सुप्रीम कोर्ट जज विवाद, ये क्या हुआ “मी लॉर्ड्स” ?

जजों के पास केवल फैसले का काम होता है. और कॉलेजियम की व्यवस्था के बाद से पांच सबसे सीनियर जज नए जजों की नियुक्ति में भी भाग लेते हैं.

New Delhi, Jan 14: यह भारत की हीं नहीं, दुनिया की न्याय बिरादरी में एक भूकंप की मानिंद था. भारत में न्यायपालिका और खासकर सर्वोच्च न्यायालय एक ऐसी संस्था थी जिस पर समाज का अद्भुत भरोसा होता था खासकर तब जब वह हर संस्था से न्याय की उम्मीद छोड़ चुका होता था. शुक्रवार को इस न्यायालय के चार वरिष्ठ जजों द्वारा प्रेस कांफ्रेंस करके एक संयुक्त पत्र जारी करना जिसमें देश की सबसे बड़ी अदालत के चीफ जज पर न्याय -सम्मत तरीके से कार्य न करने का आरोप लगाना और यह कहना कि अगर हम स्थिति के खिलाफ आज तन कर न खड़े होते तो आज से २० साल बाद समाज में से कुछ बुद्धिमान यह कहते कि हम चार जजों ने ‘अपनी आत्मा बेंच’ दी थी” ने ७० साल पुराने लोकतंत्र की जड़ें हिला दी. जजों ने आगे कहा “हम इस मामले में चीफ जस्टिस के पास गए थे लेकिन वहां से खाली हाथ लौटना पडा “. इस प्रेस कांफ्रेंस के पांच मिनट भी नहीं हुए थे कि दर्ज़नों वरिष्ठ वकीलों ने पक्ष -विपक्ष में मीडिया में तर्क देना शुरू कर दिया.

Advertisement

अगर वकील प्रशांतभूषण ने मीडिया में आ कर बेसाख्ता मुख्यन्यायाधीश के “चहेते “ जजों का नाम और वे मामले जो उन्हें सौंपे गए बताना शुरू किया तो पूर्व न्यायाधीश जस्टिस सोधी ने इन चार वकीलों के कदम को न्यायलय की गरिमा गिराने वाला , हास्यास्पद और बचकाना बताया. बहरहाल कुल मिलकर आज एक और सबसे मकबूल और विश्वसनीय संस्था भी व्यक्तिगत अहंकार या वर्चस्व की भेंट चढ़ गयी. जब प्रेस कांफ्रेंस में जजों से पूछा गया कि क्या वह मुख्य न्यायाशीश के खिलाफ महा-अभियोग लाने के पक्षधर हैं तो उनका बेबाक जवाब था “यह समाज को तय करना है”. याने सुप्रीम कोर्ट के ये चार जस्टिस एक तरह से इससे इनकार नहीं कर रहे हैं. ध्यान रहे कि भारत में पांच सदस्य हो तो वह संविधान पीठ के रूप में कार्य करता है और उसके फैसले में कानून की ताकत होती है.

Advertisement

हमने अभी तक कभी -कभी कमजोर आवाज में केन्द्रीय बार कौंसिल और राज्य बार एसोसिएशनों द्वारा कभी कभी जजों के खिलाफ व्यक्तिगत मामलों में आरोप लगते हुए देखा था लेकिन पिछले ७० साल में एक बार भी ऐसा नहीं देखने में आया कि सर्वोच्च न्यायलय के हीं चार वरिष्ठ जज अपने मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ प्रेस कांफ्रेंस करें और वह भी केसों के आबंटन में तथाकथित पक्षपात को लेकर. उनका कहना था कि कौन केस किस बेंच के पास जाएगा यह मुख्य न्यायाधीश के अधिकार क्षेत्र में होता है लेकिन यह प्रक्रिया भी कुछ स्थापित परम्पराओं के अनुरूप चलायी जाती है जैसे सामान प्रकृति के मामले सामान बेंच को जाते हैं और यह निर्धारण मामलों की प्रकृति के आधार पर न कि केस के आधार पर होता है. इसके आगे बढ़ते हुआ प्रशांतभूषण ने उन केसों और जजों के नाम बताने शुरू किये. इन चार जजों का और वकीलों का जन धरातल पर यह सब कुछ करना हर हालत में अवमानना की श्रेणी में आता है.

