‘जिन्ना को बढ़िया से जानो और सावरकर को समझो’

अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय में लगे जिन्ना के चित्र को श्रद्धा का नहीं , अपितु इतिहास का विषय मानना चाहिए।

New Delhi, May 09 : जिन्ना को बढ़िया से जानो और सावरकर को समझो। बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार की साझेदार बनी हिन्दू महासभा क्या हिन्दुत्व का झाल बजाने जिन्ना से गलबहियाँ करने गयी थी?
नहीं देश हिंदोस्तान को तोड़ने के षड्यन्त्र का रिहर्सल कर रहे थे सत्ता के भूखे मुस्लिम-हिन्दू विघटन के सियासी सरदार। जिन्ना इतिहास का वो अध्याय है जो हिन्दू महासभा की कलई उतारता है। जिन्ना की तस्वीर उतारने से इतिहास नहीं मिटने वाला। मेरे मित्र पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा का ये आलेख इतिहास की कई परतें उतारती है~ पढ़िये ज़रूर!

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अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय में लगे जिन्ना के चित्र को श्रद्धा का नहीं , अपितु इतिहास का विषय मानना चाहिए। इस विश्व विद्यालय की स्थापना सर सैयद अहमद खां ने की थी , जो भले ही अंग्रेजों के हिमायती थे , पर मुस्लिमों में आधुनिक शिक्षा के प्रबल पक्षधर भी थे। इस लिहाज से उनका दृष्टिकोण रूढ़िवादी मौलवियों से भिन्न था।
जिन्ना का यह चित्र आज कल नहीं लगा , बल्कि 1938 में लग चुका था। जबकि इससे पहले इसी विश्व विद्यालय में महात्मा गांधी का चित्र लग चुका था , जो आज भी है।
जिन्ना अकस्मात एवं परिस्थिति वश मुस्लिमों का धर्म ध्वजी बना। अन्यथा वह पाश्चात्य रहन सहन का आदी एक वकील था , और ऐसी चीजें खाता पीता था , जिनका नाम सुन कर ही धर्म ग्राही मुस्लिमों को कै आने लगती है। भारत की राजनीति में अनफिट होकर वह लन्दन जा बसा था। क्योंकि उसे न हिंदी आती थी और न उर्दू। उसे लन्दन से कई साल बाद शायर इक़बाल भारत वापस लाये , क्योंकि तब तक द्विराष्ट्र बाद का सिद्धान्त जन्म ले चुका था , और एक मुस्लिम राष्ट्र की पैरवी के लिए जिन्ना जैसे कानून जानने वाले और कुतर्क करने वाले वकील की ज़रूरत थी।

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द्वित्तीय विश्व युद्ध के उपरांत जब राज्यों में सरकारों का गठन हुआ , तो बंगाल में उसकी पार्टी मुस्लिम लीग के साथ हिन्दू महा सभा भी सरकार में साझीदार थी। क्योंकि दोनों देश को तोड़ने में विश्वास रखते थे , और आज भी रखते हैं।
वह अपने गुजराती सम प्रदेशीय गांघी से बहुत द्वेष रखता था , और उन्हें चिढ़ाता था। उनके सामने वार्ता के लिए बुलाई गई बैठकों में सिगरेट फूंकता रहता था , और उनकी बकरी की ओर ललचाई बुरी नज़रों से देखता था। फिर भी गांधी उसकी क्षुद्रताओं को बर्दाश्त करते थे , और उसे क़ायदे आज़म की संज्ञा उन्हीने दी थी।
गांघी ने देश विभाजन रोकने का भरसक प्रयत्न किया , लेकिन जब जिन्ना ने गृह युद्ध की धमकी दी तो वह मन मसोस कर रह गए।

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पाकिस्तान बनने के बाद वह तत्काल धर्म निरपेक्ष बन गया , जो असल मे वह था भी। पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष के रूप में दिए गए अपने पहले भाषण से ही वह वहां के कट्टरपंथियों की किरकिरी बन गया , क्योंकि उसने कहा था कि इस देश मे हर धर्मावलंवी को अपना धर्म मानने की छूट है। इसके कुछ ही समय बाद वह tb से मर गया । अगर न मरता , तो मुस्लिम कट्टर पंथी उसे मारने वाले थे , जैसा कि भारत में हिन्दू कट्टरपंथियों ने गांधी को मारा।
जब वह मरने वाला था , और उसकी बहन उसे कराची से इस्लामाबाद लायी , तो हवाई अड्डे पर उसे रिसीव करने वाला कोई न था। यही नहीं , उसे वहां से हॉस्पिटल तक लाने के लिए एक खटारा एम्बुलेंस भेजी गई , जो रास्ते मे खराब हो गयी , और जिन्ना उसमे तड़पता रहा।
वह अपने अंतिम दिनों में देश विभाजन की अपनी भूल को महसूस करने लगा था , साथ ही यह भी कि वह अपने लाखों धर्म बन्धु मुस्लिमों की हत्या का उत्तरदायी है। आज भारतीय उप महाद्वीप में मुस्लिम जिन्ना की वजह से ही अब तक आक्रांत हैं। आज देश विभाजित न होता , तो भारत विश्व का नम्बर 1 मुल्क़ होता।
बहरहाल, जिन्ना की तसवीर हमारा क्या बिगाड़ेगी , जब जिन्ना खुद कुछ न बिगाड़ पाया। उसकी तस्वीर लगी रहने दो। वह भारतीय मुसलमानों का आदर्श कभी नहीं रहा , कभी नहीं रहेगा। समय समय पर इतिहास का तापमान परखने के लिए उसकी तस्वीर ज़रूरी है।

(वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)