” नीतीश युग का अवसान ! “

जेडीयु अध्यक्ष के तौर पर नीतीश कुमार अपना दो साल का कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। नीतीश जब राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं थे तब भी बिहार में बिहार में अपनी पार्टी – संगठन से जुड़ा फ़ैसला वही लेते थे।

New Delhi, Apr 17 : तारीख़ 24 जनवरी 2014… खचाखच भरे पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में जननायक स्व. कर्पूरी ठाकुर की जयंती समारोह का आयोजन चल रहा। जनता दल युनाइटेड द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ – साथ पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव भी मंच पर मौजूद थे। लगभग चार घंटे के लंबे इंतजार के बाद नीतीश कुमार का संबोधन ख़त्म हुआ। सबसे अंत मे शरद जी को बोलना था। चंद शब्दों में कर्पूरी को याद करते हुए शरद यादव ने कहा कि उन्हें एक आवश्यक जानकारी सभी को देनी है। हाथ मे लिए कागज़ के छोटे से टुकड़े को देखते हुए शरद यादव ने तब राज्यसभा के लिए जेडीयु के तीन उम्मीदवारों के नाम का एलान किया था। एक रामनाथ ठाकुर को छोड़कर शरद जी न तो ठीक तरीके से हरिवंश जी का नाम ले सके थे और न ही कहकशां परवीन का। शरद जी की लटपटाहट बता रही थी कि इन दो नामों से वो पूरी तरह से वाकिफ़ नहीं थे।

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शरद यादव की लड़खड़ाहट नए सियासी संकेत दे रही थी। मध्य प्रदेश से निकलकर बिहार को राजनीतिक ज़मीन बनाने वाला नेता जिसने राष्ट्रीय स्तर पर समाजवाद को लेकर तमाम तरह के एक्सपेरिमेंट किये उसकी पकड़ अपनी ही पार्टी पर ढ़ीली पड़ रही थी। मांझी प्रकरण से लेकर महागठबंधन के बनने तक यह संकेत और पुख़्ता हुए। बाद में शरद यादव को कैसे राज्यसभा जाने के लिए हठयोग करना पड़ा और कैसे अप्रैल 2016 में उन्हें क़रीने से राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेवारी से बेदख़ल किया गया। यह किसी को बताने की भी ज़रूरत नहीं।

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मैंने अपने पिछले पोस्ट में भी लिखा था कि नीतीश कुमार के नाभि के रहस्य को समझना आसान नहीं होता। ऐसे दर्जनों मौके आये होंगें जब नीतीश कुमार ने बड़े फ़ैसलों को अंत तक नाभि में छिपा कर रखा होगा। लेकिन ज्यादातर मामलों ने उनके इस रहस्य को हमने अपने राजनीतिक सोर्स की मदद से डिकोड किया। विधान परिषद की हालिया उम्मीदवारी के मामले में कोई भी पत्रकार उसे तब तक डिकोड नहीं कर सका, जबतक वशिष्ठ नारायण सिंह ने ख़ुद आधिकारिक तौर पर इसकी जानकारी नहीं दी।
जेडीयु अध्यक्ष के तौर पर नीतीश कुमार अपना दो साल का कार्यकाल पूरा कर रहे हैं। नीतीश जब राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं थे तब भी बिहार में बिहार में अपनी पार्टी – संगठन से जुड़ा फ़ैसला वही लेते थे। जेडीयु अध्यक्ष रहते हुए शरद यादव की यह ख्वाहिश ही रह गई कि बिहार के अंदर पार्टी में क्या कुछ चल रहा है, इसकी जानकारी नीतीश कुमार उनसे साझा करते। कई बार शरद जी ने ऑफ रिकॉर्ड हमसे कहा होगा कि नीतीश कुमार के साथ रात के खाने पर पूरे देश की राजनीति पर चर्चा होती है, बिहार को छोड़कर। बिहार का प्रदेश नेतृत्व नीतीश कुमार के प्रति समर्पित रहा और संगठन से लेकर पार्टी के विधानमंडल स्तर का काम देखने के लिए उन्होंने अपने गृह जिले से आने वाले सहयोगी श्रवण कुमार पर ही भरोसा किया। जेडीयु के संगठन से जुड़ी कोई जानकारी लेनी हो तो हम एक रिपोर्टर के नाते श्रवण बाबू को ही याद करते थे। चुनावी प्रबंधन के लिए प्रशांत किशोर के आने के बावजूद श्रवण कुमार की संगठन में चलती रही।