Advertisement

आधुनिक न्यायशास्त्र का मूल सिद्धांत कहता है “आप चाहे जितने भी बड़े क्यों न हों, कानून आपसे बड़ा होता है”. अदालत की अवमानना कानून, १९७१ के सेक्शन २(सी) (१) के अनुसार ऐसा कोई बयान जो अदलत की गरिमा को गिराता है” अदालत की अवमानना है”. इस सेक्शन के उप-खंड (२) और (३) को एक साथ पढ़ें तो इन चार जजों का बयान अवमानना की श्रेणी में आता है.अगर किसी सामान्य पर्त्रकार ने या रिपोर्टर ने कहा होता कि जजों को केसों का आबंटन भेद-भाव के तहत किया जा रहा है तो इसे सीधा अवमानना मान कर अदालत उस मीडिया प्रतिष्ठान के चेयरमैन से लेकर चपरासी तक को तलब कर लेता. लेकिन आज भारत में पहली मर्तबा बार हीं नहीं बेंच भी बंटा हुआ है और यह विभेद एक दूसरे पर खुले-आम आरोप लगाने में देखा जा सकता है.

क्या कोई और विकल्प नहीं ? सर्वोच्च न्यायलय हीं नहीं उच्चन्यायालय के पास भी दो तरह के कार्य होते हैं. पहला न्याय का निष्पादन करना और दूसरा न्याय प्रशासन देखना. यह दूसरा काम आम तौर पर मुख्य न्यायाधीश के हाथ में होता है. जजों के पास केवल फैसले का काम होता है. और कॉलेजियम की व्यवस्था के बाद से पांच सबसे सीनियर जज नए जजों की नियुक्ति में भी भाग लेते हैं. यह बात सही है कि सर्वोच्च न्यायालय हीं नहीं, हाई कोर्ट के जस्टिस भी भारत के संविधान द्वारा अभिरक्षित हैं और उन्हें मात्र महा -अभियोग लगा कर हीं हटाया जा सकता है. कुछ जानकारों का मानना है कि अगर इन चार जजों को मुख्य न्यायाधीश की कार्य प्रणाली से ऐतराज था तो वे सभी जजों की बैठक में जो सवेरे होती है इस मुद्दे को लेकर जाते और एक आम सहमति का प्रयास किया जाता.

एक अन्य राय के मुताबिक ये जज अपने फैसले में भी मुख्यन्यायाधीश के केस आबंटन प्रर्किया के खिलाफ “स्वयंसंज्ञान” लेते हुए फैसला दे सकते थे जो स्वतः सार्वजानिक होता और जिससे यह ध्वनि न निकलती कि सार्वजानिक तौर पर सामूहिकरूप से कुछ जज मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ सड़क पर आ गए हैं. बहरहाल इस प्रेस कांफ्रेंस के बाद भारत की सबसे बड़ी पंचायत की जिस गारिम को क्षति पहुँची है उसकी अनुगूंज आने वाले कई दिनों तक हीं नहीं वर्षों तक सुनायी देगी. शायर मीर इस दिन का भान करते हुए ताकी मीर ने कहा : “कहता है दिल कि आँख ने मुझको किया खराब, कहती है आँख यह कि मुझे दिल ने खो दिया, लगता नहीं पता कि सही कौन सी है बात, दोनों ने मिल के “मीर” हमें तो डुबो दिया “

(वरिष्ठ पत्रकार नवल किशोर सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)