राम मंदिर पर आखिर इतने उतावले क्‍यों हैं श्रीश्री रविशंकर ?

आर्ट आफ लीविंग के संस्‍थापक श्रीश्री रविशंकर को आखिर ऐसा क्‍यों लगता है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद अदालत में भी नहीं सुलझ सकता है ?

New Delhi Mar 03 : अगर राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद अदालत के बाहर सुलझ जाए तो इससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता। हर किसी की यही कामना है कि इस विवाद को आपसी सहमति से सुलझा लिया जाए नहीं तो अदालत अपना फैसला सुना ही देगी। पिछले कुछ महीनों से आर्ट आफ लीविंग के संस्‍थापक श्रीश्री रविशंकर इस मसले को लेकर काफी सक्रिय हो गए हैं। उनके भीतर ये सक्रियता अचानक से उठी है। जिसको लेकर तमाम सवाल भी खड़े हो रहे हैं। इस वक्‍त श्रीश्री रविशंकर के भीतर राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद को सुलझाने को लेकर कुछ ज्‍यादा ही उतावलापन नजर आ रहा है। उनका ये उतावलापन समझ से परे हैं। इस विवाद को लेकर उनके भीतर कांफिडेंस से ज्‍यादा ओवर कांफिडेंस नजर आ रहा है। आध्‍यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर कहते हैं कि ये विवाद अदालत के भीतर नहीं सुलझ सकता। आखिर इस तरह का बयान देने के पीछे उनका क्‍या मकसद हो सकता है।

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क्‍या माना जाए श्रीश्री रविशंकर को अदालत से ज्‍यादा अपने ऊपर भरोसा है। आखिर इतना भरोसा उनके भीतर आया कहां। ना तो वो इस केस में पक्षकार हैं। ना पैरोकार हैं। ना कभी वो राम जन्‍म भूमि के किसी आंदोलन से जुड़े हैं। हिंदू महासभा उनका विरोध कर रही है। सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड उनके साथ नहीं है। हम श्रीश्री रविशंकर के प्रयासों की ना तो आलोचना कर रहे हैं और ना ही ये कह रहे हैं कि सुलह की कोशिशें नहीं होनी चाहिए। सुलह की कोशिशों के लिए श्रीश्री रविशंकर की तारीफ की जानी चाहिए। लेकिन, इस मुद्दे को लेकर जितना ओवर कांफिडेंस उनके भीतर है वो ठीक नहीं है। सालों से ये देश इस विवाद को देखता और झेलता रहा है। इस देश में हर तरह के लोग हैं। ऐसे भी लोग हैं कि जो राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के विवाद को बातचीत के जरिए सुलझाने में यकीन रखते हैं। उसमें चाहें वो मौलाना सलमान नदवी हों या फिर वसीम रिजवी।

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लेकिन, श्रीश्री रविशंकर को ये बात समझनी होगी कि सिर्फ मौलाना सलमान रिजवी या फिर वसीम रिजवी के समझौते के लिए तैयार हो जाने से ये मामला नहीं सुलझ सकता। तभी तो शायद उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ भी कहते हैं कि सुलह की ये कोशिश काफी देर से शुरु हुई। लेकिन, लगता नहीं कि ये मामला बातचीत से हल होगा। दरसअल, ये राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का विवाद इस वक्‍त सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। माना जा रहा है कि इस बार की सुनवाई में ये विवाद अपने अंतिम फैसले पर जरुर पहुंचेगा। हालांकि श्रीश्री रविशंकर इस बात पर यकीन नहीं करते हैं। ये उनकी व्‍यक्तिगत राय हो सकती है। बहरहाल, इस वक्‍त सभी की निगाहें 28 मार्च को लखनऊ में होने वाली बड़ी मीटिंग में टिकी हुई है। जिसमें हिंदू और मुसलमान दोनों ही पक्ष के प्रभावशाली लोग शामिल होंगे। अभी हाल ही में श्रीश्री रविशंकर से इस मसले को लेकर लखनऊ में ही मौलाना सलमान नदवी से दोबारा मुलाकात भी की थी।

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हालांकि इसी समझौते के चलते मौलाना सलमान नदवी को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से बाहर किया जा चुका है। लखनऊ में श्रीश्री रविशंकर और मौलाना नदवी की मीटिंग में पूर्व आईएएस अफसर अनीस अंसारी भी मौजूद थे। सवाल फिर वहीं आकर टिक जाता है कि आखिर श्रीश्री रविशंकर ऐसा कैसे मान सकते हैं कि अनीस अंसारी या सलमान नदवी से बातकर सारा विवाद सुलझ जाएगा। जबकि मुख्‍य पक्षकार ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में श्रीश्री रविशंकर को अपने ऊपर हाथ तक नहीं रखने दे रहा है। यही हाल सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का है। ऐसे में कैसे अदालत के बाहर इस विवाद के सुलझने की उम्‍मीद की जा सकती है। हो सकता है कि इस मसले को लेकर श्रीश्री रविशंकर को अच्‍छी प्रतिक्रियाएं मिल रही हों लेकिन, सवाल प्रतिक्रियाओं का नहीं बल्कि समझौते की कानूनी मान्‍यता का भी है। जो सालों से अदालत में मुकदमा लड़ रहे हैं अगर वो ही बातचीत से दूर रहेंगे तो बात कैसे बनेगी ?