सरकारी बैंकों में पैसा नहीं, सरकार का झूठ जमा है

बैंकों के ढांचे में किसी राज्य में चोटी के दस पांच लोग ही होते हैं। इनके ज़रिए हज़ारों कर्मचारियों और अधिकारियों पर दबाव डाला जा रहा है।

New Delhi, Mar 19 : “ मुद्रा लोन के बारे में सच्चाई बताऊँगा तो आप भी चौंक जायेंगे। बहुत सारे बैंको में 3 महीने के क्लोजिंग पर उन एकाउंट पर ज़्यादा ध्यान होता है जो PNPA होते हैं मतलब जो NPA होने के कगार पर होते हैं। अब मैनेजर एक 40 हज़ार या 50 हज़ार का मुद्रा लोन बेनामी नाम पर करता है,उस रुपये से वो 5-6 लोन सही कर लेता है जो NPA होने वाले होते हैं। क्योंकि इससे ऊपर से वो गाली खाने से बच जाता है। अब इस मुद्रा लोन के ब्याज देने के लिए अब अगले क्वाटर में जो बेनामी मुद्रा लोन करेगा,उससे चुका देगा। देखिए सिर्फ ऊपर से दिए टारगेट पूरा हो जाये,कोई गाली सुनना न पड़े उसके लिए हमको कितनी हेराफेरी करनी पड़ती है। कैसे हमें रात में नींद आती है हम ही जानते हैं। मैं शराब पीने लगा हूं“

Advertisement

यह कथा एक बैंकर की आत्मकथा है। अनगितन बैंकरों ने अपने नैतिक संकट के बारे में लिखा है। वे अपने ज़मीर पर झूठ का यह बोझ बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। मुद्रा लोन लेने वाला नहीं है मगर बैंकर पर दबाव डाला जा रहा है कि बिना जांच पड़ताल के ही किसी को भी लोन दे दो। मैं दावा नहीं कर रहा मगर बैंकरों के ज़मीर की आवाज़ के ज़रिए जो बात बाहर आ रही है, उसे भी सुना जाना चाहिए।
मैंने बैंकरों के हज़ारों मेसेज पढ़े हैं और डिलिट किए हैं। अब लग रहा है कि इनकी बातों को किसी न किसी रूप में पेश करते रहना चाहिए। आपको लग सकता है कि एक ही बात है सबमें मगर झूठ का बोझ इतना भारी हो चुका है कि हर दिन एक नया किस्सा हमें चौंका देता है। आप यकीन नहीं करेंगे कि एक बैंकर ने हमें क्या लिखा है।

Advertisement

“रविश जी, मैं आपको पहले भी एक बार मैसेज कर चुका हूँ। मेरी कुछ महीने की नौकरी शेष है। रिटायर होने जा रहा हूं। पिछले कुछ बरसों में मेरे स्वयं के मन से अपने संस्थान की प्रतिष्ठा कम हो गई है और कोई वजह नहीं बची है कि मैं उस पर गर्व कर सकूँ। हमारी शाखाओं में प्रतिदिन कई ग्राहक आते हैं जो कहते हैं कि उन्हें लेनदेन के मैसेज नहीं मिल रहे हैं (तकरीबन तीन साल से यह कमी है) हम लोग इस पर तरह तरह केबहाने बनाते हैं। बैंक अपने ग्राहकों को sms सेवा के लिए प्रति तिमाही 15 रु + gst लेती है (यानी सरकार तक भी हिस्सा जाता है) उस सेवा के लिए जो प्रॉपर तरीके से दी ही नहीं जाती है। मुश्किल से 20-30 प्रतिशत लेनदेन की सूचना जाती होगी पर charges बेशर्मी से पूरे लिए जाते हैं। आप शाखाओं में जाकर ग्राहकों से स्वयं पूछें तो आपको हकीकत पता चलेगी। मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक ग्राहक को बैंक पिछले 2 साल में काटे पैसे वापस करे और इस तरह से अपनी कुंडली में कुछ सुधार करे। क्या इसके लिए कुछ ग्राहक अदालत के मार्फ़त सब ग्राहकों को उनका पैसा लौटवा सकेंगे? इस अन्याय के विरुद्ध मैं आपको साथ देखना चाहता हूँ।“

