कांग्रेस का भ्रष्टाचार तो किसी को चौंकाता नहीं, बीजेपी का खेल नया है

कांग्रेस के वक़्त भी बैंक लुटे, यह कहने से कल की लूट कैसे संभल जाएगी? सीबीआइ ने 2014 के मामले में ही मुक़दमा दर्ज किया है।

New Delhi, Feb 18 : उत्तर प्रदेश के “स्वतंत्र पत्रकार” दिनेश दुबे एक बड़े बैंक के बोर्ड सदस्य कैसे बन गए? वह भी इलाहाबाद बैंक के। चालीस साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ, पर इस क़िस्म की नियुक्तियों की सहजता समझ नहीं पड़ती।

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फिर भी वे तारीफ़ के हक़दार हैं कि उन्होंने असुरक्षित भारी-भरकम ऋणों के ख़िलाफ़ बोर्ड में आवाज़ उठाई। इसके लिए उन्हें वित्त सचिव के समक्ष पेश होना पड़ा। Loanपर वे पेश क्यों हुए? वह भी दिल्ली आकर दो घंटे उनके दफ़्तर के बाहर बैठने के बाद। कोई स्वाभिमानी पत्रकार ऐसा अपमान क्यों बर्दाश्त करे? वहाँ वे सचिव से अपने स्टैंड के लिए लड़े नहीं, इस्तीफ़ा देने को कहा तो देकर आ गए। ये कैसा संघर्ष हुआ? अब वे जितने मुखर हुए हैं, तब भी तो हो सकते थे।

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दुबे के मुताबिक़ सचिव ने “ऊपर” के दबाव की बात कही (इस हवाले भर से अर्णब अपने ‘शो’ में चिदम्बरम-चिदम्बरम करने लगे!)। पत्रकार के नाते दुबेजी को निजी अनुभव के साथ अच्छी जानकारी मिल गई थी। पाँच साल उसे उन्होंने कहीं लिखा क्यों नहीं? इस्तीफ़े के लिए सचिव के दबाव के बारे में वित्त मंत्री या प्रधानमंत्री को क्यों नहीं लिखा? पत्रकार की लड़ाई बोर्ड रूम की लड़ाई से ऊपर होती है, जिसे वह बिना किसी दबाव के दूर तक लड़ सकता है। और कहीं नहीं तो वे सोशल मीडिया पर ही भ्रष्ट अफ़सरों, सत्ताधारियों को उजागर कर सकते थे। सबसे अहम सवाल, उन भ्रष्ट व्यापारियों के बारे में उन्होंने क्या एक भी ख़बर/लेख कहीं लिखा जिनके फ़र्ज़ी ऋणों को लेकर वे बोर्ड में जूझ रहे थे?

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मुझे लगता है अपने सामने टीवी चैनलों की क़तार देख दुबेजी गदगद हैं। पर चैनल भाजपा के बचाव अभियान में कांग्रेस पर निशाना साधने की जुगत में दुबेजी को मोहरा बना रहे हैं। कांग्रेस का भ्रष्टाचार तो किसी को चौंकाता नहीं। भाजपा का खेल अलबत्ता नया है। उस पर मिट्टी डालने के लिए उसे “स्वतंत्र” चैनलों-अख़बारों का बड़ा सहारा है। कांग्रेस के वक़्त भी बैंक लुटे, यह कहने से कल की लूट कैसे संभल जाएगी? सीबीआइ ने 2014 के मामले में ही मुक़दमा दर्ज किया है, नीरव मोदी, निशाल मोदी, अमी मोदी और मेहुल भागे भी पिछले महीने हैं। इसका जवाब कब तक दबा रखेंगे?

(जनसत्ता के पूर्व संपादक और वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)