कैसे फिर लौटे बिहार पुलिस का अपना इकबाल ?

क्या बिहार सरकार यह निर्णय नहीं कर सकती कि वह पुलिस पर हमला करने वाले लोगों को कभी माफ नहीं करेगी ?

New Delhi, Feb 10 : साठ के दशक की बात है। बिहार के एक दबंग सत्ताधारी नेता ने अपने पड़ोसी की जमीन पर कब्जा कर लिया। पड़ोसी ने जब कब्जा हटा लेने की उनसे विनती की तो उन्होंने उसे जान से मार डालने की धमकी दे डाली। बेचारा पड़ोसी दीघा पुलिस थाने की शरण ली। दीघा थानेदार ने उस व्यक्ति के घर के आगे एक मुड़ेठा धारी सिपाही तैनात कर दिया। उसके हाथ में सिर्फ एक लाठी थी। पर सरकार की हनक, हैबत और इकबाल के लिए किसी वैसे सिपाही को ही तब पर्याप्त माना जाता था।

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उधर नेता जी उसी पर आग बबूला हो गए। उन्होंने मुख्य मंत्री से कह कर उस दारोगा का न सिर्फ तबादला करवा दिया बल्कि उसका डिमोशन भी करवा दिया। शायद वह घटना बिहार पुलिस का मनोबल तोड़ने के मामले में मील का पत्थर साबित हुई थी। पर क्या एक बार फिर पुलिस को पहले ही जैसा प्रतापी नहीं बनाया जा सकता ? वैसा क्यों नहीं हो सकता है ? पर उसकी कुछ शत्र्तें हैं।
लोकतंत्र की सफलता के लिए बेहतर कानून-व्यवस्था जरूरी—
अपहरण, चोरी और डकैती की घटनाएं तो चिंताजनक हैं ही। पर सबसे अधिक चिंताजनक बात है लगातार पुलिस पार्टी पर हमला।

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यानी पुलिस का प्रताप काफी घट गया है। इन दिनों जहां कहीं पुलिसकर्मी अतिक्रमण हटाने के काम में सहयोग करने जाते हैं, उन पर हमला हो जाता है। अवैध शराब के अड्डों पर भी यही हो रहा है। अवैध कारोंबारी कई बार पुलिस को मार कर भगा देते हैं। अदालती आदेश के कार्यान्वयन के सिलसिले में भी किसी दबंग अपराधी को पकड़ना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर है। एक जगह पुलिस को भगा देने का मतलब होता है कि दूसरी जगह के अपराधियों का मनोबल बढ़ जाता है। वे दोगुने उत्साह से अपने अपराध कर्म में लग जाते हैं। इजरायल सरकार ने एक नियम बना रखा है। वह अपने देश के किसी अपहृत व्यक्ति को छुड़ाने के एवज में न तो किसी को फिरौती देती हैं और न ही बदले में किसी अपराधी को छोड़ती है। ऐसी ही दृढ़ इच्छा शक्ति वाले देश से उसके दुश्मन डरते हैं।

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इजरायल अकेले एक साथ कई देशों का मुकाबला आसानी से कर लेता है। क्या बिहार सरकार यह निर्णय नहीं कर सकती कि वह पुलिस पर हमला करने वाले लोगों को कभी माफ नहीं करेगी ?
पर हां, इसके साथ एक काम और उसे करना होगा। ऐसा न हो कि पुलिस एक दिन पहले अतिक्रमणकारियों से हफ्ता वसूलने जाए और अगले दिन अतिक्रमण हटाने।यदि यह सब जारी रहा तो सरकार का कोई उपाय काम नहीं आएगा। ऐसे में तो कानून तोड़कों का पुलिस पर गुस्सा कम नहीं होगा। कानून के राज से ही राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश—–
कानून का राज हो तो राजनीति के अपराधीकरण पर भी अंकुश लग सकता है। अनेक बाहुबलियों ने लचर कानून -व्यवस्था का ही लाभ उठाया है। नब्बे के दशक से पहले तक बिहार के एक चुनाव क्षेत्र में एक ईमानदार स्वतंत्रता सेनानी विधायक हुआ करते थे। पर जब उस क्षेत्र में अपराधियों का उत्पात बढ़ने लगा तो दूसरे पक्ष का एक बाहुबली उस स्वतंत्रता सेनानी से मिला।उसने कहा कि अब राजनीति आपके वश की नहीं है। आप आम लोगों को गुंडों से नहीं बचा पाएंगे। मुझे अब चुनाव लड़ने दीजिए।
वह लड़ा और जीता भी। विजयी बाहुबली और भी बड़ा बाहुबली बन गया।दूसरे पक्ष के बाहुबली तो अपना काम कर ही रहे थे।पुलिस लगभग मूक दर्शक थी।ऐसा बहुत दिनों तक चला।सन 2005 के बाद कुछ स्थिति बदली। भला यह भी कोई लोकतंत्र है ? ऐसे में कितना जरूरी है कानून का शासन कायम करना ! ऐसी पुलिस बने जो सभी पक्षों के कानून तोड़कों के खिलाफ समान रूप से कार्रवाई करे। पुलिस ऐसी कब बनेगी ?

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)