9 बच्चों के कुचलकर मारे जाने पर बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को एक Urgent चिट्ठी

हमारी पहली विनती आपसे यह है कि आप विपक्ष को भी शामिल करें और हमारे इन बच्चों को श्रद्धांजलि देने के लिए बिहार की विधानसभा में एक दिन सुनिश्चित करें।

New Delhi, Mar 01 : मेरे प्यारे राज्य बिहार के आदरणीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी और आदरणीय उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जी,
शिष्टाचार यह कहता है कि होली का अवसर है, इसलिए आपको होली की शुभकामनाएं देते हुए ही इस पत्र की शुरुआत करूं, लेकिन ऐसी कोई शुभकामना न देने की गुस्ताखी करने के लिए मुझे माफ़ करें, क्योंकि ऐसे हालात में शुभकामनाएं कैसे दूं, जबकि यह होली हमारे-आपके राज्य के उन गरीब परिवारों के लिए शुभ नहीं रही है, जिनके नौ बच्चे 8 से 12 साल की छोटी उम्र में सड़क पर कुचलकर मारे गए हैं, जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते थे और सिद्धांततः जिनकी पढ़ाई और सुरक्षा की पूरी-पूरी ज़िम्मेदारी हमारी सरकार की ही बनती थी।

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मुझे यकीन है कि आप उन 9 जानों की कीमत अच्छी तरह समझते होंगे, क्योंकि एक तो वे हमारे-आपके काफी बाद इस दुनिया में आए थे, इसलिए कायदे से उन्हें हमारे-आपके बाद भी इस दुनिया में काफी सालों तक या यूं कहें कि समूची इक्कीसवीं सदी जीनी थी और अपना योगदान करना था।
आपको उन जानों की कीमत इसलिए भी अच्छी तरह मालूम होगी, क्योंकि आप जानते हैं कि उन्हीं में से कोई बड़ा होकर एक दिन नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी, नरेंद्र मोदी या रामनाथ कोविंद भी बन सकता था। इसलिए, अगर ये सभी नाम हमारे देश और राज्य के लिए कीमती हैं, तो उन बच्चों की जान की कीमत स्वीकार करने में भी हमें संकोच नहीं होना चाहिए।

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इसलिए, हमारी पहली विनती आपसे यह है कि आप विपक्ष को भी शामिल करें और हमारे इन बच्चों को श्रद्धांजलि देने के लिए बिहार की विधानसभा में एक दिन सुनिश्चित करें, जिनके नाम इस प्रकार हैं-
सलमान अंसारी- उम्र 8 वर्ष
साजिया खातून- उम्र 8 वर्ष
शाहजहां खातून- 9 वर्ष
नुसरत परवीन- उम्र 10 वर्ष
अनिशा कुमारी- 10 वर्ष
शहनाज खातून- उम्र 11 वर्ष
अमिता कुमारी- उम्र 12 वर्ष
रचना कुमारी- उम्र 12 वर्ष
बिरजू कुमार- 12 वर्ष

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हमारी दूसरी विनती आपसे यह है कि मैं स्वयं यह होली नहीं मना रहा हूं और आप लोग भी इसे न मनाएं, क्योंकि मुझे पूरा यकीन है कि आप जब भी रंग खेलेंगे, तो आपकी आंखों में ज़रूर ही उन ग़रीब बच्चों का ख़ून तैर जाएगा, जो हमारे राज्य की सड़क पर उसी तरह बह गया है, जैसे पानी का घड़ा फूटने से कहीं पर पानी बह जाता है।
हमारी तीसरी विनती आपसे यह है कि चूंकि आरोपी के समय से नहीं पकड़े जाने की वजह से राज्य के ग़रीब लोगों में गलत संदेश जा रहा है और उनका भरोसा डगमगा रहा है, इसलिए स्थिति की गंभीरता को समझते कम से कम अब भी, जब आरोपी आपकी गिरफ़्त में आ गया है, उसे कानून-सम्मत सज़ा दिलवाने के लिए निर्विकार भाव से अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान करें।

