आरएसएस की पृष्टभूमि का व्यक्ति भी राजनीति में आकर ‘भ्रष्टाचारी’ हो सकता है, यकीन नहीं होता

सत्ता के विलासी दौर में नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय देख कर चकित था। प्लास्टिक की सस्ती कुर्सियां , साधारण मेज़, पलंग, चारपाई, दरियाँ, परदे, संघ के शीर्ष भवन के बारे में बहुत कुछ कह रहे थे।

New Delhi, Mar 26 : देश के एक नामी-गिरामी पत्रकार महोदय, जो संघ व भाजपा के अखंड समर्थक/विचारक हैं, ने आज मुझे यह लेख अपनी फेसबुक वॉल पर पोस्ट करने के लिए ईमेल किया है। नाम फिर कभी आगे खोलूंगा। मित्रों, आप समय निकाल कर उनके संघ के उच्च पदाधिकारियों के साथ अनुभवों को ध्यान से पढ़ना चाहें।
‘सत्ता के विलासी दौर में नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय देख कर चकित था। प्लास्टिक की सस्ती कुर्सियां , साधारण मेज़, पलंग, चारपाई, दरियाँ, परदे, संघ के शीर्ष भवन के बारे में बहुत कुछ कह रहे थे। भवन की फर्श, दीवार, खिड़की, दरवाज़े, रोशनदान किसी कसबे के पंचायत भवन की याद दिला रहे थे। सत्ता के इस महाशक्तिशाली केंद्र की भव्यता के बारे में, मैं कुछ और सोच के गया था लेकिन जो वहां देख रहा था उससे थोड़ी सी निराशा हुई, लेकिन संगठन की सादगी देखकर, रबर की चप्पल पहने हुए प्रचारकों के मौन को देखकर वहां अनायास प्रभावित हो रहा था। या यूं कहूँ इस भ्रष्टतम दौर में सत्ता के एक शक्तिपुंज को देखकर उसकी सहजता और सादगी को प्रणाम कर रहा था।

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वहां उपस्थित विजय तेलंग जी, बेहद विनम्रता से बता रहे थे कि संघ प्रमुख मोहन भागवत आज भी ज़मीन पर बैठकर भोजन करते हैं। जिज्ञासा हुई तो उनकी रसोई देखी। स्टील की थाली, कटोरी, ग्लास और मिटटी का घड़ा देखकर अपना गाँव याद आ गया। सीमेंट की फर्श पर मैंने वो दरी बिछी देखी जहाँ भगवत जी और उनके सभी वरिष्ठ सहयोगी एक साथ भोजन करते हैं। मैंने तेलंग जी से तभी पूछा कि, ” ये दो प्लास्टिक की कुर्सियां यहाँ क्यों रखी गयी हैं ? अगर संघ प्रमुख ज़मीन पर बैठते हैं तो फिर इन कुर्सियों पर कौन बैठता है ?” तेलंग बोले ,”कुछ प्रचारकों की आयु ८० बरस से ज्यादा है। जब वो भगवत जी के साथ आते हैं तो कुर्सी पर बैठते है। क्यूंकि आर्थराइटिस की वजह से वे पालथी मारकर नीचे बैठ नहीं सकते। सो वे कुर्सी पर बैठकर भोजन करते हैं और भागवतजी नीचे ज़मीन पर बैठकर।” ये सुनकर आँखें कुछ नम हुईं। फिर भगवत जी का शयनकक्ष देखा। वहां भी पलंग के साथ पड़ी प्लास्टिक की सस्ती कुर्सियां ये बता रही थी कि २२ राज्यों और केंद्र में जिसके आशीर्वाद से सरकारें चलती हों उस व्यक्ति की जीवन शैली बीजेपी के सैकड़ों विधायक और हज़ारों पदाधिकारियों से भी सरल है। सच ये है कि विजय तैलंग जी ने खुद कुछ नहीं दिखाया। मेरे बार बार आग्रह करने पर ही वो मुझे भागवत जी की रसोई(छोटे से डाइनिंग रूम) और शयनकक्ष में ले गए थे। ज़ाहिर है फोटो खींचना उचित नहीं था।

