शुक्रिया सचिन, हमें भाग्यशाली बनाने के लिए !

हर गली ‘मैदान’ हो गई, हर लकड़ी का टुकड़ा ‘बैट’ हो गया और हर कोई ‘सचिन’ हो गया। तुम मैदान में वसीम की बखियां उधेड़ते, हम गली के असीम को पेलकर अपनी भड़ास निकालते।

New Delhi, May 01 : ये वो दौर था जब संडे को आने वाली फिल्म का इंतज़ार हम मंडे से किया करते थे, जब बाप के साथ बेटा भी कृषिदर्शन देख जाना करता था कि किसान भाई आलू कैसे लगाएं, प्यार में पड़ी लड़कियां कुछ और समझ न आने पर…एक चिड़िया, अनेक चिड़िया.. गाया करती थीं और जनसंख्या वृद्धि पर चर्चा करते हुए भूगोल का टीचर एक वजह ये भी बताता था कि देश में मनोरंजन के साधनों की कमी है! ठीक उसी वक्त… प्रिय सचिन, तुम इस देश में मनोरंजन के मसीहा बनकर उतरे।

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जिस उम्र में भारतीय माएं बच्चों को शाम ढलने के बाद मोहल्ले की दुकान से दही लाने नहीं भेजती, उस उम्र में दुनियाभर के गेंदबाज़ों की धज्जियां उड़ाकर तुमने दस्तक दी। मुझे आज भी याद जब तुमने कादिर की गेंद पर एक साथ तीन छक्के लगाए थे और उसी दिन नए बैट की ज़िद्द में मैंने पापा से चार थप्पड़ खाए थे।
उनके थप्पड़ मुझे हिला न पाए मगर तुम्हारी बैटिंग ने मुझे और देश को हिलाकर रख दिया। हर गली ‘मैदान’ हो गई, हर लकड़ी का टुकड़ा ‘बैट’ हो गया और हर कोई ‘सचिन’ हो गया। तुम मैदान में वसीम की बखियां उधेड़ते, हम गली के असीम को पेलकर अपनी भड़ास निकालते। तुम रिकॉर्ड तोड़ते, हम गली के शीशे फोड़ते। तुम ‘मैन ऑफ द मैच’ बनते और हम गली के ‘विलेन’ होते ।

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मगर इसकी किसे परवाह थी। तुम्हारी क्रिकेट में जान थी और हमारी तुममें। तुम्हारी लंबी पारी के लिए नास्तिक ईश्वर से दुआ मांगते, tennis-elbowमहिलाएं सीरियल कुर्बान कर तुम्हारी बैटिंग देखती, डेट कैंसिल कर लड़के घर बैठते, बच्चों के लिए रिज़र्व कोटे से माएं तुम्हें आशीष देती और बुज़ुर्ग भी यही कामना करते कि हे प्रभु! मेरी उम्र भले 5 साल घटा दे मगर सचिन को शतक के लिए जो पांच रन चाहिए, बस वो बनवा दे!

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खेलों पर बोलते हुए ओशो ने एक बार कहा था कि दर्शक मत बनो, खिलाड़ी बनो। सोचता हूं कि अगर खिलाड़ी तुम जैसा हो, तो ज़िंदगीभर दर्शक बने रहना भी कोई कम बड़ा सौभाग्य नहीं है। sachin Anjaliशुक्रिया सचिन, हमें भाग्यशाली बनाने के लिए।

(वरिष्ठ पत्रकार नीरज बधवार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)