महिला दिवस : सिर्फ शुभकामनाओं से काम नहीं चलने वाला, अपने आस-पास माहौल बदलिये

महिला दिवस : केवल शुभकामनाओं से काम चलने वाला नहीं. अगर महिलाओं की समानता की बात को दिल से स्वीकार करते हैं तो अपने आसपास के माहौल को बदलिये।

New Delhi, Mar 08 : कुछ साल पहले तक महिला दिवस पर कोई अच्छी खबर लिखने, बेहतर पोस्ट करने का उत्साह रहता था. अब देखता हूँ कि खाप पंचायतों जैसी मानसिकता वाले भी महिला दिवस की शुभकामनाएं दे रहे हैं, फेयर एंड लवली वालों का तो आज सबसे बड़ा दिन है. यह दिवस तेजी से कर्मकांड बनता जा रहा है. गंगा स्नान टाइप का, कि नहाए और पाप धुल गये.

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हालांकि अब भी हालत बहुत बदले नहीं हैं. कल ही अविनाश जी ने बताया था कि अररिया के स्पेशल केयर न्यू बोर्न यूनिट में एक नवजात बच्ची दो माह से एडमिट है. उसके माता-पिता एडमिट करा कर जो गये वापस नहीं आये. उन्होंने जो पता दिया था वहां पता करने जब पुलिस पहुंची तो मालूम हुआ कि पता ही गलत था. फिर सर्च किया तो पता चला कि ऐसे मामले इनदिनों लगातार बढ़ रहे हैं. मध्यप्रदेश, राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्यों में, बिहार में भी. अब समझिये कि कितना काम बचा है. केवल शुभकामनाओं से काम चलने वाला नहीं. अगर महिलाओं की समानता की बात को दिल से स्वीकार करते हैं तो अपने आसपास के माहौल को बदलिये.

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निराला जी ने लिखा है कि कहीं आप घर में खाना पकाने, साफ सफाई रखने, बच्चों को संभालने जैसे काम को महिलाओं का काम तो नहीं समझते. womenक्या ये काम नियमित तौर पर खुद किया करते हैं? अगर नहीं तो आप क्यों महिला दिवस मनाते हैं?

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मैं और जोड़ देता हूँ, किसी को बेटी जन्म होने की शुभकामनाएं देते वक्त आपके मन में उसके लिये अफसोस या सहानुभूति का भाव तो नहीं रहता? women'sबेटी बचपन से ही रोटी बेलने लगे तो आप गर्व से उसकी तस्वीर शेयर तो नहीं करते? पत्नी के साथ फोटो खिंचाते वक़्त खुद कुर्सी पर बैठते हैं और उसे कंधे पकड़कर खड़े होने तो नहीं कहते? कई चीजें हैं. ये मानसिकता में शामिल हैं. इन्हें बदलिये, महिला दिवस मनाना या उसकी शुभकामनाएं बांटते चलना कोई बहुत जरूरी काम नहीं है.

(पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)