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बहरहाल मुख्यालय से निकलकर जब होटल पहुंचा तो यूपी के एक क्रांतिवीर बीजेपी नेता का फ़ोन आया। बातचीत में उनको मैंने रेशमबाग और संघ प्रमुख के कार्यालय और निवास की कथा सुनाई। क्रांतिवीर नेता ने मेरी सारी बातें ध्यान से सुनी लेकिन बाद में कहा कि कभी लखनऊ आकर मिलिएगा। वहां संघ के एक सर्वाधिक शक्तिशाली प्रचारक की ऐसी कथा सुनाऊंगा कि पाँव के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी।
इधर एक दो हफ़्तों से यूपी के एक फायरब्रांड आईएएस अफसर सूर्यप्रताप सिंह के फेसबुक पर पोस्ट पढ़ रहा हूँ। ये पोस्ट संघ के “महान स्वयं सेवक” और यूपी के वर्तमान संगठन मंत्री के बारे में लिखी जा रही है जिन्हे सरकार का नया गायत्री प्रजापति यानी भ्रष्टाचार का नया पर्याय कहा गया है। इन महान संगठन मंत्री का नाम सुनील बंसल है जो दिल्ली , जयपुर और लखनऊ से अमित शाह की छतरी की आड़ में अपना निजी साम्राज्य चलाते हैं। खनन के ठेके हों या यूपी के मलाईदार विभागों, पदों पर भ्रष्ट अधिकारीयों की नियुक्ति हो, अमित शाह के यूपी दूत, बंसल दूध की खौलती कढ़ाई से सारी मलाई चट करना जानते है। मलाई कैसी भी ही हो वो चट करने में सुरेश कलमाड़ी से लेकर नारायण दत्त तिवारी से भी कहीं अधिक एक्सपर्ट हैं।

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निसंदेह, सूर्यप्रताप जी ने जो साहस दिखाकर बंसल के कारनामो का खुलासा किया है शायद मैं बीजेपी का अटूट हितेषी होकर भी लिखने में इतना वीर रस नहीं दिखा पाऊंगा। अमित शाह, या पियूष गोयल या अडानी या बंसल से आज कोई शत्रुता मोल नहीं ले सकता है । ये जिस भी जाति के हों पर आज सत्ता के प्रचंड प्रतापी महाराणा प्रताप हैं। इनसे पत्रकार, विपक्ष के नेता भी डरते हैं। लेकिन फिर भी इतना ज़रूर कहूंगा कि बंसल आज संघ की गंगा में बहने वाली वो बजबजाती नाली हैं जो संघ की सादगी और स्वछता को को हर पल प्रदूषित, कलंकित कर रहे हैं। दिल्ली में गोयल, धर्मेंद्र प्रधान या स्मृति ईरानी तो फिर भी सरकार के नियम कानून से बंधे हैं पर बंसल, चुनाव में बीजेपी को जिताने के नाम पर हर नियम परम्परा को धता बता रहे हैं। यूपी का भ्रष्ट इंजीनियर/अधिकारी उनसे ऐसे खौफ खाता है जैसे पूर्वांचल के लाला, मुख़्तार अंसारी के फोन से सहम जाते हैं। यहाँ दिल्ली में बंसल के चर्चे, गडकरी से लेकर राजनाथ के घर और संघ के कुछ वरिष्ठ पदाधिकारियों के यहाँ अक्सर होते है। पर कोई भी नेता कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं दिखता है। चार्टर जहाज और लम्बी गाड़ियों से चलने वाला इस कलयुगी स्वयं सेवक के धत्कर्मों ने न सिर्फ महंत योगी बल्कि दिल्ली में मोदी सरकार की साख पर भी अब सवाल उठा दिए हैं। उनके ऐसे ऐसे किस्से यहाँ सुने कि विश्वास नहीं होता। विलासता, वासना , लोभ, मोह, कुकर्म के तमाम किस्से हैं जिनका जिक्र करना बहुत लज्जाजनक हो सकता है।
सच तो ये है कि भागवत जी के व्यक्तित्व में जितने गुण है या एक प्रचारक के व्यक्तित्व में जितने गुण होते हैं उससे दस गुना ज्यादा अवगुण बंसल में हैं। सत्ता से आयी अटूट दौलत के दौर में वे संघ के चारित्रिक पतन के नए खलनायक दिखते हैं। अगर चार्टर जहाज में उड़ने वाले पावर एजेंट बंसल कहीं युवा भगवा वाहिनी के रोल मॉडल बन गए तो बीजेपी को आगे चलकर प्रायश्चित करना पड़ेगा।
ये आशा है कि इस छोटे से लेख को वो अपनी पोस्ट में जगह देंगे।
वन्देमातरम। ‘

(ये लेख रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सूर्य प्रताप सिंह के फेसबुक वॉल से लिया गया है, इसके लेखक के नाम उन्होने उजागर नहीं किया है)