‘यूपी सरकार की पूरी ताक़त ‘बेटी बचाओ’ पर नहीं, ‘बेटियों के बलात्कारियों को बचाओ’ पर केंद्रित हो गई है’

यूपी : उन्नाव में बलात्कार और उसके बाद के घटनाक्रम ने प्रदेश की राजनीति और पुलिस के अमानवीय और संवेदनहीन चेहरे को इस क़दर बेनक़ाब किया है कि देश का हर नागरिक हैरत में है।

New Delhi, Apr 14 : हाल के सामूहिक बलात्कार के दो मामलों की वीभत्सता और बर्बरता ने देश के संवेदनशील नागरिकों को हिलाकर रख दिया है। हर बेटी के मां-बाप के भीतर एक डर, एक आशंका ने घर कर लिया है। क्या हमारा देश बेटियों के लिए सुरक्षित रह गया है ? उत्तर प्रदेश के उन्नाव में बलात्कार और उसके बाद के घटनाक्रम ने प्रदेश की राजनीति और पुलिस के अमानवीय और संवेदनहीन चेहरे को इस क़दर बेनक़ाब किया है कि देश का हर नागरिक हैरत में है।

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लगता है कि प्रदेश सरकार की पूरी ताक़त ‘बेटी बचाओ’ पर नहीं, ‘बेटियों के बलात्कारियों को बचाओ’ पर केंद्रित हो गई है। जम्मू के कठुआ में आठ साल की बच्ची आसिफा के साथ मंदिर परिसर में कई दिनों तक हुए बलात्कार और उसकी बर्बर हत्या से देश अलग स्तब्ध है। यह घटना मनुष्यता के पतन की पराकाष्ठा है। इस मामले में कम से कम जम्मू कश्मीर पुलिस की भूमिका की सराहना तो की ही जानी चाहिए जिसने बहुत तेजी से न सिर्फ इस घटना के लिए ज़िम्मेदार लोगों को पकड़ा, बल्कि पूरे सबूतों के साथ कुछ ही दिनों में ट्रायल के लिए उन्हें न्यायालय के हवाले कर दिया।

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हां, इस घटना ने हिन्दू एकता मंच जैसे धार्मिक संगठनों के बर्बर चेहरे को ज़रूर देश के सामने ला दिया जिन्होंने मानवता को कलंकित करने वाले इस मामले का भी हिन्दू-मुस्लिम एंगल खोज लिया और हिन्दू बलात्कारियों को बचाने के अभियान में निकल पड़े। Rapeइन धार्मिक संगठनों का जन्म ही शायद देश में आग लगाने के लिए हुआ है। हम सबके लिए इन्हें नज़रअंदाज़ कर देना ही श्रेयस्कर है। संतोषजनक है कि समूचा देश मज़बूती से अपनी मरहूमा बेटी आसिफा के साथ खड़ा है।

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हमारी कोशिश अब यह होनी चाहिए कि हम देश की न्याय व्यवस्था पर इतना दबाव बनाएं कि वह प्राथमिकता के आधार पर इस और इस जैसे बलात्कार के तमाम नृशंस कांडों का ट्रायल एक दो महीनों में पूरा कर अपराधियों को फांसी की सज़ा सुनाए। Rape Victimन्यायालयों की लेटलतीफी और लापरवाही बलात्कार के मामलों में निरंतर वृद्धि की एक बड़ी वजह है। क्या हम देश के न्यायालयों में बरसों से ट्रायल की बाट जोह रहे बलात्कार के लाखों मामलों के लिए भी एक भारत बंद नहीं बुला सकते ?

(Dhurv Gupt के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)