जनहित के फैसलों से सत्ताधारी दल का नुकसान

जनहित के फैसलों से सत्ताधारी दल को भी नुकसान हो सकता है, ऐसे तीन उदाहरण हैं जब जनहित के फैसलों से सरकार के प्रति लोगों की नाराजगी बढ़ी।

New Delhi, Feb 06:  जगलाल चैधरी संभवतः देश के पहले सत्ताधारी नेता थे जिन्होंने जनहित में ऐसा निर्णय किया जिससे सबसे अधिक नुकसान उनकी ही जाति को हुआ।वह था नशाबंदी का निर्णय।चैधरी जी बिहार के आबकारी मंत्री थे। दूसरे नेता थे वी.पी.सिंह।प्रधान मंत्री बनने के बाद उन्होंने मंडल आरक्षण लागू किया।वे खुद अनारक्षित जाति से आते थे। तीसरे नेता नीतीश कुमार हैं जिन्होंने बिहार की सत्ता में आते ही पंचायतों में जो आरक्षण का निर्णय किया।उससे कुर्मी लोगों के मुखिया बनने के अवसर कम हो गए। मेरे कई कुर्मी मित्रों ने तब नीतीश कुमार से अपनी सख्त नाराजगी मेरे सामने प्रकट की थी। हालांकि ये तीनों निर्णय जनहित में थे। यदि ऐसा कोई और उदाहरण हो तो बताइएगा। हां, ऐसे निर्णयों के विरोधी जरूर यह बात जोड़ देते हैं कि राजनीतिक लाभ के लिए ये निर्णय हुए ।

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यदि राजनीतिक लाभ ही मिलना है तो अन्य नेता भी ऐसे निर्णय क्यों नहीं करते ? उन्हें भी तो लाभ मिलता।क्या वे वही काम करने के लिए राजनीति में हैं जिनसे उनकी जाति का कोई नुकसान न हो ?  पहली बार बिहार में नशाबंदी लागू करने वाले आबकारी मंत्री जगलाल चैधरी ने कहा था कि ‘जब मैं अपने बजट को देखता हूं तो मालूम होता है कि इस साल हम पंद्रह करोड़ रुपए खर्च करेंगे।इसमें हम पांच करोड़ रुपए तो गरीबों के पाॅकेट से उन्हें शराब पिला कर लेंगे।’ कट्टर गांधीवादी जगलाल चैधरी के नशाबंदी आदेश से सबसे अधिक नुकसान उनकी अपनी ही पासी जाति को हुआ था।पर इस बारे में वे कहते थे कि ‘यह समाज कोई और रोजगार करे।गरीब -दलित यदि शराब का व्यापार और शराब पीना छोड़ देंगे तो उनकी प्रतिष्ठा भी समाज में बढ़ेगी और उनकी गरीबी भी कम होगी।’

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पर उनके मंत्री नहीं रहने पर नशाबंदी का आदेश बिखर गया था। बाद के मंत्रिमंडल में जब उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया तो राजनीतिक हलकों में तब यह चर्चा थी कि शराबबंदी के पक्ष में उनके विशेष आग्रह के कारण ऐसा हुआ। इस आग्रह के कारण चैधरी जी पर कांग्रेस हाईकमान भी नाराज हो गया था।  याद रहे कि गांधी जी से प्रभावित होकर जगलाल चैधरी ने जब आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए पढ़ाई छोड़ दी तब वे कलकत्ता में मेडिकल छात्र थे ।उनका चैथा साल था।पर , उन्होंने कहा कि अब मेरे लिए इस पढ़ाई का कोई मतलब नहीं रहा।  संयोग से वे उस चुनाव क्षेत्र से लड़ते थे जहां मेरा पुश्तैनी गांव है। उन्हें मैंने अपने गांव में बचपन में देखा था।सादगी की प्रतिमूत्र्ति।वे लोगों से कहा करते थे कि आपलोग अंग्रेजी दवाओं से भरसक दूर रहें।

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खेतों में रासायनिक खादों के बदले जैविक खाद डालें।भूजल स्त्रोतों की रक्षा करें।यानी कम से कम ट्यूब वेल लगवाएं। एक और प्रकरण चैधरी जी की बेटी की शादी का है।वे बिहार में मंत्री थे।उनकी सरकार ने हाल में गेस्ट कंट्रोल एक्ट पास किया था। शायद उसके अनुसार अत्यंत सीमित संख्या में ही अतिथियों को ही बुलाने का नियम बनाया गया ।बारात आई।उतने ही लोगों का खाना बना। पर,बिना बुलाए कई अतिथि आ गए। नतीजतन खुद चैधरी जी के परिवार को उस रात भोजन नहीं मिला।चौधरी जी ने अतिरिक्त भोजन नहीं बनने दिया था। शादी को सम्मेलन बनाने वाले नेताओं के आज के दौर में  जगलाल चैधरी याद आते हैं।हालांकि गेस्ट कंट्रोल एक्ट आज भी लागू है ,पर सिर्फ कागज पर।

(वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार सुरेंद्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)