अब मालदीव बनेगा ‘डोकलाम’, भारत-चीन में फिर खिंची तलवारें
डोकलाम के बाद एक बार फिर भारत और चीन के बीच वर्चस्व की जंग शुरु हो गई है। इस बार जंग मालदीव को लेकर है। जानिए क्या है पूरा विवाद।
New Delhi Feb 09 : मालदीव इस वक्त सत्ता के संघर्ष से गुजर रहा है। वहां के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने मालदीव में इमरजेंसी लगा दी। इसके साथ ही मालदीव के सुरक्षाबलों ने ना सिर्फ वहां की अदालत पर कब्जा किया। बल्कि चीफ जस्टिस समेत दो सीनियर जजों को भी गिरफ्तार कर लिया। इसके अलावा पूर्व राष्ट्रपति गयूम को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। भारत की निगाहें मालदीव के संकट पर गड़ गई हैं। हालांकि मालदीव की सरकार भारत को नकारने की कोशिश कर रही है। इस बीच चीन ने भी इस राजनैतिक संकट को लेकर अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। समुद्री निगरानी के लिए मालदीव को सबसे बेहतर माना जाता है। इस विवाद के बीच भारत और चीन के बीच भी यहां पर शक्ति संतुलन को लेकर जंग छिड़ती नजर आ रही है। माना जा रहा है कि मालदीव का राजनैतिक संगठन इस इलाके में दूसरे डोकलाम की तरह हो सकता है। ये आशंका चीन को भी भीतर ही भीतर खाए जा रही है।
मालदीव में राजनैतिक संकट उस वक्त गहराया था जब यहां की सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक कैदियों और विपक्षी नेताओं को जेल से रिहा करने के आदेश जारी कर दिए थे। हालांकि अब वहां की सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जजों ने सरकार के दवाब में आकर पहले लिया हुआ आदेश वापस ले लिया है। मालदीव के राजनैतिक हालातों को देखकर भारत भी चिंतित है। भारत सरकार का भी यही कहना है कि वहां के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को शीर्ष अदालत के फैसले को मानना चाहिए। उधर, चीन की ओर से चेतावनी दी जा रही है कि भारत इस विवाद से दूर ही रहे तो बेहतर होगा। वहां के चार लाख लोग इस विवाद को निपटाने में सक्षम हैं। किसी को भी इसमें दखल देने की कोई जरुरत नहीं है। चीन ने अभी पिछले साल ही मालदीव के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट साइन किया था। इसके बाद से ही राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का रुख भारत के प्रति बदल गया था। कुछ समय पहले ही उनकी सरकार की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लेख भी लिखा गया था।
दरअसल, एशिया में चीन और भारत प्रमुख भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। भारत यहां पर अमेरिका और जापान की मदद से अपना वर्चस्व बढ़ाना चाहता है। लेकिन, चीन को ये बात नागवार गुजरती है। चीन भी साउथ और साउथ ईस्ट एशिया में अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। जो भारत को पसंद नहीं है। वो श्रीलंका और पाकिस्तान को अपने साथ मिला रहा है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक हिंद महासागर क्षेत्र में हिंदुस्तान अपनी स्थिति मजबूती के साथ दर्ज कराना चाहता है। ऐसे में मालदीव उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि वहां के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की चीन से काफी नजदीकी है। जबकि राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की ओर से वहां की सुप्रीम कोर्ट के आदेश को खारिज कराए जाने से पहले वहां के निर्वासित पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने हिंदुस्तान से इस मामले में दखल देने की गुहार लगाई थी। मोहम्मद नशीद का कहना था कि भारत को यहां पर अपनी फौज भेजकर हालात संभालने चाहिए।
उधर, अमेरिका भी राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की ओर से मालदीव में लगाई गई इमरजेंसी की आलोचना कर रहा है। हालांकि बीते कुछ सालों से मालदीव राजनैतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है। 2013 में जब अब्दुल्ला यामीन ने यहां की सत्ता संभाली थी उसी वक्त से उन्होंने अपने विरोधियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंसना शुरु कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं लोगों की रिहाई के आदेश दिए थे। जिसके बाद सरकार ने सैन्य बलों की मदद से जजों को ही जेल पहुंचा दिया। इस बीच मालदीव चीन, पाकिस्तान और सऊदी अरब को अपना दोस्त मानते हुए वहां पर विशेष दूत भेज दिए हैं। जो वहां के हालातों के बारे में इन देशों के प्रमुखों को बताएंगे। भारत में अब्दुल्ला यामीन की ओर से कोई भी दूत नहीं भेजा गया है। आलोचना हुई तो अब यामीन सरकार कह रही है कि उन्हें भारतीय नेताओं ने वक्त ही नहीं दिया।