सेल्फी तक नहीं ली, क्या खाक पत्रकार हैं

सदाशिव के मुहल्ले में कई ऐसी सोसायटियां हैं, जहां तरह-तरह के प्रोफेशनल्स के बीच कई पत्रकार भी रहते हैं

New Delhi, Feb 26: बात पुरानी लग सकती है पर ज्यादा पुरानी है नहीं! उस दिन सदाशिव लाल(काल्पनिक नाम) की धर्मपत्नी मार्निंग-वाक से जब घर लौटीं तो उनका मुंह उतरा ही नहीं, गुस्से से भरा हुआ था। सदाशिव ने दरवाजा खोला तो पत्नी का चेहरा देखकर अवाक्। पत्नी को गुस्सा आता था पर सुबह-सुबह पार्क से लौटने पर ऐसी तनी हुई भंगिमा पहले कभी नहीं देखी थी। सदाशिव लाल शहर के जाने-माने पत्रकार थे। लिखने-पढ़ने के अलावा टीवी चैनलों पर भी दिखते रहते थे। सड़क चलते, रेलवे स्टेशन या एयरपोर्ट पर भी लोग उन्हें देखकर पूछ लिया करते थे, ‘आप सदाशिव लाल तो नहीं!’ हां में सिर हिलाते तो कभी कोई साहस और बौद्धिक मिजाज के लिए उनकी वाहवाही करता तो कभी कोई उलाहना भी देता कि आप तो अक्सर पीएम या सीएम साहब के खिलाफ बोलते रहते हैं! लेकिन आज सुबह सदाशिव को पहले पत्नी से निपटना था। उसने डरते-डरते पूछा, ‘पार्क में आज किसी से कोई बकझक तो नहीं हुई?’ पत्नी ने उसकी तरफ देखा तक नहीं। सीधे बाथरूम गईं और पैर धोने लगीं। फिर चेहरे पर छपाका मारा। मुंह से पिचकारी की तरह पानी फेंकते हुए उन्होंने गुस्से का राज खोला,’ आज का अखबार देखा, उसमें फोटू छपी है, शहर के सारे पत्रकारों की। सभी पीएम साहब के साथ सेल्फी ले रहे हैं! सबके घरों में पीएम साहब के साथ उनके पतियों की फोटू आ गई है।

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अपनी ही सोसायटी के रामा जी की पत्नी भी बता रही थीं कि इस बार क्या जबर्दस्त फोटू आई है, पीएम साहब के साथ उनके पति की! और एक हैं आप, जो सबकी आलोचना करते रहते हैं। फिर कौन पूछेगा आपको! है किसी बड़े आदमी के साथ आपकी फोटू! बस, अखबार और टीवी में दिखने भर से क्या होता है! है पीएम साहब या सीएम साहब के साथ कोई सेल्फी?’ सदाशिव परेशान! अब इसकी क्या काट है? बिल्कुल सत्य वचन! पीएम-सीएम साहब के साथ क्या शहर कोतवाल के साथ भी सेल्फी नहीं! सेल्फी लेने तक नहीं आता था सदाशिव को! अभी वो कुछ कहता कि पत्नी फिर गजर पड़ीं, ‘ मालूम है वो जरदाना, मौधुरी जी, चौधरी जी , मौरसिया जी , गामा जी, रामा जी, झूमा जी, सूमा जी, टोनू जी और अल्फोंस साहब भी उस लंच में बुलाये गये थे। सबने एक से एक सुंदर सेल्फी ली पीएम साहब के साथ। और एक आप हैं! सारी औरतें ताना मार रही थीं। बनते रहिये आप अपने ही।’ सदाशिव के मुहल्ले में कई ऐसी सोसायटियां हैं, जहां तरह-तरह के प्रोफेशनल्स के बीच कई पत्रकार भी रहते हैं। इनमें कई पत्रकार देश के प्रमुख चैनलों-अखबारों में काम करते हैं और कुछ लंबे समय तक काम करने के बाद अब ‘स्वतंत्र पत्रकार’ हो गये हैं!

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पत्रकारिता भले स्वतंत्र न हो पर नौकरीविहीन ऐसे लोग कहलाते हैं स्वतंत्र पत्रकार! सब शब्दों की माया है। कहीं धूप कहीं छाया है! बहरहाल, उस दिन सदाशिव को पहली बार लगा कि मुहल्ले में ज्यादा पत्रकारों का होना भी एक सिरदर्द है। अब यहां इत्ते सारे पत्रकार न होते तो उनकी पत्नियां भी नहीं होतीं। पत्नियां न होतीं तो पार्क में ये सेल्फी वाली बात कहां से उठती! सदाशिव ने विषय और पत्नी का मूड बदलने के लिये पत्नी से पूछा, ‘चाय बैठा दूं!’ पत्नी ने कहा, ‘पढ़ो अपना अखबार, मैैं बनाती हूं।’ सदाशिव एक खबर पढ़कर हंसते हुए अखबार के साथ किचेन की तरफ गया, ‘य़े देखो, ‘बमभोले टाइम्स’ में क्या छपा है?’ पत्नी ने कहा, ‘हंसो मत, खबर पढ़ो।’ सदाशिव ने खबर पढ़ना शुरू किया, ‘यूपी के एक शहर में इस वक्त 211 गायों की पवित्र उपस्थिति में 211 प्रकांड पंडित ‘अखंड- पाठ’ कर रहे हैं। इसका मकसद है गो-वंश सुधारना।’ इसका आयोजन किसी पवित्र राष्ट्रवादी संस्था ने किया है। सदाशिव हंसने लगा। ऐसी बातों पर अक्सर उसकी पत्नी भी उसका जमकर साथ देती थी।

