अब BJP पश्चिम बंगाल में तोड़ेगी ममता बनर्जी का ‘गुरूर’

नॉर्थ ईस्‍ट के राज्‍यों में जिस तरह से BJP ने ‘लाल’ किले को ध्‍वस्‍त किया है उससे पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी का परेशान होना लाजिमी हैं।

New Delhi Mar 05 : नॉर्थ ईस्‍ट में लेफ्ट का लाल किला ध्‍वस्‍त हो चुका है। त्रिपुरा के बाद अब अगला नंबर केरल, ओडिशा और पश्चिम बंगाल का है। त्रिपुरा में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत को देखने के बाद पूरा का पूरा विपक्ष सहमा हुआ है। यकीन मानिए विपक्ष के नेताओं के सपने में इस वक्‍त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही आते होंगे। बीजेपी का ये डर पश्चिम बंगाल की मुख्‍यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्‍यक्ष ममता बनर्जी के भीतर भी देखने को मिल रहा है। राजनीति के जानकारों का मानना है कि इस बार ममता बनर्जी का भी गुरूर भी टूटना तय है। हालांकि ममता बनर्जी अपने डर को छुपाते हुए कह चुकी हैं कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल में भगवा पार्टी नहीं जीतेगी। भले ही ममता बनर्जी मीडिया के सामने त्रिपुरा में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत को तवज्‍जो ना देने की कोशिश करें लेकिन, सूत्र बताते हैं कि दीदी इस वक्‍त अंदर ही अंदर बहुत सहमी हुईं हैं।

Advertisement

पश्चिम बंगाल में उन्‍हें तृणमूल कांग्रेस का किला ढहता हुआ नजर आ रहा है। ठीक उसी तरह जिस तरह कुछ साल पहले तृणमूल कांग्रेस ने यहां से लेफ्ट के किले को ढहाया था। दरअसल, अपने दो कार्यकाल में ममता बनर्जी को अपनी सियासत पर काफी गुरुर हो गया है। अगर इस बात का एहसास दीदी को है तो बहुत अच्‍छी बात है अगर नहीं है तो यकीन मानिए जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा के चुनाव होंगे तृणमूल कांग्रेस का हाल भी त्रिपुरा जैसा ही होगा। ममता बनर्जी की विरोध की राजनीति ही उन्‍हें ले डूबेगी। जिस तरह की वो भाषा का इस्‍तेमाल करती हैं उसे सभ्‍य राजनीति का हिस्‍सा नहीं माना जा सकता है। अब अभी शनिवार की ही बात ले लीजिए, ममता बनर्जी ने बीजेपी की जीत पर निशाना साधा और उसकी तुलना तिलचट्टे से की। उनका कहना था कि बीजेपी तिलचट्टे के पंख लगाकर मोर बनने का सपना देख रही है जो कभी पूरा नहीं होगा।

Advertisement

हालांकि वो तो ये तक मानने को तैयार नहीं हैं कि त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई है। ममता बनर्जी कहती हैं कि त्रिपुरा में बीजेपी की जीत नहीं बल्कि सरकार और कांग्रेस गठबंधन की हार है। सरकार के आत्‍मसमर्पण की वजह से यहां बीजेपी को मौका मिला। कांग्रेस गठबंधन के लिए तैयार नहीं थी इस वजह से बीजेपी आगे निकल गई। उनका मानना है कि अगर राहुल गांधी क्षेत्रीय दलों और पहाड़ी दलों के साथ गठबंधन के लिए तैयार हो जाते तो आ‍ज परिणाम कुछ और होते हैं। बेशक अभी ममता बनर्जी को त्रिपुरा में कांग्रेस की चिंता सता रही हो। लेकिन, असल में चिंता करने की बारी अब खुद दीदी की है। पश्चिम बंगाल की राजनीति पर अच्‍छी पकड़ रखने वालों का कहना है कि जिस तरह से पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी का जनाधार बढ़ रहा है वो लेफ्ट और तृणमूल कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है।

Advertisement

पश्चिम बंगाल में बंगाली ब्राह्मणों का झुकाव बीजेपी की ओर बढ़ता जा रहा है। शायद ये बात ममता बनर्जी को समझ में नहीं आ रही है। वैसे भी उनकी तुष्‍टीकरण की राजनीति के चलते यहां पर वोटों का बंटवारा हो रहा है। असल में ममता पश्चिम बंगाल में हमेशा एक संप्रदाय विशेष की बात करती हैं। ये संप्रदाय प्रेम ही उन्‍हें ले डूबेगा। सिर्फ संप्रदाय प्रेम ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तमाम लाभकारी योजनाओं का बेवजह विरोध भी उन्‍हें काफी महंगा पड़ेगा। मसलन ममता बनर्जी अभी से कह चुकी हैं कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस हेल्‍थ स्‍कीम को अपने राज्‍य में लागू नहीं करेंगे जिसमें देशभर में करीब पचास करोड़ लोगों को हेल्‍थ इंश्‍योरेंस मिलेगा। अब जरा सोचिए किस प्रदेश की जनता नहीं चाहेंगी कि उसे केंद्र की अच्‍छी योजना का फायदा ना मिले। ममता बनर्जी के यही अड़ंगे उनके पतन का कारण बनेंगे।