यह बहुत अच्छी बात है कि भारतीय जनता पार्टी ने आरोपी को पार्टी से निलंबित कर दिया है, लेकिन उसकी और आपकी सरकार की ईमानदारी तभी साबित हो पाएगी, जब अपराधी को उचित सज़ा मिले, वरना यही माना जाएगा कि परोक्ष तरीके से आरोपी की मदद की गई है। चूूंकि आरोपी अब तक कई सबूत समाप्त कर चुका है, इसलिए यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि उसकी तमाम चालबाज़ियों को बेकार करते हुए आप राज्य में न्याय का झंडा बुलंद करें।
आदरणीय मुख्यमंत्री जी और आदरणीय उपमुख्यमंत्री जी, चूंकि यह कोई मांग-पत्र नहीं, बल्कि सामान्य निवेदन-पत्र है, इसलिए इसमें लंबी-चौड़ी मांगों की सूची नहीं रखते हुए भी कुछ सामान्य मुद्दों की तरफ़ आप लोगों का ध्यान अवश्य आकर्षित करना चाहूंगा।

चूंकि हमारे इन बच्चों का जीवन अब लौटाया नहीं जा सकता और उनकी हृदयविदारक मृत्यु एक अपूर्णीय क्षति है, इसलिए आपकी सरकार कम से कम उन कारणों को दूर करने का प्रयास अवश्य करे, जिससे हमारे बिहार-वंश के उन चिरागों को सच्ची श्रद्धांजलि दी जा सके और उनकी मृत्यु को बेकार जाने से बचाया जा सके।
इसलिए, हमारी आपसे अपील है कि-
1. जिन सरकारी स्कूलों में बच्चों को व्यस्त ट्रैफिक वाली किसी मुख्य सड़क को पार करके आना-जाना होता है, वहां पर बच्चों के स्कूल आने-जाने के लिए सरकारी स्कूल बसें चलाई जाएं। ज़रा सोचकर देखिए, अगर तमाम राज्यों में आम नागरिकों को एक जगह से दूसरी जगह लाने ले जाने के लिए सरकारी बसें चलाई जा सकती हैं, तो सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की हिफ़ाज़त और उन्हें लाने ले जाने के लिए सरकारी स्कूल बसें क्यों नहीं चलाई जा सकती?

2. बिहार के सरकारी स्कूलों के बच्चों की पढ़ाई और सुरक्षा के इंतज़ाम बेहतर किए जाएं। हमने-आपने भी सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाई की थी, लेकिन आप जानते हैं कि आज सरकारी स्कूलों में सिर्फ़ ग़रीब मज़दूरों और किसानों के बच्चे ही पढ़ रहे हैं, वो भी मजबूरी में। यह स्थिति चिंताजनक है। इसे ठीक करने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
3. प्राइवेट स्कूलों के रक्त-चूसक जोंकों के जाल से बिहार की आम जनता को मुक्ति दिलवाई जाए। आपको मालूम होगा कि इनमें से अनेक स्कूल उन माफ़िया के द्वारा चलाए जा रहे हैं, जिनके पास काफी ब्लैक मनी है और कइयों का तो चरित्र भी साफ़-सुथरा नहीं है। अन्य भी बच्चों और अभिभावकों को लूटने में जुट जाते हैं और जूते-मोजे से लेकर कॉपी किताब तक बेचने का धंधा करते हैं।

आपको याद होगा कि हम लोग जब अगली कक्षा में चले जाते थे तो हमारी किताबें पड़ोस के छोटे बच्चों तक के काम आ जाती थीं, लेकिन आज हमारी पहली संतान की किताब दूसरी संतान तक के काम नहीं आती। मुद्दे अनेक हैं, लेकिन स्थिति की गंभीरता को समझाने के लिए हमने एक छोटा उदाहरण आपके सामने रखा है। ज़रा सोचकर देखिएगा।
4. आप ही की सरकार द्वारा गठित एक कमेटी ने राज्य में समान स्कूल प्रणाली लागू करने की सिफ़ारिश की थी। अगर उस समिति की सिफ़ारिश में कुछ त्रुटियां थीं, तो उन्हें ठीक करने का प्रयास किया जाना चाहिए, लेकिन समान स्कूल प्रणाली के सिद्धांत को अनंतकाल तक ठंडे बस्ते में डालना उचित नहीं है। इसलिए, कृपया जल्द से जल्द एक ठोस नीति बनाकर और ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करके राज्य में समान स्कूल प्रणाली लागू की जानी चाहिए।

