थोड़ा बड़ा पोस्ट है लेकिन पढ़ लीजिये और अपनी संस्कृति, धर्म, परंपरा, धर्मग्रंथो पर गर्व कीजिये

हिन्दू शब्द सनातन शब्द ही है और हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहके आप दुविधा और भय का प्रदर्शन न कीजिये ।

New Delhi, May 09 : जब कभी भारत के वैदिक ,पौराणिक और मुगल पूर्व इतिहास की चर्चा कीजिये तो कुछ खास विचारधारा के लोग आपकी हंसी उड़ाने लगते हैं । जिन्हें अपने पूर्वजों पर यकीन ना हो और जो दूसरों के विचारों में ही अपना इतिहास ,वर्तमान और भविष्य देखते हैं उन्हें यह पोस्ट गलत और झूठ लगेगा। इस बार मैं ” हिन्दू ” शब्द को लेकर जो धारणा बनाई गई है उसका जवाब देना चाहता हूँ। कुछ खास वर्ग के विचारकों और इतिहासकारों द्वारा दिये गए फैसले को इस तरह आत्मसात किये हुए हैं कि उनका विरोध करने वाले भी हिन्दू शब्द के बदले सनातन शब्द का इस्तेमाल करने लगते है । यकीन मानिए हिन्दू शब्द सनातन शब्द ही है और हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहके आप दुविधा और भय का प्रदर्शन न कीजिये । आम धारणा है कि पारसी जब भारत आये तो उच्चारण दोष के कारण सिंधु को हिन्दू कहने लगे ।इसलिए हिन्दू शब्द बहुत हाल का बना शब्द है । और जब इसे हिन्दू धर्म से जोड़कर कहना होता है तो लोग संकोच या भयवश सनातन धर्म कहकर औपचारिकता पूरी करते हैं।

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लगभग 5 हजार साल पहले हिंदुस्तान ( भारत या आर्यावर्त ) से शुक्राचार्य नामक ऋषि अरब देश चले गए ।वे असुरो के कुलगुरु थे इसलिए उनके शिष्यों ने अरब देश मे अपना राज स्थापित किया । शुक्राचार्य भारी विद्वान थे और उनके शिष्य विद्वान और बलशाली दोनो थे । असुरों के प्राचीन अरबी काव्य संग्रह ग्रन्थ ‘सेअरुल – ओकुल’ के 257 वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद से 2300 वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष पूर्व पैदा हुए ‘लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-तुरफा’ ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत भूमि एवं वेदों को सम्मान दिया हैं और उन्होंने ही हिन्दू धर्म को संज्ञापित किया वह इस प्रकार से हैं –
“अया मुबारेकल अरज मुशैये नोंहा मिनार हिंदे
व् अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन ||1||
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सह्बी अरवे अतुन जिकरा वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल हिंद्तुन ||2||
यकूलूनुल्लाहः या अह्लल अरज आलमीन फुल्ल्हुम
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन योनज्वेलतुन ||3||
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहेतन्जीलन
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअनयोवसीरीयोनजातुन ||4||
जईसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-खुबातुन
व असनात अलाऊढन व होवा मश-ए-रतुन ||5||
तब के अरबी भाषा मे लिखे इन पंक्तियों के मतलब इस तरह है।
– हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार हिंदे ) तू धन्य हैं , क्योकि ईश्वर ने अपने ज्ञान के लिए तुझको चुना हैं ||1||

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वह ईश्वर का ज्ञान प्रकाश , जो चार प्रकार स्तंभों के सदृश्य सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करता हैं , यह भारत वर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार रूप में प्रकट हुआ ||2||
और परमात्मा समस्त संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता हैं कि वेद , जो मेरे ज्ञान हैं ,इनके अनुसार आचरण करो ||3||
वह ज्ञान के भण्डार साम व यजुर हैं , जो ईश्वर ने प्रदान किये हैं , इसलिए, हे मेरे भाईयो , इनको मानो क्योंकि ये हमें मोक्ष का मार्ग बताते हैं ||4||
और दो उनमे से ऋक , अतर ( ऋग्वेद ,अथर्ववेद ) जो हमें भातृत्व की शिक्षा देते हैं और जो इनकी शरण में आ गया , वह कभी अन्धकार को प्राप्त नहीं होता हैं||5||

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इन श्लोको में वेदों की चर्चा तो है ही उस समय प्रचलित धर्म की भी चर्चा है। शुक्राचार्य तो वेदज्ञ थे ही उनके चेले भी वेद पुराण और हिन्दू परम्पराओ को मानने वाले ही थे ।जाहिर है हिन्दू शब्द पारसियों या अंग्रेजो का दिया हुआ शब्द नही है बल्कि पौराणिक और वैदिक काल से प्रचलित थे। ऋग्वेद के ब्रहस्पति अग्यम में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार आया है……
“हिमलयं समारभ्य यावत इन्दुसरोवरं ।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
अर्थात : हिमालय से इंदु सरोवर तक देव निर्मित देश को हिंदुस्तान कहते हैं |
सिर्फ वेद ही नहीं……बल्कि..मेरूतंत्र ( शैव ग्रन्थ ) में हिन्दू शब्द का उल्लेख इस प्रकार किया गया है…..
“हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये।”
अर्थात : जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं
. और इससे मिलता जुलता लगभग यही यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है :
” हीनं दुष्यति इति हिन्दू ।”
अर्थात जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं।
अब जो लोग हिन्दू धर्म को सनातन धर्म कहने को मजबूर होते हैं उनके लिए दुविधा की कोई गुंजाइश नही है।बिना संकोच के सनातनधर्म को हिन्दू धर्म कह सकते है।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)