सामाजिक मुद्दे बाजार का नया खुराक हैं, पीरियड एक फिल्म भर का मुद्दा नहीं है
देश की करोड़ो गरीब लड़कियों को माहवारी के दिनों में नैपकीन नहीं बस सूती का एक साफ कपड़ा चाहिए।
New Delhi, Feb 06 : सामाजिक मुद्दे बाजार का नया खुराक हैं. तभी शौचालय से लेकर सेनेटरी नैपकीन के मुद्दे को भुना कर तीन सौ करोड़ कमाने वाली फिल्म बनाने की कोशिश की जाती है और इस कोशिश में असली मुद्दा कब हाथ से छूट जाता है. समझ नहीं आता. अरुणाचलम मुरुगनाथम ने देश भर की गरीब महिलाओं के लिए बाजार में सस्ते सेनेटरी नैपकीन बनाने की मशीन का ईजाद किया. मकसद था, महंगी ब्रांडेड नैपकीन कंपनियों का विकल्प तैयार करना. इसलिए उन्होंने अपनी मशीन सिर्फ स्वयंसेवी संस्थाओं को ही बेची.
मगर आज उनके जीवन पर बनी फिल्म पैडमैन इन्हीं बड़ी ब्रांडेड सेनेटरी नैपकीन कंपनियों का कारोबार बढ़ाने और उसे ट्रेंड में लाने का जरिया बन रही हैं. सच तो यह है कि देश की करोड़ो गरीब लड़कियों को माहवारी के दिनों में नैपकीन नहीं बस सूती का एक साफ कपड़ा चाहिए. यह काम गूंज जैसी संस्थाएं लंबे समय से कर रही हैं.
नैपकीन बांटना, बेचना और मुफ्त उपलब्ध कराना माहवारी के दिनों की स्वच्छता का समाधान नहीं है. न ही सोशल मीडिया पर पैड के साथ फोटो खिंचवाना. मसला सिर्फ सफाई है और साफ कपड़े की उपलब्धता है.
कोई मैले कपड़े, बार-बार इस्तेमाल हुए कपड़े, सिंथेटिक साड़ियां या जरूरी होने पर पॉलिथीन तक का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर न हो. इसको लेकर जो टैबू है वह खत्म हो. ये कपड़े खुली हवा में सुखाये जा सकें…