इंदिरा गांधी ने कहा था ‘भ्रष्टाचार तो विश्व फेनोमेना है’

2007 में दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूत्र्ति एस. एन. धींगरा ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार को साधारण अपराध के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।’

New Delhi, Apr 27 : महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार को लोकतंत्र की अपरिहार्य उपज नहीं बनने दिया जाना चाहिए।’ आजादी के तत्काल बाद प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचारियों को नजदीक के लैम्प पोस्ट से लटका दिया जाना चाहिए।’ प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की सरकार पर जब भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे तो उन्होंने कहा कि ‘भ्रष्टाचार तो विश्व फेनोमेना है।’
1980 में बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता कर्पूरी ठाकुर ने तत्कालीन मुख्य मंत्री डा.जगन्नाथ मिश्र को संबोधित करते हुए सदन में कहा कि ‘आप मेरे खिलाफ जांच आयोग बैठाने से इसलिए इनकार कर रहे हैं क्योंकि स्वयं आपके खिलाफ जो मुकदमे चल रहे हैं,उन्हें समाप्त करने में इससे आपको सुविधा होगी।’

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@याद रहे कि डा.मिश्र के खिलाफ वे मुकदमे चारा घोटाले से संबंधित नहीं थे।@ जब भागवत झा आजाद बिहार के मुख्य मंत्री बने थे तो मशहूर पत्रकार जर्नादन ठाकुर ने लिखा था – ‘दैत्यों की गुफा में घुसने वाला पहला मुख्य मंत्री भागवत झा आजाद हैं।’ 1988 में समाजवादी नेता मधु लिमये ने कहा था कि ‘मुल्क के शक्तिशाली लोग इस देश को बेच कर खा रहे हैं।’ 1998 में राज्य सभा में कांग्रेस दल के नेता मन मोहन सिंह ने कहा था कि ‘इस देश की पूरी व्यवस्था सड़ चुकी है।’ 2003 में तत्कालीन केंद्रीय राज्य मंत्री दिलीप सिंह जूदेव ने रिश्वत स्वीकारते हुए कहा था कि ‘पैसा खुदा तो नहीं,पर खुदा कसम,खुदा से कम भी नहीं।’

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2007 में दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायमूत्र्ति एस. एन. धींगरा ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार को साधारण अपराध के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए।’ 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘भगवान भी इस देश को नहीं बचा सकता।’ 2003 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त जे.एम.लिंगदोह ने कहा था कि ‘राज नेता कैंसर हैं जिनका इलाज अब संभव नहीं है।’ मैनेजमेंट गुरू अंिदम चैधरी ने कहा था कि
‘भारत में अरबपतियों की बढ़ती संख्या की बुनियाद घोटालों और लोगों के खून पर खड़ी है।’
1998 में तत्कालीन केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव एन.सी.सक्सेना ने कहा था कि ‘भ्रष्टाचार में जोखिम कम और लाभ ज्यादा है।’

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29 नवंबर 2009 को माकपा के तत्कालीन महा सचिव प्रकाश करात ने कोलकाता में कहा कि ‘हमारे कुछ लोगों के सत्ता व पैसे के लालच ने हमारी पार्टी के गौरवशाली इतिहास को दागदार बना दिया।’ इनके अलावा भी कई नेताओं ने समय -समय पर इसी तरह की बातें कही हैं। यानी इस देश के लगभग सभी नेताओं व प्रभावशाली लोगों को बहुत पहले से ही यह मालूम है कि इस गरीब देश को किस तरह भष्टाचार खोखला बना रहा है। पिछले एक-डेढ़ दशकों में हुए घोटालों-महा घोटालों की घटनाएं तो सबको याद ही हंै।इसके बावजूद क्या इस मारक समस्या के अनुपात में इस देश के पक्ष-विपक्ष के नेताओं-कर्णधारों में समानुपातिक परिमाण में चिंता मौजूद है ?यदि है तो कितनी ?क्या इस समस्या का कारगर इलाज अब संभव भी है ?
मेरा हमेशा ही यह मानना रहा है कि सरकारी भ्रष्टाचार की सर्वाधिक मार सामान्य पिछड़ों व कमजोर वर्ग के लोगों पर ही पड़ती है। क्योंकि सरकारी मदद की सर्वाधिक जरूरत उन्हें ही होती है।

(वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)