बीजेपी विरोधी ज़्यादा खुश न हों, भूत पूरी तरह से अभी उतरा नहीं है
ये भी महत्वपूर्ण है कि खासकर यूपी में बीएसपी और सपा को २०१४ में कुल मिलाकर जितने वोट मिले थे इस बार उसमे कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई- बीजेपी का वोट ज़रूर गिरा है।
New Delhi, Mar 17 : गोरखपुर और फूलपुर में बीजेपी को मिली करारी शिकस्त के बाद तमाम राजनीतिक विश्लेषक तरह-तरह से इसका विश्लेषण कर रहे हैं। कोई इसी यूपी सरकार द्वारा किये गये काम का ईनाम बता रहा है, तो कोई जातिय समीकरण को कारण बता रहा है। देश के चर्चित वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल ने भी गोरखपुर चुनावी समीकरण पर कुछ लिखा है। आगे पढिये उन्होने इस हार का कैसे विश्लेषण किया है।
यूपी और बिहार के उपचुनावों में बीजेपी की हार का एक कारण विपक्षी एकता का बेहतर सूचकांक तो है ही सबसे बड़ा कारण है मध्यम वर्ग के एक बड़े हिस्से का इस पार्टी से मोहभंग- साफ़ शब्दों में कहे तो २०१४ में बोले गए झूठ का पर्दाफाश. लेकिन इस बात से बीजेपी विरोधियों को ज़्यादा खुश होने की ज़रुरत नहीं है. मध्यम वर्ग का जो हिस्सा बीजेपी से नाराज़ हुआ वो विपक्षी पार्टियों की गोदी में नहीं गया, वो घर बैठ गया.
ध्यान रहे कि शहरी इलाकों में इस बार वोटों का प्रतिशत गिरकर ३५-३७ तक पहुँच गया था. ये जानते हुए भी कि इस बार बीजेपी के लिए ये नाक की लड़ाई है, मध्यम वर्ग के उसके समर्थक वोट देने नहीं गए.
लेकिन ये भी महत्वपूर्ण है कि खासकर यूपी में बीएसपी और सपा को २०१४ में कुल मिलाकर जितने वोट मिले थे इस बार उसमे कोई खास बढ़ोत्तरी नहीं हुई- बीजेपी का वोट ज़रूर गिरा है.
इसलिए मोदी विरोधी ज़्यादा खुश न हों, लुभावने नारों और चुनावी लफ़्फ़ाज़ी का पर्दाफाश भले ही हो गया हो, ये भूत पूरी तरह से उतरा नहीं है.