‘जो IAS अधिकारी माल्या या नीरव मोदी बनने की कोशिश में हैं, उनके लिये मेरी ये सलाह नहीं है’

जो अफसर अपने वेतन के पैसों से अपनी और परिजन की आवश्यक आवश्यकताएं भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं, उनके लिए एक पुराने IAS अफसर मार्गदर्शक बन सकते हैं।

New Delhi, Feb 24 : जो IAS अफसर विजय माल्या या नीरव मोदी बनने की कोशिश में हैं, उनके लिए मेरी यह सलाह नहीं है। वे उस राह पर चलते रहें जिस पर इन दिनों बिहार के भी कुछ आई.ए.एस. अफसर चल रहे हैं। संभव है कि उन्हें वह रास्ता जय ललिता, हर्षद मेहता और के. अरूमुगम तक ले जाएगा। चारा घोटाले के आरोपित अरूमुगम कई जेल यात्राओं और मुकदमे के भारी खर्चे के कारण गरीबी में मरे।

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हालांकि यह बात भी कह दूं कि जिस तरह नेताओं में कुछ ईमानदार लोग हैं, उसी तरह अफसरों में भी हैं। पर, जो अफसर अपने वेतन के पैसों से अपनी और परिजन की आवश्यक आवश्यकताएं भी पूरी नहीं कर पा रहे हैं, उनके लिए एक पुराने IAS अफसर मार्गदर्शक बन सकते हैं। कई दशक पहले की बात है। उन्होंने अपने सेवा काल के प्रारंभिक वर्षों में ही शहर के पास के गांव में जमीन खरीद ली। इसके लिए उन्होंने वित्तीय संस्थान से कर्ज लिया था। तब वहां जमीन अत्यंत सस्ती थी। शहर फैलने लगा। शहर नगर बना। अब तो नगर महा नगर बन चुका है। फिर वही सस्ती जमीन सोने के भाव की हो गयी। बाद में उन्होंने उसे बेचनी शुरू की।

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शादी -पढ़ाई-गृह निर्माण व भविष्य के लिए कुछ बचत भी हो गयी। सेवा में अन्य लोगोंकी अपेक्षा ईमानदार बने रहने में उन्हें सुविधा हुई। इस फार्मूले को आज भी कुछ अन्य लोग अपना रहे हैं। एक पत्रकार मित्र को जानता हूं। उन्होंने बीस साल पहले पटना के पास के एक गांव में 20 हजार रुपए कट्ठा जमीन खरीदी। छह कट्ठा। अब उसका एम.वी.आर. करीब 10 लाख रुपए प्रति कट्ठा है। उनकी जमीन नेशनल हाईवे में जाने वाली है। यदि गयी तो मुआवजा मिलेगा प्रति कट्ठा करीब 40 लाख रुपए। कुल कीमत होगी 2 करोड़ 40 लाख रुपए। यदि नहीं गयी तो वैसे भी वहां तक अब महा नगर पहुंच ही रहा है। कुछ ही समय में बाजार भाव भी लगभग उतना ही हो जा सकता है।

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एक सामान्य परिवार की आवश्यक आवश्यकताओं की पूत्र्ति इतने पैसे से हो ही जाएगी। आवश्यक जरूरत से लोभ और विलासिता की ओर सफर का रास्ता अनेक मामलों में जेल में जाकर खत्म होता है। खानदान की बदनामी अलग से। आई.ए.एस. अफसर की चर्चा इसलिए कि मुख्यतः उनकी ईमानदारी पर किसी सरकार की ईमानदारी निर्भर है। पर उनमें से अधिकतर का हाल गड़बड़ है। एक पूर्व बैंक अधिकारी ने हाल में बताया कि एक सरकारी अफसर ने कई साल पहले अपने विभाग के 60 करोड़ रुपए हमारे बैंक में जमा करवाया तो तुरंत उसने कहा कि मेरा 60 लाख रुपया बनता है। वह अफसर दूसरे केस में जेल जा चुका है। फिर जाने वाला है।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)