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लेकिन आज उसका मूड सचमुच कुछ दूसरा था। उसने लगभग हड़काते हुए कहा, आप जैसे लोग दुनिया पर हंसते रहिये, तर्क और वैज्ञानिकता की बात कीजिए पर दुनिया तो अपनी तरह चलेगी। एक दिन दुनिया वाले आप जैसों पर ही हंसेंगे, समझे!’ अभी बात चल ही रही थी कि सदाशिव का ध्यान भारत से छपने वाले ‘दुनिया के एक बड़े अखबार’ के पहले पेज पर पड़ा। पहले पेज पर कोई खबर ही नहीं थी। पूरा पेज काला था और काली पृष्ठभूमि में गोल्डेन रंग में एक बहुमंजिली भव्य इमारत खड़ी थी। उसके ऊपर लिखा थाः ट्रम्प टावर्स! सदाशिव को शुरू में लगा, यह निश्चय ही कोई अमेरिकी विज्ञापन है। पर यह क्या यह अपने महानगर से लगे एक उपनगर की एक निर्माणाधीन आवासीय भवन योजना का विज्ञापन था। उक्त निजी कंपनी ने अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए निर्माणाधीन भव्य अपार्टमेंट्स का नाम ‘ट्रम्प टावर्स’ रखा था। सदाशिव ने इससे पहले भी दिल्ली, मुंबई सहित अनेक महानगरों या उनके नजदीक के उपनगरों में बन रही या बन चुकी आवासीय कालोनियों के अंगरेजी या इटैलियन या फ्रेंच नाम, जैसे एलिफिन्स्टन अपार्टमेंट्स, कैेलिफोर्निया टावर्स, डोमेनिको टावर्स, वर्जीनिया अपार्टमेंट्स, ल-डैज या माइकल एंजिलो अपार्टमेंट्स आदि-आदि देखे-सुने थे।

इनमेें ज्यादातर कालोनियों के बिल्डर या प्रमोटर्स अपनी अपनी गाड़ियों पर किसी न किसी राष्ट्रवादी या अति-स्वदेशी संगठन का झंडा लटकाये रहते हैं। बहरहास,सदाशिव ने किसी कार्यरत विदेशी राष्ट्राध्यक्ष के नाम वाली आवासीय कालोनी के प्रस्तावित ढांचे का विज्ञापन पहली बार देखा। विज्ञापन ने उसके मन में उत्सुकता और उत्साह जगा दिया। उसे लगा, वह हारी बाजी, अंततः जीत भी सकता है! अपनी पत्नी की उदासी और निराशा को खुशी और आशा में बदल सकता है। दरअसल, इस फुल पेज विज्ञापन के पीछे वाले पेज पर भी एक इसी ट्रम्प टावर्स का विज्ञापन था, जिसमें एक खूबसूरत विदेशी नौजवान के चित्र की बगल में लिखा था कि अमुक ताऱीख से पहले इस टावर्स में अपना घर बुक कराने वालों को एक बड़ा मौका दिया जायेगा और वह होगा डोनाल्ड़ ट्रंम्प Jr के साथ डिनर पर बातचीत करने का मौका। इसकी विधिवत तारीख तय की गई थी। ऐसे में यह गलत तो हो नहीं सकता था। विज्ञापन कोई मामूली कंपनी या किसी छोटे-मोटे अखबार में नहीं छपा था। इसलिये सदाशिव को इसकी विश्वसनीयता का भरोसा था।

उसने उक्त इलाके के एक जूनियर लेकिन बहुत स्मार्ट और चलता-पुर्जा पत्रकार को फोन लगाया और उससे कहा कि वह इस टावर्स में एक घर की बुकिंग की रकम का पता करे। कुछ ही देर बाद उक्त स्मार्ट पत्रकार का फोन आया और उसनेे बुकिंग और निर्माणाधीन फ्लैट्स की जो रकम बताई, उससे सदाशिव का दिल एक बार फिर टूट गया। कई गलतफहमियां एक साथ दूर हो गईं। शुरू में उसे लगा था कि मुलाकात ट्रम्प साहब से होगी। फिर एक क्या, अलग-अलग एंगिल से एक दर्जन ‘सेल्फी’ लेगा। इलाके के सारे पत्रकारों के पाजामे ढीले हो जायेंगे जो अब तक पीएम साहब की सेल्फी चमका कर उसकी भोली-भाली पत्नी को भरमाये हुए थे कि सदाशिव न तीन में है न तेरह में! खैर उसने जैसे ही उक्त विज्ञापन को बार-बार पढ़ा, पाया कि फ्लैट बुकिंग की एवज में डिनर पर मिलने वाले व्यक्ति का नाम डोनाल़्ड ट्रम्पJr है। बहरहाल, यह भी कुछ कम नहीं होता, डोनाल्ड ट्रम्पJr भी कोई छोटी हस्ती थोड़े हैं। बात तब भी बन जाती। अमेरिका का तो एक अदना सा व्यापारी भी सेल्फी दे दे तो अपने प्यारे-प्यारे हिन्दुस्तान में यूं ही रूतबा बढ़ जाता है। वो अपने सीएम कुमार हों या युवा ह्रदय-सम्राट कमलेश पुकार या उनके खासमखास अमृत सिंह अपना रूतबा बढ़ाने के लिये ये सभी हर विदेश यात्रा के बाद विदेशी उद्योगपतियों के साथ अखबारों में अपनी फोटू छपाना नहीं भूलते। और मार्क जुकरबर्ग जैसे बड़े, प्रतिभाशाली और कामयाब व्यापारी के साथ सेल्फी हो तो फिर छोटे-मोटे क्या, अपने प्यारे हिन्दुस्तान के पीएम और बड़े-बड़े सीएम भी धन्य हो जाते हैं!

(वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)