आम बजट: किसानों और गरीबों के लिए “अच्छे दिन” अगर अमल हो

इस बार के आम बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्ट रूप से कहा कि देश के 50 करोड लोगों को इस योजना का लाभ मिलेगा

New Delhi, Feb 03: सरकार ने किसानों को उनकी लागत का १५० प्रतिशत समर्थन मूल्य देने का जो वादा इस बजट में किया है वह खरीफ की फसल से लागू होगा और इस साल के खरीफ की खरीददारी लगभग ख़त्म हो चुकी है लिहाज़ा यह अगले खरीफ से हीं लागू हो सकेगा याने अगले नवम्बर के आसपास. इन लोगों के अनुसार मोदी सरकार अगर चुनाव अक्टूबर माह के आसपास कराती है तो यह वायदा कभी पूरा नहीं हो सकेगा आम बजट २०१८, जो वर्तमान मोदी सरकार का आखिरी पूर्ण बजट है, सरकार की चुनाव -पूर्व मंशा का बेहद जटिल दस्तावेज है. इसमें सरकार ने शहरी मध्यम व् उच्च वर्ग की अपेक्षाओं को लगभग नज़रंदाज़ करते हुए बृहत ग्रामीण भारत पर अपना दांव लगाया है. शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात चुनाव के बाद यह अहसास हुआ कि किसानों को नाराज़ कर वह चुनाव की वैतरणी पर नहीं कर पाएंगे. यही वजह है कि इस बजट पर  आपको दो तरह की प्रतिक्रिया देखने को मिलगी. शहरी माध्यम व उच्च वर्ग इससे निराश हुआ है और इसका तत्काल परिणाम सेंसेक्स में आयी ४०० पॉइंट की गिरावत से साफ़ जाहिर हुआ. लेकिन गहराई से और निरपेक्ष भाव से किया गए विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि आम बजट में जो घोषणाएं की गयी है

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वे ग्रामीण भारत के लिए पिछले कई दशकों से अपेक्षित अनोखा व सकारात्मक प्रबद्धता से इस सरकार को बांधती है और भारत के कृषि के लिए यह क्रांतिकारी आम बजट कहा जा सकता है. किसानों के लागत मूल्य पर ५० प्रतिशत बढ़ा कर उनके उत्पाद की खरीद करने की सरकारी प्रतिबद्धता और १० करोड गरीब परिवारों (याने ५० करोड लोगों को) को पांच लाख का स्वास्थ्य बीमा शायद एक मजबूत अर्थ-व्यवस्था की सामाजिक सुरक्षा की दिशा में पहली जरूरत थी. कहना न होगा कि इन १० करोड़ गरीब परिवारों में किसान , मजदूर और निम्न आय वर्ग का बड़ा तबका लाभान्वित होगा.   लेकिन यहाँ पर एक पेंच है. जो लोग सरकार की मंशा पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं उनका कहना है कि सरकार ने किसानों को उनकी लागत का १५० प्रतिशत समर्थन मूल्य देने का जो वादा इस आम बजट में किया है वह खरीफ की फसल से लागू होगा और इस साल के खरीफ की खरीददारी लगभग ख़त्म हो चुकी है लिहाज़ा यह अगले खरीफ से हीं लागू हो सकेगा याने अगले नवम्बर के आसपास. इन लोगों के अनुसार मोदी सरकार अगर चुनाव अक्टूबर माह के आसपास कराती है तो यह वायदा कभी पूरा नहीं हो सकेगा. लेकिन जो सरकार की मंशा में विश्वास रखते हैं उनके अनुसार कोई भी सरकार जो चुनाव जीतना चाहती है और जो नाराज किसानों को खुश करना चाहती है वह इस वायदे से मुकरने पर किसानों के आक्रोश का शिकार हो सकती है.

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इनका मानना है कि आगामी रबी की फसल के दौरान भी वह अपने वादे को पूरा करना चाहेगी. एक अनुमान के अनुसार इसमें सरकार का कुल खर्च लगभग ६० हज़ार करोड आयेगा. चुनाव पूर्व ऐसा खर्च किसी सरकार के लिए कोई बहुत मुश्किल काम नहीं होगा. रबी की फसल की खरीददारी आगामी अप्रैल माह से शुरू होनी है. और यह वादा खिलाफी सरकार को बेहद महंगी पड़ सकती है. सरकार में बैठे लोगों का यह कहना है कि इस बार मोदी सरकार किसानों की अनदेखी शायद हीं कर पाए. ध्यान देने की बात है कि दो दिन पहले संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने साफ़ तौर पर माना था कि किसानों की वास्तविक आय पिछले चार सालों में नहीं बढी है. पहली बार किसानों के उत्पाद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को लागत के ५० प्रतिशत ज्यादा देने का संकल्प जो फिलहाल खरीफ की फसलों पर लागू होगा कृषि की बेहतरी की दिशा में एक बड़ा कदम है. ऐसा वादा सन २०१४ के चुनाव के घोषणा पत्र में किया गया था लेकिन अगले हीं वर्ष सरकार इससे मुकर गयी और सुप्रीम कोर्ट में अपने हलफनामे में सरकारी पक्ष ने इसे देने में अपनी असमर्थता व्यक्त की थी. विपक्षी दलों ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया था. जाहिर है खरीफ की फसल की सरकारी खरीददारी अब अवसान पर है

