AAP को केजरीवाल को दोष देना चाहिए, चुनाव आयोग ने तो अपना काम किया
AAP के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश EC ने की है, इस पर आप नेता गलत लोगों पर हमला कर रहे हैं, सवाल तो केजरीवाल से पूछना चाहिए।
New Delhi, Jan 20: आम आदमी पार्टी को जो झटका चुनाव आयोग ने दिया है वो ऐसा झटका नहीं था जिसका अंदेशा नहीं था. दिल्ली में सरकार बनाने के बाद जब मार्च 2015 में केजरीवाल ने AAP के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था, तो उसी दिन से ये तलवार लटक रही है, संसदीय सचिव लाभ का पद माना जाता है, वैसे नियमों के मुताबिक दिल्ली में केवल एक ही संसदीय सचिव बनाया जा सकता है. लेकिन केजरीवाल सरकार ने 21 विधायकों को ये पद दे दिया. उस समय कहा गया कि विधायक सरकारी काम सीख सकेंगे, जनता की बातों को सरकार तक आसानी से पहुंचा सकेंगे। उसी समय इसके फैसले के खिलाफ बीजेपी, कांग्रेस समेत कई लोगों विरोध किया. चुनाव आयोग में याचिकाएं डाली गईं।
AAP के सर्वोच्च नेता अरविंद केजरीवाल ने संसदीय सचिव के पद पर विवाद बढ़ता देख बचने का एक तरीका निकाला, केजरीवाल सरकार ने दिल्ली असेंबली रिमूवल ऑफ डिस्क्वॉलिफिकेशन ऐक्ट-1997 में संशोधन किया, इस संशोधन का मकसद संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद से हटाना था। हालांकि इसे तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने नामंजूर कर दिया था। अगर इसे राष्ट्रपति से मंजूरी मिल जाती तो केजरीवाल का प्लान सफल हो जाता। लेकिन वो हो नहीं पाया, और आज की तारीख में आप के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होने के कगार पर है। आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग के इस फैसले की जमकर निंदा की है, आप नेता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने आशा के अनुरूप मुख्य चुनाव आयुक्त को पीएम मोदी की कठपुतली करार देते हुए कहा कि वो मोदी का कर्ज उतार रहे हैं, रिटायरमेंट से पहले वो मोदी की गुडबुक्स में आने के लिए ये फैसला किए हैं।
वहीं आप नेता और राज्यसभा जाते जाते रह जाने वाले आशुतोष ने भी चुनाव आयोग पर हमला किया है। आशुतोष ने कहा कि वो बतौर पत्रकार चुनाव आयोग को कवर कर चुके हैं, लेकिन ये बेहद दुखद है कि चुनाव आयोग आज इतना नीचे गिर गया है। सौरभा भारद्वाज का ये भी कहना है कि चुनाव आयोग ने अपना फैसला सुनाने से पहले किसी भी विधायक की गवाही नहीं सुनी, बिना विधायकों की बात सुने आयोग ने अपनी सिफारिश राष्ट्रपति को भेज दी है। बता दें कि AAP नेताओं ने इस मामले में हाईकोर्ट में पहले से याचिका दाखिल कर रखी हैं। कुल मिलाकर जैसा उम्मीद थी वैसा ही हो रहा है, आप की ये रणनीति नई नहीं है, पार्टी के खिलाफ कुछ भी हो तो फौरन मोदी पर हमला शुरू कर दो।
यहां पर कुछ बातों पर आम आदमी पार्टी को खुद मंथन करना होगा. केजरीवाल ने जब 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था. तो उन्हे नियमों की पूरी जानकारी थी, ऐसा नहीं है कि वो मुगालते में ये फैसला कर बैठे हों, कानूनी जानकारी होने के बाद भी वो अपने फैसले पर अड़े रहे। अब सदस्यता रद्द हो रही है तो आप मोदी और चुनाव आयोग पर निशाना साध रहे हैं, इन दोनों से सलाह लेकर तो केजरीवाल ने संसदीय सचिव नियुक्त नहीं किए थे। आप के नेताओं को सबसे पहले केजरीवाल से सवाल पूछना चाहिए कि उन्होंने ऐसा क्यों किया था। दिल्ली में सरकार की ताकतों और संविधान प्रदत्त अधिकारों के बारे में केजरीवाल पता था, इसके बाद भी वो नियमों को तोड़ते रहे, उनके साथ खिलवाड़ करते रहे, ऐसे में आप के 20 विधायकों के सबसे बड़े कसूरवार तो खुद केजरीवाल हैं।