Advertisement

बैंक सीरीज से फर्क यही आया है कि बैंकरों की आत्मा मुखर हो रही है। वे भी इंसान हैं। वे अपने ज़मीर पर बोझ बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। उन्हें पता है एक दिन चेयरमैन और ऊपर के लोग हवा में उड़ जाएंगे और ये लोग जेल जाएंगे। अब यह झूठ इतना फैल चुका है कि रिज़र्व बैंक भी बेअसर हो चुका है। उसकी क्षमता नहीं है कि वह इस पैमाने पर फैले झूठ को पकड़ सके। अगर आज बैंकरों को यक़ीन हो जाए कि हर हाल में जनता उनका साथ देगी तो वे ऐसे ऐसे झूठ सामने रखने लगेंगे जिससे आपके होश उड़ जाएंगे। आपके पैसे तो उड़ ही चुके हैं।
Want to share worst working conditions in the bank and showing concerns over Managed balance sheets of the bank which do not show true pictures to its stake holders whether they r employees. Share holders GOVT Or market etc. Officers Unions gave their helping hands in the times of crises and management cut their petrol reimbursement to 25 percent In the name of continued losses with a promise to restore the same when profits will emerge. But Inspite Of profits continued for the last 5~6 years petrol cut is not restored. Now in the name of PNB on going fraud cases Bank management is about to implement transfer policy as a result of which each and every officer who is in the state not in zone will be transferred to other state as a result of which mass transfers are going to take place in coming month as confirmed by Top management in IR meeting in 16.03.18.

अंग्रेज़ी में मेसेज आया है, हु-ब-हू रख दिया हूं। जनाब यही कह रहे हैं कि सबको ऊपर से ठीक लगे इसलिए बैंकों के बहीखाता में फर्ज़ी जोड़-घटाव किया जा रहा है। परम पूजनीय नीरव मोदी जी तो ख़ुद भाग गए, वित्त मंत्री अभी तक नहीं बोल पाए मगर इसकी सज़ा बैंकरों को मिल रही है। इस राज्य से उस राज्य में तबादला करके। तबादले का जो ख़र्च आता है वो भी अब बैंक पूरा नहीं देता है। आप अगर दो हज़ार बैंकरों से बात कर लेंगे तो यही लगेगा कि बैंकर भी अपनी जेब से बैंक चला रहे हैं। जिसका ज़िक्र में ग़ुलाम बैंकरों की दास्तान में कर चुका हूं। वे अपनी ग़ुलामी को समझने लगे हैं। अपनी नौकरी दांव पर रखकर सीधे बैंक के ख़िलाफ़ तो नहीं खड़े हो सकते मगर अब उनका ज़मीर बोलने के लिए मजबूर करने लगा है। देश भर के उन जगहों से बैंकर मुझे अपनी व्यथा बता रहे हैं जहां मेरा चैनल कई महीनों से आता भी नहीं है। सरकार के दावों को बड़ा और सच्चा बनाने के लिए बैंकों के भीतर जो फ़र्ज़ीवाडा हो रहा है, उस पर आप आज भले न ध्यान दें मगर जिस दिन ये बैंक भरभराएंगे, सड़क पर आकर आप रोते रह जाएंगे।

