‘अगर पहले पीएम सरदार पटेल और नेहरु विदेश मंत्री होते, तो देश के लिये बेहतर होता’
जवाहर लाल नेहरू आम जनता के बीच अधिक लोकप्रिय थे। कई कारणों से गांधी जी उनके ही पक्ष में थे।
New Delhi, Mar 31 : सरदार पटेल के सख्त विरोध के कारण ही राज गोपालाचारी इस देश के राष्ट्रपति नहीं बन सके थे। इसके बावजूद राजाजी ने कुछ साल बाद में लिखा था कि ‘अगर आजादी के बाद सरदार पटेल इस देश के प्रधान मंत्री और जवाहर लाल नेहरू विदेश मंत्री बने होते तो देश के लिए बेहतर होता।’
यह बात अलग है कि जवाहर लाल नेहरू आम जनता के बीच अधिक लोकप्रिय थे। कई कारणों से गांधी जी उनके ही पक्ष में थे। पर राजाजी तो देश हित में सोचते थे न कि व्यक्तिगत राग- द्वेष के आधार पर किसी के बारे में कोई राय बनाते थे। राज गोपालाचारी को लोग ‘राजा जी’ कहते है।वे मद्रास के मुख्य मंत्री और देश के गवर्नर जनरल रह चुके थे।
राष्ट्रपति के पद के लिए जवाहर लाल नेहरू ने राजाजी का नाम 1949 में कांग्रेस विधान पार्टी की बैठक में पेश किया था।उस पर जब पार्टी में भारी विरोध हो गया तो नेहरू जी ने धमकी दी कि यदि राजा जी नहीं बनाए गए तो मैं प्रधान मंंत्री पद से इस्तीफा दे दूंगा। इसके बावजूद जब बात नहीं बनी तो एक डेमोक्रेट की तरह नेहरू ने बहुमत की बात मान ली। यानी, इस तरह राजेंद्र बाबू 1950 में राष्ट्रपति बना दिए गए। याद रहे कि 1942 का ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ आजादी की लड़ाई के दौरान का सबसे बड़ा आंदोलन था।फिर भी राजाजी उस आंदोलन के खिलाफ थे। भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ तो आॅल इंडिया मुस्लिम लीग के अध्यक्ष एम.ए.जिन्ना और और हिंदू महा सभा के अध्यक्ष बी.डी. सावरकर भी थे।
कम्युनिस्टों ने भी भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था। डा. आम्बेडकर तो दलितों के हित में सरकार से कुछ सहूलियत पाने के लिए वायसराय के एक्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य बन गए थे। उन्होंने भी भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था। इन तमाम विरोधों के बावजूद भारत छोड़ो आंदोलन सफल रहा और 1947 में अंग्रेजों ने भारत छोड़ दिया।
—एक भूली बिसरी याद—–