राहुल गांधी बॉस तो बन गए, लेकिन लगते नहीं, कार्यकर्ताओं में कन्फ्यूजन

राहुल गांधी कांग्रेस के बॉस हैं, लेकिन क्या वो कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के मन में बतौर बॉस जगह बना पाए हैं, सोनिया गांधी आज ज्यादा प्रासंगिक दिखाई दे रही हैं।

New Delhi, Feb 11: कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए नया साल कई जिम्मेदारियां लेकर आया, वो नया साल शुरू होने से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए थे, अध्यक्ष बनने के फौरन बाद उनको हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनावी हार का सामना करना पड़ा. बतौर बॉस पहले ही एग्जाम में राहुल फेल हो गए, लेकिन कांग्रेस और मोदी विरोधी लोगों के नजरिए की तारीफ करनी होगी कि राहुल की नाकामी को भी कामयाबी से बड़ा बता रहे हैं। ये कौन सी प्रजाति के लोग होते हैं जो हार के बाद कहते हैं कि ये हमारी नैतिक जीत है, इस तरह की बातों से कार्यकर्ताओं में नया जोश नहीं भरा जा सकता है। हां ये जरूर है कि खुद को संतुष्ट किया जा सकता है।

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सवाल ये है कि राहुल गांधी कांग्रेस के बॉस तो बन गए हैं लेकिन कांग्रेसी अभी तक उनको मन से बॉस मान नहीं पाए हैं। अध्यक्ष बनना और अध्यक्ष चुना जाना दो अलग अलग बात है, राहुल के केस मं तो कुछ ऐसा है कि वो सुबह सोकर उठे, नहाया, नाश्ता किया कांग्रेस दफ्तर पहुंचे और उनकी ताजपोशी कर दी गई। वो चुने नहीं गए हैं उनको अध्यक्ष बनाया गया है,तो ऐसे में बतौर बॉस उनकी इज्जत कैसे हो सकती है, उनका रुतबा कसे बढ़ सकता है। अध्यक्ष बनने के बाद राहुल  जिस तरह से नई राजनीति कर रहे हैं वो उनको बहुत दूर लेकर नहीं जा पाएगी। वो अभी भी बचकानी हरकतें करते हैं। सियासी बारीकियों से वो अंजान हैं, जहां पर उनको बोलना चाहिए वो खामोश रह जाते हैं।

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राहुल अपनी पसंद के सवाल उठाते हैं, वो सवाल जिन पर उनको लगता है कि वो आसानी से बोल जाएंगे, ज्यादा तकनीकी पक्ष पर ध्यान नहीं देते हैं। राफेल डील को ही ले लजिए, इस पर राज्यसभा में जेटली ने जवाब दे दिया है, राहुल अच्छे से जानते हैं कि राफेल डील यूपीए के समय में शुरू हुई थी, डील में नॉन डिस्क्लोजर का क्लॉज यूपीए सरकार ने ही डलवाया था, इसलिए राफेल डील के बारे में जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती है, इसलिए राहुल लगातार कह रहे हैं कि मोदी सरकार राफेल डील पर कुछ नहीं बोल रही इसका मतलब ये है कि दाल में कुछ काला है। ये राहुल की पसंद का सवाल है, वो आम बजट पर प्रतिक्रिया देने से बचते हैं, शायद उनको बजट के बारे में ज्यादा ज्ञान नहीं है।

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ये सारे पहलू हैं राहुल गांधी के व्यक्तित्व के, जो ये बताते है कि वो भले ही बॉस बन गए हैं लेकिन उनका आचरण यही बताता है कि वो अभी भी पार्टी की जिम्मेदारियों से मुक्त हैं। दरअसल अभी तक राहुल ने जितनी भी राजनीति की है वो बिना जिम्मेदारी के की है, चुनाव में हार मिलने पर जिम्मेदारी कांग्रेस में गांधी परिवार के वफादार उठाने को तत्पर रहते हैं। यूपीए पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो जिम्मेदारी मनमोहन सिंह पर डाल दी जाती है। यही कारण है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता कार्यकर्ता कन्फ्यूज हं, उनको समझ नहीं आता कि कांग्रेस के बॉस राहुल हैं या फिर सोनिया गांधी हैं, इसका कारण ये है कि कुछ दिन पहले ही सोनिया ने कहा कि राहुल सबके बॉस हैं, उनकी बात सभी को माननी चाहिए। लेकिन विपक्षी दलों के लिए आज भी सोनिया कांग्रेस की सर्वेसर्वा हैं, उनके नाम पर  विपक्षी एकता का ताना बाना बुना जा रहा है, ये राहुल की बतौर बॉस हार है।