5. आप दिल पर हाथ रखकर सोचेंगे तो आपको भी लगेगा कि मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक, एसपी, डीएम, डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार, ठेकेदार, मज़दूरों, किसानों, अगड़े-पिछड़े, दलित-महादलित, बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक सबके बच्चों के एक साथ पढ़ने से समाज में जैसे संस्कार का निर्माण हो सकता है, वह अलग-अलग आर्थिक-सामाजिक वर्गों के बच्चों के अलग-अलग स्कूलों में पढ़ने से तैयार नहीं हो सकता।
आप अपने राज्य के उस ग़रीब बच्चे की हीन-ग्रंथि कैसे दूर करेंगे, जो बचपन से ही यह महसूस करने लगता है कि मेरे मां-बाप तो ग़रीब हैं, इसलिए मैं ग़रीबों के स्कूल में पढ़ता हूं और फलाना बच्चा अमीर है, इसलिए अमीरों के स्कूल में पढ़ता है? इस तरह की स्थिति समाज में अर्थ-भेद, जाति-भेद, वर्ग-भेद को बढ़ावा देती है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि समाज में एकता और एक-दूसरे के प्रति इज़्ज़त और अपनेपन की भावना बढ़ाने के लिए हम सबके बच्चे साथ-साथ पढ़ें।
आदरणीय मुख्यमंत्री जी और आदरणीय उपमुख्यमंत्री जी, ज़रा सोचें कि जब हम और आप भी नहीं रहेंगे, तब यही बच्चे हमारी-आपकी दुनिया को आगे बढ़ाएंगे। इसलिए, इन्हें एकजुट और संस्कारित करना बेहद आवश्यक है।

6. सरकारी स्कूलों में या तो मिड डे मील की गुणवत्ता और व्यवस्था सुधारी जाए, या फिर मिड डे मील को बंद कर उसके पैसे को हर बच्चे के अकाउंट में ट्रांसफर किया जाए, जिसे उनकी आगे की पढ़ाई के लिए ख़र्च करने का प्रावधान हो। अभी एक तरफ़ मिड डे मील की व्यवस्था की वजह से जहां स्कूलों के शिक्षक से लेकर चपरासी तक उलझे रहते हैं, वहीं राज्य के अमूमन हर स्कूल से मिड डे मील की गुणवत्ता को लेकर शिकायतें आती रहती हैं और यहां तक कि हमारे अनेक बच्चे अक्सर बीमार भी पड़ते रहते हैं। और यह तो कुछ भी नहीं है। छपरा के धर्मासती गंडामन गांव के सरकारी स्कूल की भयावह दुर्घटना को आप कैसे भूल सकते हैं, जहां ख़राब मिड डे मील खाकर हमारे 23 लाल बहादुर शास्त्रियों की अकाल-मृत्यु हो गई थी।

7. सरकारी स्कूलों में अच्छे शिक्षक नियुक्त किए जाएं, उनके आचार-व्यवहार और ड्यूटी तय करने के लिए निर्देशिका जारी की जाए और सख्ती से लागू किया जाए। माननीय मुख्यमंत्री जी और उपमुख्यमंत्री जी, शिक्षकों की नियुक्ति के सवाल को वोट बैंक या महज रोज़गार भर से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। वे बच्चों का भविष्य बनाते हैं, इसलिए वे हमारे भविष्य-निर्माता होते हैं। शिक्षकों की नियुक्ति की पॉलिसी बनाते समय आप हमेशा यह ध्यान में रखें कि उन कुम्हारों की नियुक्ति कर रहे हैं, जो हमारे-आपके देश के भविष्य की मूर्तियां गढ़ेंगे।

8. शिक्षकों के साथ भेदभाव भी उचित नहीं है। समान और समय पर वेतन उनकी वाजिब मांगें हैं, यह आपका भी दिल जानता है। उन्हें उनके मौलिक और वाजिब अधिकारों से वंचित न करें, क्योंकि जैसा कि हमने पहले ही कहा, वे हमारे भविष्य को गढ़ने वाले कुम्हार हैं।
आदरणीय नीतीश कुमार जी और सुशील कुमार मोदी जी, आखिरी निवेदन आपसे यह है कि इस चिट्ठी को आप अपने राज्य के एक मामूली लेखक-पत्रकार या नागरिक की चिट्ठी समझकर न पढ़ें, बल्कि इसे हमारे बेटे-बेटियों सलमान, साजिया, शाहजहां, नुसरत, अनिशा, शहनाज, अमिता, रचना और बिरजू की चिट्ठी समझकर पढ़ें। इससे उनकी आत्मा को भी शांति मिलेगी और आपके दिल-दिमाग को भी दिल चीर देने वाली वह स्थिति बेहतर तरीके से महसूस होगी, जो अपने पीछे वे मासूम छोड़ गए हैं।

सादर,
आपका
अभिरंजन कुमार

(वरिष्ठ पत्रकार अभिरंजन कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)