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लेकिन जनवरी 2017 के बाद जेडीयु में संगठन के स्तर पर नए बदलाव के संकेत मिलने लगे। दरअसल नीतीश कुमार की कृपा के बूते ब्यूरोक्रेसी से राजनीति में आये आरसीपी सिंह ने इस दौरान उत्तर प्रदेश का ख़ूब चक्कर लगाया। जेडीयु की स्थिति भले ही एक विधानसभा सीट जीतने की नहीं थी लेकिन आरसीपी सिंह ने बिहार से हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं को ले जाकर कई कार्यक्रम किए। बिहार से गये जेडीयु कार्यकर्ताओं ने आरसीपी सिंह को यूपी में सीएम का चेहरा तक प्रोजेक्ट कर दिया था।
आरसीपी सिंह का नाम पिछले डेढ़ दशक में बिहार के अंदर सर्वाधिक चर्चा वाले नामों में शुमार रहा है। जब वो आईएसएस अधिकारी थे तब भी और जब राजनीति में आये तब भी। नीतीश कुमार की क्लीन इमेज पर विरोधियों ने आरसीपी सिंह को निशाने पर लेकर सबसे ज़्यादा हमला बोला। आरसीपी सिंह नेपथ्य से काम करने वाले थिंक टैंक रहे, कभी सामने आकर पॉलिटिक्स नहीं करते थे। छोटी सी कार में बैठकर नीतीश कुमार के आवास के सुबह से रात तक दर्जनों फेरा लगाने वाले आरसीपी से अगर मीडिया किसी मुद्दे पर बात भी करना चाहे तो निराशा ही हाथ लगती थी। आरसीपी सिंग को 2017 के पहले तक मीडिया अन्फ्रेंडली माना जाता था। लेकिन पहले यूपी चुनाव और फ़िर बाद में महागठबंधन और शरद प्रकरण में आरसीपी सिंह ने अपनी इस इमेज को तोड़ दिया। एक बाइट की कौन पूछे लम्बे – लम्बे इंटरव्यू देने लगे आरसीपी। बैक स्टेज से खेलने वाले आरसीपी शायद इस वजह से भी एक्सपोज़र को एंजॉय करने लगे कि नीतीश कुमार ने उन्हें संगठन की जिम्मेवारी सौंप दी थी। सदस्यता अभियान से लेकर दूसरे दलों के नेताओं को जेडीयु से जोड़ने के लिए आरसीपी सिंह ने मुहिम छेड़ दी। जेडीयु को कवर करने वाले पत्रकारों को याद होगा कि कैसे हर दूसरे दिन पार्टी कार्यालय में प्रेसवार्ता के आमंत्रण के साथ उन्हें मिलन समारोह को कवर करना पड़ता था।

शरद यादव के बाद नीतीश कुमार ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी तो संभाल ली थी लेकिन शराबबंदी, दहेजबन्दी से लेकर पॉलिटिकल क्राइसिस से जूझते नीतीश कुमार के लिए पार्टी संगठन के लिए बहुत वक़्त नहीं था। नीतीश कुमार के विश्वासपात्र श्रवण कुमार भी मंत्री पद की व्यस्तता में थे। ऐसे ने नीतीश की भी एक ऐसे भरोसेमंद और विज़नरी व्यक्ति की आवश्यकता थी जो फुल टाइम संगठन का काम देखे। आरसीपी सिंह इन्हीं वजहों से संगठन का दायित्व देखने लगे।
कहते हैं.. होली के दिन बना पुआ अगर एक खा लीजिये तो दो और खाने की चाहत बढ़ जाती है। पॉलिटिक्स में भी बढ़ते कद का टेस्ट कुछ ऐसा ही होता है। आरसीपी इस टेस्ट को एंजॉय करने लगे। ब्यूरोक्रेसी का दरबार तो उनके स्टैंड रोड आवास पर पहले से ही लगता था। धीरे – धीरे उनके ज़रिये जेडीयु में शामिल होने वाले नई धारा के लोग भी आरसीपी दरबार में माथा टेकने लगे। पार्टी के जानकार बताते हैं आरसीपी अपने बढ़ते कद को नीतीश कुमार के उत्तराधिकार के तौर पर देखने लगे। संगठन में उनकी धाक जमी रहे इसके लिए आरसीपी लगातार 21 दिनों तक मुख्यमंत्री आवास में चले प्रशिक्षण कार्यक्रम ख़ुद घंटों जमे रहते थे। आरसीपी नीतीश कुमार के वर्किंग स्टाईल को जानते हैं, उन्हें मालूम है कि नीतीश किस जुनून से किसी अभियान को छेड़ते हैं। शायद यही वजह रही कि उन्होंने पूरे प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान शराबबंदी, दहेजबन्दी और बाल विवाह के खिलाफ अभियान के कंटेंट को जोड़कर रखा। दिलचस्प यह रहा की एक्का – दुक्के पुराने नेताओं को छोड़कर पूरे प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान आरसीपी सिंह के इर्दगिर्द बैठने वाले चेहरे उनके द्वारा ही लाये गए नए लोग थे।

