‘पीएम मोदी का विरोध जरा संभलकर कीजिए, सवाल वैश्विक पहचान का है’

डॉक्टर नीलम महेंद्र ने आम बजट के बाद एक ब्लॉ़ग लिखा है। पीएम मोदी का विरोध करने वालों के लिए उन्होंने ये बातें लिखी हैं। आप भी पढ़िए

New Delhi, Feb 03: “साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार सार को गहि रहै थोथा दे उड़ाय।। “कबीर दास जी भले ही यह कह गए हों,लेकिन आज सोशल मीडिया का जमाना है जहाँ किसी भी बात पर  ट्रेन्डिंग और ट्रोलिंग  का चलन है। कहने का आशय तो आप समझ ही चुके होंगे। जी हाँ, विषय है पीएम मोदी का वह बयान जिसमें वो  “पकौड़े बेचने” को रोजगार की संज्ञा दे रहे हैं। हालांकि इस पर देश भर में विभिन्न प्रतिक्रियाएँ आईं लेकिन सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया देश के पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बयान ने  जिसमें वो इस क्रम में भीख माँगने को भी रोजगार कह रहे हैं। विपक्ष में होने के नाते उनसे अपनी विरोधी पार्टी के प्रधानमंत्री के बयानों का विरोध अपेक्षित भी है और स्वीकार्य भी किन्तु  देश के भूतपूर्व वित्त मंत्री होने के नाते उनका विरोध तर्कयुक्त एवं युक्तिसंगत हो, इसकी भी अपेक्षा है।

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यह तो असंभव है कि वे  रोजगार और भीख माँगने के अन्तर को न समझते हों लेकिन फिर भी इस प्रकार के स्तरहीन तर्कों से विरोध केवल राजनीति के गिरते स्तर को ही दर्शाता है। सिर्फ चिदंबरम ही नहीं देश के अनेक नौजवानों ने पकौड़ों के ठेले लगाकर प्रधानमंत्री के इस बयान का विरोध किया। हार्दिक पटेल ने तो सभी हदें पार करते हुए यहां तक कहा कि इस प्रकार की सलाह तो एक चाय वाला ही दे सकता है। वैसे “आरक्षण की भीख ” के अधिकार के लिए लड़ने वाले एक 24 साल के नौजवान से भी शायद इससे बेहतर प्रतिक्रिया की अपेक्षा नहीं थी। गरीब पैदा होना आपकी गलती नहीं है लेकिन गरीब मरना आपका अपराध है” बिल गेट्स , माइक्रोसोफ्ट के अध्यक्ष एवं पर्सनल कम्प्यूटर क्रांति के अग्रिम उद्यमी के यह शब्द अपने भीतर कहने के लिए कम लेकिन समझने के लिए काफी कुछ समेटे हैं।

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यह बात सही है कि हमारे देश में बेरोजगारी एक बहुत ही बड़ी समस्या है लेकिन पूरे विश्व में एक हमारे ही देश में बेरोजगारी की समस्या हो,ऐसा नहीं है। जिस देश में जाति व्यवस्था आज भी  केवल एक राजनैतिक हथियार नहीं बल्कि समाज में अमीर गरीब से परे ऊँच नीच का आधार है उस देश में ब्राह्मण राजपूत ठाकुर आदि जातियों तक के युवकों में सरकारी चपरासी तक बनने की होड़ क्यों लग जाती है?ईमानदारी से सोच कर देखिए, यह समस्या बेरोजगारी की नहीं मक्कारी की है जनाब!क्योंकि आज सबको हराम दाड़ लग चुकी है। सबको बिना काम के बिना मेहनत के सरकारी तनख्वाह चाहिए और इसलिए प्रधानमंत्री का यह बयान उन लोगों को ही बुरा लगा जो बेरोजगार बैठकर सरकार और अपने नसीब को तो कोस सकते हैं, जाति और धर्म का कार्ड खेल सकते हैं लेकिन गीता पर विश्वास नहीं रखते, कर्म से अपना और अपने देश का नसीब बदलने में नहीं देश को कोसने में समय बरबाद कर सकते हैं।

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शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि रिलायंस समूह जो कि आज देश का सबसे बड़ा औद्योगिक घराना है, उसकी शुरुआत पकौड़े बेचने से हुई थी। स्वयं गाँधी जी कहते थे कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता सोच होती है। आज जरूरत देश के नौजवानों को अपनी सोच बदलने की है। आज समय इंतजार करने का नहीं उठ खड़े होने का है। आवश्यकता है देश के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पीएम मोदी की बात समझने की न कि तर्क हीन बातें करने की।इस बात को समझने की, कि जीतने वाले कोई अलग काम नहीं करते बल्कि उसी काम को “अलग तरीके”  से करते हैं, शिव खेडा। मोदी जी के विरोधियों को एक सलाह, कि वे मोदी विरोध जरा संभल कर करें क्योंकि मोदी भारतीय चाय, खिचड़ी और योग को विश्व में स्वीकार्यता दिलाने का श्रेय पहले ही ले चुके हैं अब उनके विरोधी भारतीय  पकौड़ों को भी वैश्विक पहचान दिलाने का श्रेय उन्हीं के नाम करने पर तुले हैं। (डॉक्टर नीलम महेंद्र के ब्लॉग से साभार। ये लेखक के निजी विचार हैं।)