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लेकिन चूंकि सन २०१९ में चुनाव होने हैं लिहाज़ा अप्रैल माह से शुरू होने वाले रबी की खरीददारी में इस सरकार को यह योजना बहाल करनी हीं होगी. इसका मतलब यह हुआ कि आने वाले कृषि उत्पादों पर किसान को इस चिर-अपेक्षित मांग का बड़ा लाभ मिलना लगभग तय है. किसानों की फसल का लागत मूल्य तय करने का काम सी ए सी पी नाम की संस्था करती है. और इसे दो पैमानों पर मापा जाता है — ए -२ और सी -२ . स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के अनुसार सी -२ पैमाने पर जिसमें किसान और उसके परिवार का अपना श्रम और जमीन की कीमत भी शामिल है सम्मिलित होता है. अगर यह मान लिया जाये कि सरकार ए -२ के आधार पर हीं कीमतें सुनिश्चित करेंगी तो भी यह किसानों के लिए एक बड़ी राहत होगी. उदाहरण के तौर पर    धान की कीमत सी -२ आधारित फार्मूले के अनुसार १४२६ रुपये प्रति कुंतल है और अगर इस पर ५० प्रतिशत बढ़ा कर समर्थन मूल्य तय किया गया तो धान का समर्थन मूल्य लगभग २१३९ रुपये प्रति कुंतल होगा. भारत के इतिहास में इतना बड़ा लाभ किसानों को आज तक नहीं मिला है. इस गणना को अगर आगामी रबी और खासकर गेहूं की फसल पर लागू किया गया तो गेंहू का समर्थन मूल्य भी करीब १९०० रुपये प्रति कुंतल हो जाएगा . उत्तर भारत के किसानों के लिए, जहाँ गेंहू की खेती सबसे ज्यादा होती है, यह वरदान साबित होगा. यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने बजट के तत्काल बाद के अपनी प्रतिक्रिया में बताया कि आम बजट में लगभग १४.५ लाख करोड़ रुपये ग्रामीण भारत के कल्याण पर खर्च किये जा रहे हैं . उनका जोर इस बात पर था कि किसानों के लिए बढ़ा समर्थन मूल्य एक बड़ी न्यामत सरकार की ओर से ग्रामीणों को है.

सरकार के पास एक तरफ कुआं था और दूसरी तरफ खाई. अगर मध्यम और उच्च वर्ग को खुश करने के लिए आय -कर और कारपोरेशन कर में अपेक्षित छूट देती तो राजस्व कम आता और तब कल्याणकारी योजनाओं के लिए खर्च करने का मतलब होता राजस्व घाटे में भारी बढ़ोत्तरी जो किसी भी अर्थ व्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता. दूसरी और अगर किसानों के लिए और गरीबों के लिए अपना पिटारा न खोलती तो मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग मुंह फेर लेता . ऐसे में मोदी सरकार ने दूसरा विकल्प चुना.  अगर किसी गरीब का पांच लाख रुपये तक का इलाज़ सरकार की किसी योजना से मुफ्त होने लगे तो यह आज़ाद भारत में सामाजिक सुरक्षा का एक बड़ा मकाम कहा जा सकता है. इस बार के आम बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्ट रूप से कहा कि देश के ५० करोड लोगों को इस योजन का लाभ मिलेगा. क्या कोई सरकार चुनाव के पूर्व के वर्ष में यह हिमाकत करेगी कि ऐसा वादा करे और फिर मुकर जाये या उचित क्रियान्वयन न करे ?

शहरी उच्च व् मध्यम वर्ग इस बात से भी निराश हुआ कि जहाँ एक ओर बैंक में जमा पूंजी पर ब्याज दरें लगातार कम हो रही हों और इस वर्ग को मजबूर हो कर अपना पैसा म्यूच्यूअल फण्ड में या इक्विटी में लगाना पड़ रहा है वहीं आज के बजट में म्यूच्यूअल फण्ड से होने वाले एक लाख से अधित के लाभ पर १० प्रतिशत टैक्स का प्रावधान कर दिया है. नाराजगी का दूसरा कारण है “इस हाथ से देने और उस हाथ से लेने “ की नीति जो इस बजट में दिखाई दी. जहाँ इनकम टैक्स में नौकरी पेशा लोगों के लिए ४० हज़ार का स्टैण्डर्ड डिडक्शन का प्रावधान कर २.९० लाख (पहले २.५० था) तक करमुक्त किया गया है वहीं मेडिकल और ट्रांसपोर्ट पर मिलाने वाले ३० हज़ार रुपये तक के छूट को समाप्त कर दिया गया है याने कुल लाभ महज १० हज़ार रुपये तक के छूट का ही रहा.  बहरहाल इस आम बजट से मोदी सरकार अब वचनबद्ध हो चुकी है कि या तो किसानों के रबी के उपज का समर्थन मूल्य अगले अप्रैल से ५० बढ़ाये या आठ राज्यों के चुनाव में हीं नहीं बल्कि २०१९ के आम चुनाव में भी किसानों और खेतिहर मजदूरों के कोपभाजन बने. एक साल बीतने में ज्यादा वक्त नहीं लगता और नहीं वर्तमान सरकार को पूर्ण बजट पेश करने का फिर मौका मिलेगा.  

(वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार एनके सिंह के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)