क्या आप पत्रकारिता के पेशे को इतना क्रूर बना देना चाहते हैं ?

क्या ये जरुरी है हरदम जो पत्रकार कैमरा ले के चले वो आपके लिए बस रोमांच और सनसनी ही शूट करे? क्या सच में पत्रकारिता को आप लठैती का धंधा ही मान लेना चाहते हैं?

New Delhi, May 08 : Ndtv प्राइम टाइम पे नामवर सिंह सर को देखा। धन्यवाद रवीश कुमार ये दृश्य दिखाने के लिए। मेरे जैसा हिंदी का एक धूलकण आपको साधुवाद कहता है। ये इसलिए कि, इसी टीवी ने हमे राखी सावंत से लेकर ओम बाबा तक का बारंबार इंटरव्यू दिखाया, बिग बॉस का महा-भारत दिखाया, इसने निर्मल बाबा को घर घर पहुंचाया लेकिन देश के किसी भी आलीशान घर के समृद्ध सजे ड्राइंग रूम में लगी लंबी चौड़ी स्क्रीन पर हिंदी साहित्य का कोई नक्षत्र शायद ही कभी चमका हो।

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जब हिंदी के श्रमजीवी तक आईपीएल के मैच में हर गेंद पर सौ रुपइया, दू सौ रुपइया का जुआ खेल रहे थे, तब आपने हमारे हिंदी जगत को ये सम्मान दे, अपना प्राइम समय हिंदी के नाम कर साहित्य के प्रति अपनी भी महत्ती जिम्मेदारी का जो निर्वहन किया है, उसके लिए पुनः साधुवाद।
लोगों ने ये कार्यक्रम देखा। इस कार्यक्रम पे कई लोगों की प्रतिक्रिया भी देख रहा। कई लोग कई तरह से इसे देख रहे।
किसी को लग रहा कि, नामवर सिंह का साक्षात्कार सनसनी वाला होना चाहिए था जिसमे पत्रकार अमितेष कुमार को पूरी तैयारी के साथ जाना चाहिए था।
मुझे लगता है कि बहुत असंवेदनशील होगा वो बौद्धिक समाज जो 90 पार एक साहित्यकार के साक्षात्कार के लिए “पूरे तैयार” हो कर जाए।

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आप चाहते क्या हैं? एक 29- 30 वर्ष का युवा पत्रकार अपने समय के कालविजेता 90 पार साहित्यकर्मी के पास उसकी अकेली और धीमे धीमे सक्रियता खो रही जिंदगी की उदास सी दिखने संध्या वेला में भी मिलने जाय तो अपने तरफ से साहित्यिक, सामाजिक, राजनितिक, दार्शनिक प्रश्नों का नुकीला जखीरा ले के जाय और उनका इम्तेहान ले कि “देखूं तुझमें कितना जान है अभी?”
क्या आप पत्रकारिता के पेशे को इतना क्रूर बना देना चाहते हैं।
क्या एक पत्रकार किसी युवा के हैसियत से किसी साहित्यकार से उनके बुजुर्ग होने की समझ के साथ उनसे स्नेह वश उनका जीवन देखने,उनकी दिनचर्या देखने,उनकी तन्हाई को कुछ मिनट बाँटने,उनकी सोहबत में कुछ थोड़ा बहुत सीखने, उनको नजदीक से देखने नही जा सकता क्या?

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क्या ये जरुरी है हरदम जो पत्रकार कैमरा ले के चले वो आपके लिए बस रोमांच और सनसनी ही शूट करे? क्या सच में पत्रकारिता को आप लठैती का धंधा ही मान लेना चाहते हैं? क्या कैमरा ak56 है? क्या सच में रोज टीवी पर पाकिस्तान पे चीख चीख बम गिरा देने वाला पत्रकार ही पत्रकार है?
हर वक़्त,हर पल को अपने हिसाब से क्यों वसूल कर निचोड़ना चाहते हैं आप? आपको क्यों लगता है कि नामवर से मिले थे तो कुछ निचोङ ही आते, कुछ गार के निकाल लेते?
नामवर सिंह ने पूरी जिंदगी बहस की है।बहस बक लिए पर्याप्त लिख और बोल गए हैं।हज़ारों सवालों का जवाब देते ही जिंदगी गुजारी। कहीं लड़े, कहीं हटे,कहीं बढ़े।
आप उनके इन काम पर पहले निपट आईये, उम्र बीत जायेगी। आज के दौर में जब आपको गर्मी छुट्टी में कश्मीर की वादियां भी घुमनी है और आईपीएल भी देखना है, उतना पढ़ने लिखने का समय निकाल पाइयेगा जो नामवर सिंह से 92 वर्ष की आयु में सनसनी के सवाल पूछियेगा। एक सक्रिय और फक्कड़ लड़ती जवानी को अब एक शान्त और निश्चिंत बुढ़ापा तो जीने दीजिये।

एक और बात,
कल के प्राइम टाइम से कुछ सीखने कोशिश करिये, आप जाँच से परे जा चुके उम्र से इम्तेहान की सोच रहे।
नामवर जी के कमरे में, उनके गुरुदेव की बड़ी सी तस्वीर थी। उन्होंने नाम लिया”परम् आदरणीय गुरुदेव श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी जी”
दोस्तों, 92 वर्ष की उम्र में भी एक शिष्य की भांति अपने गुरु का उतनी ही ताज़ी श्रद्धा के साथ नाम लेना, सीखिये कुछ हमलोग। नामवर जी एक सीन में आपको ये सीखा गये।

दूसरा, जब अमितेश कुमार ने पानी के लिए पूछा, नामवर जी को लगा वे पानी मांग रहे। नामवर जी 92 की उम्र में सजग मेजबान की तरह कांपते टांगो पे भी खड़े होने लगते हैं। ये सीखिये नामवर जी से।
फिर, जब अमितेष बताते हैं कि पानी सर आपको चाइये? और खुद जा उनके लिए पानी लाते हैं, तब नामवर जी पानी ले कहते हैं”ओह् माफ़ करियेगा” और तब जा पानी पीते हैं। ये बताता है कि नामवर सिंह जी इस उम्र में भी कितने उतने ही सक्रिय हैं अपने संस्कारों के संदर्भ में।एक शिक्षक से ये सब भी सिखिये ।
नामवर जी बार बार भगवान का नाम ले रहे थे, यहां भी ये सीखिये और जानिये कि भारतीय जीवन पद्धत्ति का कोई जोड़ अभी तक भारतियों को पार नही कर पाया है। अब नास्तिक हों या आस्तिक लेकिन अंत में आप हैं तो भारतीय ही न। ईश्वर के नाम पर किसी का शोषण बुरा है, पर जो ईश्वर आपको नुकसान न देता हो, भारतीय संस्कृति उसे स्वीकार कर लेती है। नामवर उस ईश्वर को खारिज़ करते हैं जो बुरा करता है।पर वो ईश्वर नुकसानदेह नही जो लोगों को 99 वर्ष जिलाये रखे,स्वस्थ रखे। ईश्वर एक मुहावरा ही सही, सुंदर मुहावरा सुंदर ही तो है।
और अंत में पत्रकार अमितेष को इस बात के लिए बधाई की उन्होंने एक बुजुर्ग के लिए खुद जा पानी लाया, ये बताता है कि ,अमितेष पूरी तैयारी के साथ गये थे जहां उनको इस बात का पूरा होश था कि वे केवल पत्रकार नही, एक अच्छे युवा भी हैं,जो बुजुर्गियत की कद्र जानता है। जय हो।

(नीलोत्पल मृणाल के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)