दिल्ली में फेल हो गए जिग्नेश मेवाणी, पहली ही रैली हुई फ्लॉप, क्या समझें

गुजरात से निकल कर जिग्नेश मेवाणी अब दलितों के राष्ट्रीय नेता बनने की ख्वाहिश पाल रहे हैं, दिल्ली में उनका पहला प्रयोग ही असफल होता दिख रहा है।

New Delhi, Jan 09: गुजरात चुनाव में जिग्नेश मेवाणी उतने मुखर नहीं थे, जितने अब दिखाई दे रहे हैं, क्या ये कोई संकेत हैं, दलितों के नए नेता के तौर पर खुद को स्थापित करने की कोशिश जिग्नेश लगातार कर रहे हैं, क्या इसके पीछे ये कारण हो सकता है कि गुजरात के साथ साथ पूरे देश में दलित एक बड़ा वोटबैंक माना जाता है। हो सकता है कि ये मंशा भी हो, बहरहाल राष्ट्रीय राजनीति में धमाका कपना है तो दिल्ली से बेहतर कौन सी जगह हो सकती है। यही सोच कर जिग्नेश ने दिल्ली में युवा हुंकार रैली का आयोजन किया, पहले तो इसकी इजाजत नहीं मिली, जंतर मंतर पर एनजीटी ने किसी भी4 तरह के प्रदर्शन और रैली पर रोक लगा रखी है, शायद ये बात जिग्नेश को नहीं पता थी, वो रोक के बाद भी रैली करने पर अड़े रहे।

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सवाल ये है कि रैली का हुआ क्या, हजारों समर्थकों के पहुंचने का दावा करने वाले जिग्नेश की रैली में मात्र 300 लोग पहुंचे। इस तरह से देखा जा तो जिग्नेश मेवाणी की युवा हुंकार रैली फ्लॉप साबित हुई, जंतर मंतर पर ज्यादातर कुर्सियां खाली रहीं. जिग्नेश इसके लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैरं. उनका कहना है कि वो चुने हुए विधायक हैं उनको बोलने से रोका जा रहा है, जिग्नेश को बोलने से क्यों रोका जाएगा, वो जब मन करता है जहां करता है वहां बोल रहे हैं, भीमा कोरेगांव में भी उन्होंने बोला ही था, जब खुद के बोलने की बारी आती है तो जिग्नेश कहते हैं कि वो चुने हुए हैं। ये शब्द अब खोखला हो गया है। क्या बाकी के नेता, सांसद, विधायक, सरकारें चुनी हुई नहीं है।

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दरअसल जिग्नेश मेवाणी की रैली फ्लॉप होने का एक कारण ये हो सकता है कि वो भीमराव अंबेडकर और पेरियार के सिद्धांतों से असहमति जता चुके हैं। वो कई बार बोल चुके हैं कि जो बाबा साहेब ने कहा वो आखिरी सत्य नहीं है। हम उस से असहमत हो सकते हैं। दलित उत्थान की बात करने वाले जिग्नेश अंबेडकर की बातों को कोट करते हैं उनसे ही असहमति जताते हैं। वो किस तरह की राजनीति करना चाहते हं उनको खुद ही नहीं पता है। बीजेपी का कहना है कि जिग्नेश दलितों और हिंदुओं के बीच संघर्ष पैदा कर रहे हैं. दलित भी हिंदू ही हैं। जिग्नेश गंदी राजनीति कर रहे हैं। जिग्नेश भूल रहे हैं कि वो जिस तरह की राजनीति कर रहे हैं वो तलवार की धार की तरह है, सावधानी हटी और दुर्घटना घटी।

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खबरों में बने रहना और बहस का केंद्र बनना ही अगर जिग्नेश का लक्ष्य है तो वो इस में सफल हो गए हैं, लेकिन ये सफलता कुछ दिनों की है, उसके बाद लोग आपको भूल जाएंगे, किसी पर उंगली उठाने से पहले कुछ ठोस काम आपके पास होना चाहिए जनता को दिखाने के लिए। अभी तक के सार्वजनिक जीवन में जिग्नेश की उपलब्धि केवल उना घटना के बाद दलितों का आंदोलन खड़ा करना और गुजरात चुनाव में कांग्रेस के समर्थन से विधायक बनना रहा है। दूसरों की जवाबदेही पर सवाल खड़ा करने वाले अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं, भूल जाते हैं कि उनकी भी जवाबदेही है, अतिवादी विचारधारा को समर्थन देने वाले जिग्नेश हिंसा को भी सही मानते हैं। इस तरह की राजनीति कुछ दिनों की चर्चा दिला सकती है , इस से ज्यादा कुछ नहीं, दलितों के उत्थान के लिए, उनको मुख्य धारा में लाने के लिए क्या किया जाए, जिग्नेश को इस बारे में सोचने की जरूरत है, कोई भी क्रांति एक दिन में सफल नहीं होती है।