किस्से का लुब्बोलुबाब ये है कि आदतें नस्ल बता देती हैं

सियासी ने बताया – चालचलन से बेगम दुरुस्त तो हैं पर बादशाही नस्ल की नही हैं । बादशाह को हैरानी हुई।

New Delhi, Feb 09 : हैसियत और औकात के दरम्यान एक फासला होता है , जब हम इस फ़ासले को नही समझ पाते तब फिसल जाते हैं और फिसलते जाते हैं । हमे एक किस्सा मिला है ,उसे सुनिये , दाद हमे नही उस किस्सागो को दीजिएगा जिसने हमे सुनाया है । जस का तस नही है , बयान इस खादिम का है लेकिन रूह वही है ।
किस्से का लुब्बेलुबाब ये है कि आदतें नस्ल बता देती हैं ।
एक जनाब मुलाजमत के लिए बादशाह के दरबार मे हाजिर हुए और नौकरी की बात की । बादशाह ने पूछा तुम्हारे पास इल्म क्या है ? खादिम ने फरमाया – सियासी हूँ । लगे हाथ सियासी भी जान लीजिए . ( अक्ल व तबद्दूर से मसला हल करने वाले मामला फाह्म को कहते हैं । )
बादशाह ने अस्तबल का इंचार्ज बना दिया । एक दिन बादशाह ने उस सियासी से अपने पसंदीदा घोड़े के बारे में पूछा , जिस पर उसे नाज था । कैसा है वह घोड़ा ?

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जवाब मिला , – सब तो ठीक है पर घोड़ा नस्ली नही है । बादशाह ने जंगल से साईस से पूछा तो साईस ने बताया कि हुजर घोड़ा तो दुरुस्त है पर जब यह पैदा हुआ तो इसकी मा मर गयी चुनांचे इसे गाय का दूध पिला कर बड़ा किया गया । बादशाह हैरान हुआ और सियासी से पूछा तुम्हे कैसे मालूम कि यह नस्ली नही है ? सियासी ने बताया – हुजर जब इसके सामने घास डाली जाती है तो यह सिर नीचे करके ही खाता है जब कि नस्ली घोड़े घास मुह में भर कर सिर ऊपर उठाये रखते हैं । बादशाह खुश हुए और सियासी के घर ढेर सारे बकरियां , गोश्त , अनाज वगैरह भेज दिए और उसकी ड्यूटी जनानखाने में बेगम के पास लगा दिया । कुछ दिन बाद बेगम के बारे में पूछा ।

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सियासी ने बताया – चालचलन से बेगम दुरुस्त तो हैं पर बादशाही नस्ल की नही हैं । बादशाह को हैरानी हुई , और बादशाह ने बेगम की वालिदा से दरियाफ्त की तो यह सच साबित हुआ । बेगम की वालिदा ने बताया कि आप के वालिद और हमारे खाविंद के बीच एक करार हुआ था कि हमारी बेटी बादशाह के घर जाएगी । लेकिन पैदा होने के छह महीने के अंदर ही बेटी मर गयी । लेकिन हम बादशाह से रिश्ता बनाये रखना चाहते थे सो दूसरे की बेटी लेकर शहजादी बना दिया । बादशाह वापस आकर सियासी से पूछा – तुम्हे कैसे मालूम कि वहः शहजादी नही है ? सियासी ने बताया – हुजुर ! उनका व्यवहार अपने खादिमों के साथ बिल्कुल बेहूदा होता है और बदतर ढंग से पेश आती हैं , यह किसी शहजादी के सलीका से बाहर है ।
बादशाह खुश हुआ और फिर वही भेड़ बकरियों का गोश्त ,अनाज वगैरह दिया और सियासी को अपने पास रख लिया । एक दिन बादशाह ने अपने बारे में पूछा ।

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सियासी ने कहा हुजुर ! जान की अमान ? ( जान की हिफाजत तो रहेगी ? ) बादशाह ने अमान दे दिया । सियासी ने कहा – हुजर ! न तो आप बादशाह हो , न ही आपकी चलन बादशाहत की है । बादशाह को गुस्सा तो आया लेकिन जान की अमान दे चुके थे । बादशाह अपनी वालिदा के पास गए और पूछा असलियत? तो वालिदा ने असलियत बता दिया कि चुकी हमारे कोई औलाद नही थी सो हमने एक चरवाहे से उसकी औलाद ले लिया जो कि तुम हो । बादशाह ने लौट कर सियासी को बुलाया और पूछा – तुम्हे कैसे मालूम कि हम बादशाह नई हैं ?
सियासी ने बताया – तुम्हारी हरकते , तुम्हारी जासूसी सोच , हर एक पर शक यह बादशाह नही करता , और जब तुम खुश होते तो भुने हुए गोश्त , अनाज बकरी यही सब देते , यह बादशाह नही कर सकता , कोई चरवाहा ही कर सकताहै ।
याद रखना हैसियत और औकात दो अलहदा सलीका है ।
ओहदा बाहरी मुलम्मा है । असलियत अंदर से झांक जाती है । चायवाला पकौड़े तक ही जयगा ।

(Chanchal BHU के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)