प्रशांत किशोर की विदाई के बाद सास्वत गौतम ने नीतीश कुमार की ब्रांडिंग का जिम्मा उठाया था। लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाले गौतम की जेडीयु से इसलिए रुख़सत होना पड़ा था कि उन्होंने नीतीश कुमार के लिए कमिटेड प्रवक्ताओं को अपना मुलाजिम समझने की भूल की। कुछ एक मामलों में प्रवक्ताओं को निर्देशित करना गौतम को भारी पड़ा। सास्वत गौतम के चलता होने के बाद जेडीयु सोशल मीडिया फोरम पर वैक्यूम से दो चार हो रहा था। आरसीपी सिंह ने इसका भी फ़ायदा उठाते हुए ऐसे लोगों की एंट्री अपने माध्यम से कराई जो नीतीश कुमार के साथ उनके इमेज की ब्रांडिंग इस तौर पर करें कि पार्टी के अंदर नीतीश के विकल्प या उत्तराधिकारी के रूप में केवल आरसीपी ही दिखें। जेडीयु सोशल मीडिया वेबपेज से लेकर दूसरे माध्यमों से आरसीपी को बड़ा एक्सपोज़र देने की तैयारी है।

जेडीयु के अंदर नेतृत्व की स्वीकार्यता को समझने के लिए थोड़ी सी चर्चा लोक जनशक्ति पार्टी की करना चाहूंगा। लोजपा अध्यक्ष रामविलास पासवान के दिल्ली से पटना एयरपोर्ट उतरने, प्रदेश कार्यालय रुकने और फ़िर एसके पूरी आवास जाने तक हाजीपुर के कार्यकर्ताओं का ख़ास दबदबा देखने को मिलता है। मतलब बड़े साहब (रामविलास पासवान) से मिलने अगर हाजीपुर से कार्यकर्ता आ गए तो सीधे मना करना उनके स्टाफ़ के बूते की बात नहीं। वज़ह बिल्कुल साफ़ है.. लोजपा के अंदर रामविलास पासवान का मतलब हाजीपुर और हाजीपुर का मतलब रामविलास पासवान होता है। ऐसे में हाजीपुर के कार्यकर्ताओं को मिला प्रिविलेज पार्टी के संविधान सरीखा है।

जेडीयु के अंदर नालंदा के कार्यकर्ताओं का रसूख़ भी कुछ ऐसा ही है। नीतीश कुमार अगर नेता हैं तो नालंदा का हर बड़ा – छोटा कार्यकर्ता खासम ख़ास। नेता के तौर पर पार्टी के अंदर आरसीपी सिंह की स्वीकार्यता बड़ी तेजी से बढ़ी है लेकिन नालंदा के जेडीयु कार्यकर्ता नीतीश कुमार को छोड़कर किसी अन्य को तरज़ीह नहीं देते। आरसीपी खुद नालंदा के रहने वाले हैं बावजूद इसके जिले में उन्हें भाव नहीं मिलता। जिसका मलाल उन्हें भी रहता है।
चंद महीने पहले का वाक़या है… नालंदा जिले में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए आरसीपी सिंह ने वहां एक कार्यक्रम के आयोजन करने की ठानी। नालंदा जिलाध्यक्ष को बुलाकर आयोजन का पूरा प्लान समझा दिया। श्रवण कुमार पहले से संगठन को देखते रहे हैं लेक़िन नीतीश कुमार के खड़ाऊ के तौर पर। जानकर बताते हैं कि नालंदा जिलाध्यक्ष ने आरसीपी सिंह के निर्देश की जानकारी श्रवण बाबू को दी। हफ़्ते भर के इंतज़ार के बाद आरसीपी सिंह ने जब जिलाध्यक्ष को अपनी बात का कोई नोटिस लेता नहीं देखा तो आख़िरकार उन्होंने नालंदा में आयोजन के लिए ऐसे लोगो की मदद ली जो विधानसभा चुनाव में जेडीयु उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ चुनाव लड़कर थोड़ा बहुत वोट लाये थे। इसके लिए बजाप्ता उनकी जेडीयु में ज्वाईनिंग कराई गई।