मैं रोज़ सोचता हूं कि इन मैसेज का इस्तमाल कैसे करूं। अब लगता है कि डिलिट करने से पहले उनकी बातों का एक हिस्सा उठाकर यहां रख दूं। मुद्रा लोन को लेकर जो फर्ज़ीवाड़ा चल रहा है, जो किस्से मैंने पढ़े हैं, मैं अब समझने लगा हूं कि अमरीका और ब्रिटेन के बैंकों के भीतर जो हुआ था, वही अब हिन्दुस्तान में हो रहा है। बैंकर अभी भी इस संकट को नहीं समझ रहे हैं। वे अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं सैलरी के लिए मगर व्यथा बताते हैं क्रास सेलिंग और झूठ बोलकर बीमा बेचने के दबाव की। मुद्रा लोन का आंकड़ा बड़ा लगे उसके लिए किए जा रहे फर्ज़ीवाड़े के कारण वे टूट रहे हैं। बैंक के ढांचे में किसी राज्य में चोटी के दस पांच लोग ही होते हैं। इनके ज़रिए हज़ारों कर्मचारियों और अधिकारियों पर दबाव डाला जा रहा है। बीमा बेचने का कमीशन इन्हीं दस पांच चोटी के अफसरों को मिलता है। जितना मैंने समझा है।

“Sir, bank has also sold me insurance policy with home loan forcefully without my consent and when I requested them to cancel in freelook period, they have not done the same….”
अंग्रेज़ी में लिखे इस मेसेज से आप इतना तो समझ ही गए होंगे कि बिना इनकी अनुमति के बीमा पालिसी बेच दी गई। जब अंग्रेज़ी वाले बैंकों के झूठ के शिकार हैं तो कल्पना कीजिए ग़रीबों के साथ क्या हो रहा होगा। मुझे यह भी सुनने को मिला है कि ग़रीब खातेधारों के खाते से पैसे निकाल लिए जा रहे हैं, बिना उनकी अनुमति के। जब वे वापस करने की मांग कर रहे हैं तो बैंकर ने बताया कि पैसा वापस करने की कोई प्रक्रिया ही नहीं। एक बैंक के मैनेजर ने बताया कि इस तरह हमारा ही बैंक पांच छह हज़ार करोड़ का मुनाफा बना लेता है।

अटल पेंशन योजना। अटल जी के नाम से भी लोगों के साथ धोखा किया जा सकता है, मुझे यकीन नहीं था। सैंकड़ों की संख्या में बैंकर बता रहे हैं कि कोई ले नहीं रहा, हमें देने के लिए मजबूर किया जा रहा है। एक बैंकर ने लिखा कि आज जब सात बज गया तो बाहर गया। चाय की दुकान से तीन लोगों को पकड़ लाया। दस्तखत कराया और अपनी जेब से सौ सौ सो रुपये डालकर अपना टार्गेट पूरा किया और घर चला गया। वरना साढ़े नौ बजे रात तक बैठना पड़ता। इस तरह से अटल पेंशन योजना बेची जा रही है। कई बैंकरों ने कहा कि ऐसे भी यह योजना सही नहीं है। इसमें कोई दम नहीं है। हमने पूछा हमें इतनी बारीकी समझ नहीं आती तो उनका ये जवाब है।

