राहुल गांधी लौट आए पुराने फॉर्म में, हिंदुत्व का नाटक केवल गुजरात में था

राहुल गांधी ने गुजरात में टेंपल रन के जरिए खुद के लिए खतरनाक ट्रेंड सेट कर दिया है, वो अपनी ही चाल में फंसते जा रहे हैं, निकलना मुश्किल है।

New Delhi, Feb 10: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी राजनीति में प्रयोग कर रहे हैं, इसके चक्कर में वो जनता के सामने एक्सपोज होते जा रहे हैं, राहुल की राजनीति का अंदाज कुछ ऐसा है जिसे बच्चा भी समझ सकता है कि वो असल में क्या हैं और क्या दिखा रहे हैं। गुजरात में मंदिरों के चक्कर लगाने वाले राहुल ने एक खतरनाक ट्रेंड शुरू कर दिया है, जिसका नुकसान उनको ही उठाना पड़ेगा, चुनाव के दौरान मंदिर मंदिर खेलने वाले राहुल ने गुजरात के बाद से शायद ही मंदिरों के उतने दर्शन किए हों। कर्नाटक में चुनाव होने वाले हैं, कांग्रेस की परेशानी ये है कि यहां पर उसी की सरकार है. गुजरात में फ्री हो कर बीजेपी पर हमला करने वाले राहुल के सामने कर्नाटक में जनता को अपनी सरकार के काम बचाने की चुनौती है।

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काम बताने के अलावा बीजेपी के हिंदुत्व से भी पार पाना है, इसके लिए गुजरात वाला टेंपल रन फॉर्मूला काम नहीं आएगा, गुजरात में हिंदुत्व के दम पर चुनाव लड़ने वाले राहुल गांधी कर्नाटक में अपने पुराने स्वरूप में वापस आ गए हैं। नेताओं को इस तरह के प्रयोगों से बचना चाहिए जो राहुल कर रहे हैं, गुजरात में मंदिर के जरिए हिंदू वोटों को आकर्षित करकने वाले राहुल कर्नाटक में दूसरे धर्मों को तरजीह देते नजर आएंगे, वो भले ही ये कहें कि कांग्रेस सभी धर्मों का सम्मान करती है, लेकिन ये सम्मान केवल चुनाव के समय ही क्यों जागृत होता है। इन सवालों से राहुल बच नहीं पाएंगे, इसलिए कहा जा रहा है कि उन्होंने खुद के लिए खतरनाक ट्रेंड सेट कर दिया है,

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कर्नाटक में प्रचार के लिए राहुल गांधी जाने वाले हैं, तीन दिन के प्रचार के दौरान वो केवल तीन बड़े मंदिरों में जाएंगे, इसी के साथ वो दरगाह भी जाएंगे, सबसे पहले राहुल हुलीगम्मा मंदिर का दर्शन करेंगे, इसके बाद वो कोप्पल जिले के गवि सिद्देश्वरा मठ भी जा सकते हैं। खास बात ये है कि ये मठ लिंगायत समुदाय के लिए बहुत ही पवित्र माना जाता है। इनके बाद राहुल बीदर जिले के अभिनव मनटप्पा भी जाएंगे. ये मंदिर भी लिंगायत समुदाय के लिए काफी महत्वपूर्ण है। राहुल का प्रोग्राम बंदानवाज़ दरगाह पर जाने का भी है। राहुल के कार्यक्रम से बीजेपी को पर्याप्त मसाला मिल रहा है हमला करने के लिए. वो बीजेपी पर आरोप लगाते हैं कि वो धर्म के नाम पर सियासत करती है, लेकिन अब खुद राहुल धर्म के नाम पर राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं।

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तीन मंदिरों में दो लिंगायत समुदाय के लिए काफी अहम माने जाते हैं, लिंगायत समुदाय बीजेपी के पक्ष में ना जाए इसके लिए राहुल मंदिर के रूप में प्रतीक की राजनीति कर रहे हैं। गुजरात में सॉफट् हिंदुत्व की राह चलने वाले कांग्रेसी कर्नाटक में राहुल के दौरे को समावेशी हिंदुत्व कह रहे हैं, यानि अपनी सुविधा के हिसाब से हिंदुत्व में आगे या पीछे जोड़ घटाना चल रहा है। कांग्रेस के रणनीतिकार ये कह रहे हैं कि ये कामयाब होगा, लेकिन क्या जनता को कुछ समझ नहीं आ रहा है, क्या बीजेपी हाथ पर हाथ धरे बैठी रहेगी, राहुल भले ही कांग्रेस के अध्यक्ष के तौर पर पार्टी के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन अनुभव और सियासी दांव पेंच के मामले में वो मोदी और अमित शाह की जोड़ी से मीलों पीछे हैं। सोशल मीडिया के जरिए बनाई हवा ताश के पत्तों के किले की तरह होती है, राहुल को ये बात समझ लेनी चाहिए।