समरसता, समझ और सलीका घर से मिलता है, कपड़े की दुकान पर नही

मर्यादा तो यह होती आप रेणुका जी से पूछते क्यों हँस रही हैं ? रेणुका जी कारण बताती, आप उसका जवाब देते।

New Delhi, Feb 09 : हम, हमारे जैसे समझ वाले सिरफिरे दीवाने रेणुका जी की हंसी को जायज मानते हैं । जो रेणुका जी की हंसी के बर खिलाफ हैं उनके जो तर्क हैं हम उनपर सवाल उठाते हैं , जवाब हमे दीजिएगा। वे प्रधानमंत्री हैं , ओहदे की मर्यादा होती है ।
इससे कौन असहमत है या हो सकता है कि प्रधानमंत्री के पद की एक मर्यादा है उसका ख्याल रखा जाना चाहिए । सिवाय मोदी जी के । मोदी जी को कब मालूम हुआ कि प्रधानमंत्री की एक मर्यादा होती है ? डॉ मनमोहन सिंह भी प्रधानमंत्री थे उस समय मोदी जी को यह नही मालूम था ? गिनाउं कितनी बार मर्यादा का ख्याल रखा है मोदी जी ने ? चलिये हम यह नही आस्थापित कर रहे कि ‘ आंख के बदले आंख ‘ । आपने ऐसा किया है तो हम भी ऐसा कर रहे हैं ,हम इसके हामी नही रहे । 

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प्रधानमंत्री की भी मर्यादा होती है जिसे प्रधानमंत्री को निभाना होता है । संसद के अंदर या संसद के बाहर मोदी जी का आचरण , उनकी भाषा कई बार मर्यादा की लकीर तोड़ कर बाहर गई है । जिस सवाल पर रेणुका जी हंसी है उसी दिन को देखिए । लोक सभा मे प्रधानमंत्री का भाषण क्या था ? राष्ट्रपति ने जो बोला है ,उसे केंद्र में रख कर बोलना था ,आप राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद देना था और आप लगे अनाप शनाप बोलने । जनाबेआली ! इतना भी भूल गए कि सारी दुनिया आपको सुन रही है । रेणुका जी अकेले नही हँस रही थी बहुत से और लोग भी थे । 

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मर्यादा तो यह होती आप रेणुका जी से पूछते क्यों हँस रही हैं ? रेणुका जी कारण बताती , आप उसका जवाब देते । लेकिन आप जानते थे रेणुका जी क्या पूछती । और शायद उसका जवाब आप के पास नही था । क्यों कि मोदी जी सुन चुके थे कांग्रेस का सवाल , राहुल गांधी से । रफेल, बेरोजगारी , आर्थिक तंगी वगैरह । 

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आखिर में एक वाक्या और सुन लीजिए , स्वर्गीय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे , सदन में बोल रहे थे , उनके हर वाक्य के बीच रेणुका जी बोल देती : मेरा भारत महान ‘ यह राजीव जी का ही दिया हुआ नारा है । राजीव जी सुनते और मुस्कुराकर आगे बोलने लगते । अंत मे राजीव जी को पूछना ही पड़ा – रेणुका जी आपका सवाल ? रेणुका जी ने याद दिलाया ,आपने आंध्र के लिए एक वायदा किया था । प्रधानमंत्री ने स्वीकारा ही नही तुरत पूरा किया और एक शब्द कहा – रेणुका जी ! आपकी तरह के लोग हमारी पार्टी में क्यों न ही हैं ? ।
समरसता ,समझ और सलीका घर से मिलता है , कपड़े की दुकान पर नही ।

(चंचल जी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)