“ सर, आज के ज़माने में किसी ग्राहक को इंवेस्टमेंट के बारे में बताओ तो उसका पहला सवाल होता है कि रिटर्न कितना है और कितने साल में। सर, अटल पेंशन योजना के केस में मैं एंट्री ईयर्स है 20 साल। उसके बाद आता है ग्राहक के उम्र का फंडा जिससे प्रीमियम तय होता है। 20 साल का सुनकर ही 10 में से सात लोग ग़ायब हो जाते हैं। जो तीन बचे वो तीन भी अच्छे संबंधों के कारण प्लान ले लेते हैं। अब आती है पालिसी चलाने की बात। मैंने अभी तक कुछ 70 अटल पेंशन योजना की है। जिनमें से शायद ही किसी में 3- 4 प्रीमियम से ज़्यादा जमा हुआ होगा। सर, मैंने एम बी ए की पढ़ाई की है। मैंने अपना सारा ज्ञान और तरीके लगा दिए कि ग्राहक को सब कुछ बता कर इसे बेच लूं, मगर कोई फायदा नहीं है। इसका फायदा होता तो मैं ख़ुद नहीं ले लेता। अच्छा नहीं लगता है अपनी नौकरी बचाने के लिए, झूठी शान से अपनी रोजी रोटी चलाने के लिए, एक ग्राहक जो भरोसे से अपनी मेहनत की कमाई मेरे भरोसे भविष्य के लिए बचाना चाहता है, उसे ग़लत सलाह से जाया करूं। जितनी मेहनत हम बैंक वालों से इन सब APY और बीमा बेचने के लिए करवाई जा रही है, उस टाइम में बैंकर्स बिजनेस का फीगर चेंज कर सकते थे। “
महिला बैंकरों की हालत पढ़कर मेरी हालत ख़राब होने लगी है। शनिवार शाम जब मेरी किताब लांच हो रही थी तब एक नंबर लगातार फ्लैश कर रहा था। इतनी बार फ्लैश किया कि अंत में चिढ़ गया। मैं ही ऊंची आवाज़ में बोलने लगा कि आप मेसेज कर देते। ऐसा क्या है कि आप लगातार आधे घंटे से फोन कर रहे हैं। उधर से आती कातर आवाज़ ने मेरा पूरा मूड बदल दिया। भूल गया कि अपनी किताब के लांच में आया हूं।

“सर, मेरी सहयोगी को बीमा न बेच पाने के कारण बैंक में बिठा लिया है। मैं तो आठ बजे निकल गया मगर उसे साढ़े नौ बजे रात के बाद ही छोड़ेंगे। उसका बच्चा बहुत बीमार है। बहुत तेज़ बुख़ार है। घर में कोई नहीं है। यहां अकेले अपने बच्चे के साथ रहती है। आप न्यूज़ फ्लैश कर देते तो उसे छुट्टी मिल जाती। वैसे भी उसे बैंक से घर आने में चालीस मिनट लगेंगे। उस मां की हालत बहुत ख़राब हो गई है। रोज़ की यही कहानी है। हम बीमा नहीं बेचते हैं तो बैंक में अफसरों को देर रात तक बिठा कर रखा जाता है।“
“ I am also a banker and I had to go too bank today with my kid , as nobody was there for take care of my son at home”

आप समझ गए होंगे कि यह मेसेज महिला बैंकर का है। रविवार को भी बैंकरों को जाना पड़ता है। उसके बदले उन्हें कोई छुट्टी नहीं मिलती है। महिला बैंकरों की हालत पढ़कर असहाय सा महसूस करने लगा हूं। कई बार लगता है कि सरकार,चेयरमैन,ईडी टाइप के अफसरों की हेंकड़ी इतनी बढ़ सकती है या हमें इतनी बर्दाश्त करनी पड़ेगी कि ये हमारी हालत ग़ुलाम जैसी कर देंगे।
मैं किसी भावावेश में नहीं कहता कि बैंकों में जाकर वहां काम कर रही महिलाओं को बचा लीजिए।
सरकार बैंकों के भीतर जो झूठ जमा कर रही है,वहां अब झूठ ही बचा है। आप को मीडिया चुनावी जीत के किस्से दिखा रहा है,मगर आदमी की हालत ग़ुलाम सी हो गई है, वो नहीं दिखाएगा क्योंकि गोदी मीडिया तो ख़ुद में ग़ुलाम मीडिया है। आज न कल 13 लाख बैंकरों को सोचना पड़ेगा कि चोटी के चंद अफसरों को मिलने वाले कमीशन के लालच में क्या वे अपने लिए दासता स्वीकार कर सकते हैं? महिला बैंकरों को एक दूसरे का हाथ थामना ही होगा, निकलना ही होगा, आज़ादी के लिए कीमत चुकानी पड़ती है।

(NDTV से जुड़े चर्चित वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)