नवजोत सिंह सिद्धू को ले डूबेगा उनका ‘अहंकार’ ?
नवजोत सिंह सिद्धू अभी पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। लेकिन, कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार में वो साइडलाइन चल रहे हैं। जानिए क्यों ?
New Delhi Jan 27 : हो सकता है कि आप हमारी बातों से सहमत ना हों। जो लोग सहमत हों ठीक हैं। लेकिन, जो लोग सहमत ना हों उन्हें नवजोत सिंह सिद्धू के अहंकार के बारे में एक बार जरुर से विचार कर लेना चाहिए। हो सकता है कि आपको लगाता हो कि नवजोत सिंह सिद्धू अहंकारी नहीं है। लेकिन, हमें लगता है कि वो अहंकारी हैं। अहंकार की वजह से ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का साथ छोड़ दिया। अहंकार की वजह से ही उन्होंने केजरीवाल से बनी बनाई बात बिगाड़ ली। अहंकार की वजह से ही उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की और आज उसी अहंकार की वजह से वो इस पार्टी में साइड लाइन चल रहे हैं। हर कोई जानता है कि नवजोत सिंह सिद्धू बहुत ही खुशमिजाज व्यक्ति हैं। हमेशा अपनी बातों से लोगों को खुश रखने की कोशिश करते हैं। लेकिन, लगता है कि सिद्धू के जीवन का सिर्फ यही एक मात्र पहलू नहीं है। दूसरा पहलू अहंकार है।
आपको ध्यान होगा जब सितंबर 2016 में नवजोत सिंह सिद्धू ने भारतीय जनता पार्टी को खूब खरी खोटी सुनाकर पार्टी छोड़ दी थी। इससे पहले जुलाई 2016 में उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। लेकिन, कम से कम हमें ऐसा कुछ भी ध्यान नहीं पड़ता है कि कभी बीजेपी के किसी नेता ने नवजोत सिंह सिद्धू की बुराई की हो। या फिर उन पर निशाना साधा हो। ना उनके पार्टी छोड़ने से पहले और ना पार्टी से जाने के बाद। हमेशा बीजेपी उन पर बयान देने से बचती रही। दरअसल, साल 2014 में सिद्धू भी लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन, बीजेपी ने उनकी सीट से अरुण जेटली को चुनाव लड़ा दिया था। पार्टी के प्रति नवजोत सिंह सिद्धू की नाराजगी तभी से बढ़ गई थी। मोदी की आंधी में भी अरुण जेटली चुनाव हार गए थे। फिर भी उन्हें राज्यसभा से इंट्री देकर मोदी सरकार में बड़ा पद दिया गया।
लेकिन, अन्याय नवजोत सिंह सिद्धू के साथ भी नहीं हुआ। उन्होंने बीजेपी ने राज्यसभा पहुंचाया। लेकिन, अपने अहंकार के चलते उन्होंने जुलाई 2016 में पहले राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया और बाद में पार्टी ही छोड़ दी। इसके बाद उनकी बात चीत आम आदमी पार्टी से शुरु हो गई। उस वक्त पंजाब विधानसभा चुनाव सिर पर थे। साल 2017 के ही शुरुआत में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने थे। जिसमें पंजाब भी शामिल था। सूत्र बताते हैं कि केजरीवाल ने नवजोत सिंह सिद्धू की लगभग सभी मांगों को मान लिया था। लेकिन, सिद्धू चाहते थे कि उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद दिया जाए। उस वक्त सिद्धू के मन में इस बात का अहंकार था कि वो जिस दल के साथ जाएंगी जीत उसी की होगी। सिद्धू के अहंकार की वजह से ही उनकी बात चीत आम आदमी पार्टी से भी नहीं बन सकी।
जनवरी 2017 का वक्त था। पांच राज्यों में चुनाव का शंखनाद बज चुका था। सिद्धू के पास भी कोई ऑप्शन नहीं बच रहा था। बाद में बात राहुल गांधी से हुई। कैप्टन अमरिंदर सिंह की इच्छा के विरुद्ध उन्हें पार्टी में तो शामिल करा दिया गया। लेकिन, यहां पर भी कैप्टन अमरिंदर सिंह से उनके अहंकार का टकराव होता रहा। पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी। लेकिन, सिद्धू को उपमुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। कैबिनेट में ही शामिल किया गया। उस वक्त भी सिद्धू नाराज हुए। बाद में विभागों के बंटवारे को लेकर भी उनकी नाराजगी सामने आई। यहां तक की कपिल शर्मा के कॉमेडी शो में काम करने को लेकर भी उन्होंने अपनी मनमर्जी चलाने की कोशिश की। ये उनका अहंकार ही था जो ये कहता था कि वो रात में क्या करते हैं किसी को क्या मतलब। हार यहां पर भी सिद्धू की ही हुई। अब पंजाब में नगर निकाय चुनाव और मेयरों के चुनाव में उन्हें साइडलाइन कर दिया गया। सिद्धू को ये बात समझनी होगी कि अमूमन नेता संगठन से बड़ा नहीं होता। हर चीज में जिद अच्छी नहीं। ज्यादा अहंकार ठीक नहीं।