अब चकनाचूर हो चुका है। गुजरात जीतना तो दूर कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश को भी गंवा दिया है। जाहिर है दोनों ही राज्‍यों में हार की जिम्‍मेदारी राहुल गांधी को ही लेनी होगी। हालांकि कांग्रेस पार्टी इस वक्‍त हिमाचल के बारे में तो कोई बात ही नहीं कर रही है जबकि गुजरात में वो इस बात से ही संतोष कर रही है कि पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले उसे ज्‍यादा सीटें मिली हैं। राहुल गांधी की आत्‍म संतुष्टि के लिए चापलूसों की फौज इस तरह की बातें कर सकती है। लेकिन, इस वक्‍त कांग्रेस पार्टी की जो हालत है उसके बारे में आत्‍ममंथन और भारी चिंतन की जरूरत है। राहुल गांधी को अपनी रणनीति बदलनी होगी।

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दरअसल, राहुल गांधी को सियासत विरासत में हासिल हुई है। अब तक राहुल गांधी सरीखे नेताओं ने बस वो ही देखा है जो वो देखना चाहते हैं। राहुल गांधी ने अब तक ना जाने कितनी गलतियां की हैं। हर गलती का जिक्र करेंगे तो महीनों लग सकते हैं। लेकिन, कुछ गलतियों की बात जरूर करेंगे। वो भी सिलसिलेवार तरीके से। आप सभी को ध्‍यान होगा कि जिस वक्‍त गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान भी नहीं हुआ था उस वक्‍त से कांग्रेस पार्टी के वरिष्‍ठ नेता शंकर सिंह वाघेला लगातार पार्टी हाईकमान से संपर्क करना चाहते थे। कई महीनों से वो दिल्‍ली में बैठे नेताओं से गुजरात विधानसभा चुनाव के बारे में बातचीत करना चाहते थे। लेकिन, उनकी एक नहीं सुनी गई। शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस छोड़ दी लेकिन, उन्‍होंने किस मसले पर पार्टी छोड़ी इस पर किसी ने ध्‍यान नहीं दिया।

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शायद इसी साल मार्च या अप्रैल की बात रही होगी जब शंकर सिंह वाघेला ये कहते कहते थक गए कि आप एक या दो महीने में गुजरात नहीं जीत सकते हो। पहले से ही तैयारी करनी होगी। लेकिन, दिल्‍ली में बैठे राहुल गांधी सरीखे नेताओं को लगता है कि जहां भी चुनाव होगा बस दो महीने पहले चले जाएंगे रैली करेंगे, मोदी और बीजेपी को गालियां बकेंगे और चुनाव जीतकर आ जाएंगे। लेकिन, ऐसा नहीं होता है। महीनों या कहें सालों पहले चुनाव की तैयारी करनी होती है। राहुल गांधी को अपनी इस चुनावी रणनीति में बड़ा बदलाव करना होगा। इसके साथ ही मुझे ये भी कहते हुए तनिक भी अफसोस नहीं हो रहा है कि असल में राहुल गांधी देश के मुद्दों और जनता की नब्‍ज भी नहीं पकड़ पाते हैं। चंद लोगों की खातिर अपना बड़ा नुकसान कर बैठेते हैं।

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राहुल गांधी ने पूरे साल नोटबंदी और जीएसटी का विरोध किया। जबकि उन्‍हें ये समझना चाहिए था कि नोटबंदी को देश की जनता ने सराहा है। तमाम चुनाव के नतीजे ये बता चुके थे नोटबंदी का मोदी को फायदा हो रही है। फिर भी राहुल गांधी उसी की ढपली बजा रहे थे। जीएसटी का मुद्दा भी फ्लॉप हुआ। राहुल गांधी ने गुजरात विधानसभा में मंदिर-मंदिर मत्‍था टेका, खुद को जनेऊधारी बताया। लेकिन, अगर उन्‍हें चुनाव में इसका माइलेज लेना था तो हिंदुत्‍व वाली छवि को पहले से ही बनाना चाहिए था। संघ को कोस कर, गौरक्षा पर सवाल खड़े कर, केरल में बीफ पार्टी करा कर कांग्रेस हिंदुत्‍व की राह पर हरगिज नहीं चल सकती है। राहुल गांधी को तय करना होगा कि उन्‍हें किस राह पर चलना है। नहीं तो कांग्रेस के खात्‍मे के वो इकलौते जिम्‍मेदार होंगे।