नीतीश कुमार के साथ काम कर चुके तेजस्वी यादव कई बार बता चुके हैं कि कैसे नीतीश जी अपना उत्तराधिकार उन्हें सौपने का भरोसा दिलाते थे। तेजस्वी यादव की बातों को आगे सच मान लिया जाए तो क्या ये समझा जाये कि नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को भी ऐसा ही भरोसा दिया है?
सवाल का जवाब देना आसन नहीं लेकिन एक बात जो शीशे की तरह साफ़ है कि आरसीपी नेतृत्व की महत्वाकांक्षा पाले तेजी से आगे बढ़ रहे हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद छोड़कर स्टैंड रोड आवास पर कई दिनों तक समीक्षा की थी तब ये ख़ुलासा हुआ था कि नीतीश कुमार को हर लोकसभा क्षेत्र में एक गारंटेड अल्पसंख्यक वोट मिलने का भरोसा या फार्मूला आरसीपी सिंह ने दिखाया था। सबको मालूम है कि बीजेपी से अलग होकर और नरेंद्र मोदी का विरोध कर के भी जेडीयु का क्या हाल हुआ था। अल्पसंख्यक भी जेडीयु की बजाय आरजेडी को वोट कर गए थे।

विधान परिषद चुनाव में जिस तरह से दो नए चेहरों को जेडीयु ने मौका दिया संभव है आरसीपी 2019 के लिए कोई ऐसा ही फॉर्मूला गढ़कर नीतीश कुमार को बता रहे हों। बीजेपी द्वारा छोड़े जाने का डर भी दिखा रहे हों और उस स्थिति ने वैकल्पिक राजनीति के लिए प्लाटिंग को स्टैब्लिश कर रहे हों।
जो भी हो लेकिन एक बात तय है कि आरसीपी नीतीश कुमार को जितना दिखा रहे हैं, नीतीश कुमार ख़ुद उससे आगे देख नहीं पा रहे हैं। रामेश्वर महतो और ख़ालिद अनवर की योग्यताओं पर चर्चा नहीं करूंगा। बस जेडीयु के अंदर जिस आरसीपी मॉडल को क़रीने से गढ़ा जा रहा है उसमें इन दो नए चेहरों को समझिये। दोनों पार्टी के लिए नए हैं और आरसीपी उनके लिए पार्टी के पुराने और मजबूत नेता। खुद आरसीपी के लिए इससे बड़ी बात क्या होगी कि दरबारियों में चंद माननीयों का इजाफा हो जाये। दरअसल आरसीपी जानते हैं कि पार्टी के अंदर उनसे पहले से मौजूद पुराने नेताओं की आस्था नीतीश कुमार में ज़्यादा है। नीतीश कुमार जब भी क्राइसिस में होंगें समता पार्टी या जनता दल युनाइटेड के शुरुआती दौर से जुड़े उनके सहयोगी ढाल बनकर खड़े रहेंगें। कड़वा सच यह भी आरसीपी को नेतृत्व मिलने की स्थिति में पुराने नेता उनकी राह के कांटे होंगें। आरसीपी दूर की सोच रहे इसलिए पुराने प्यादों की जगह अपने नए प्यादों को बड़े सलीके से सजा रहे और इस पूरी बिसात के लिए नीतीश कुमार के सामने वो 2019 -20 का विनिंग फॉर्मूला परोस रहे।

विधान परिषद चुनाव में उम्मीदवारों को रिपीट किया जाना आवश्यक नहीं था लेकिन जिन दो महाशयों को योग्य समझा गया उनसे ज्यादा योग्यतम और समर्पित कैडर की लंबी फ़ेहरिस्त जेडीयु के अंदर है। हां, उनकी योग्यता आरसीपी के मॉडल में फिट नहीं बैठती क्योंकि वह पुराने हैं और नीतीश कुमार में उनकी आस्था ज्यादा है।
नीतीश कुमार की छवि ऐसी है कि कोई नेता या कार्यकर्ता उनसे सिफारिश या कोई अन्य काम कहने का साहस नहीं जुटा सकता। आरसीपी सिंह इसके उलट हैं। दरबार लगता ही कार्यकर्ताओं के लिए है। मतलब जेडीयु में अगर पॉलिटिकल एडजस्टमेंट चाहिए तो आरसीपी की धारा में बहिये।

जेडीयु के अंदर यह मौजूदा दौर की स्थिति है। संकेत बदलाव के समझिये या नीतीश युग के अवसान के… लेकिन सच कहीं इसके आसपास है कि नीतीश कुमार जैसे माहिर राजनेता भी अपने नीचे चल रहे बदलाव के संकेत या तो समझ नहीं पा रहे या सबकुछ देखकर भी अनजान बनने की कोशिश कर रहे हैं। वैसे शरद जी ने आज तक यह बताया कि उन्होंने संकेतों को समझा था या नहीं। जो भी हो चेहरे पर चेहरा चढ़ रहा है… ध्यान से देखिए नीतीश कुमार के चेहरे पर कोई चेहरा उभर रहा है क्या ? ????

नोट – पिछले दो दिनों में लगभग दो दर्जन से ज़्यादा जेडीयु के पुराने कार्यकर्ताओं से बातचीत के बाद लिखा गया आलेख।

(वरिष्ठ पत्रकार शशि भूषण के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)