लालू और नीतीश की आत्मीयता के मायने, दोनों के बीच दिखा अनकहा रिश्ता

जयमाल के मंच पर लालू परिवार ने नीतीश कुमार के प्रति जो आत्मीय भाव दर्शाया वह यूँ ही नहीं है।

New Delhi, May 15 : तेज प्रताप यादव की बहुचर्चित शादी संपन्न हो गई। आगे- आगे घोड़े पर चल रहे दूल्हे के पीछे भींगी आंखो से डोली में बैठकर बहू ऐश्वर्या पटना के 10 सर्कुलर रोड स्थित अपने ससुराल आ गईं। इसके पहले, पटना के वेटनरी कालेज ग्राउंड में हज़ारों की भीड़ के बीच ऐश्वर्या राय ने तेज प्रताप को जयमाला पहनाकर उनका वरण किया। उस समय तेज की विनम्रता देखते ही बनती थी। उन्होंने अत्यंत शिष्टता से शीश झुकाकर ऐश की वरमाला पहनी और खुद भी उन्हें माला पहनाई। विवाह समारोह में बड़े से लेकर छोटे तक ने शिरकत की। जिस वेटनरी कालेज के चपरासी क्वार्टर से ग़ुरबतों के बीच लालू प्रसाद ने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था, करीब 4 दशक बाद उसी कालेज का मैदान उनके पुत्र के भव्य और बेहद खर्चीली शादी का साक्षी बना।

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कहा जाता है कि औरत के भाग्य से पुरुष का भाग्य भी बदलता है। तेज के मामले में यह सामने घटित होता दिख रहा है। अर्से से लालू प्रसाद दुश्वारियों में घिरे हुए हैं। पूरा परिवार केस -मुकदमों में फंसा हुआ है। खुद लालू चारा घोटाले में सजायाफ्ता होकर जेल में हैं। ऐश को सगाई की अंगूठी पहनाते ही लालू परिवार में खुशियों ने दस्तक देना शुरू कर दिया।लालू प्रसाद के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। उन्हें पैरोल मिला। फिर 6 हफ्ते की बेल मिल गई। उधर मां राबड़ी देवी विधान परिषद में विपक्ष की नेता घोषित हो गईं। हालाँकि उनके दल के पास नेता विपक्ष होने लायक पर्याप्त विधान पार्षद नहीं है। शादी के बहाने अर्से बाद परिवार में हंसी -ख़ुशी का माहौल बना। नाते -रिश्तेदारों ,शुभचिंतकों का जुटान हुआ।

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तेज प्रताप के विवाह के कई राजनीतिक मायने भी हैं। इससे दो राजनीतिक घराने एक रिश्ते में बंध गये। शादी में उमड़ी भीड़ ने स्पष्ट कर दिया कि लोकप्रियता और जन समर्थन में आज भी लालू प्रसाद का कोई सानी नहीं है। यादव और मुस्लिम समाज में उनकी गहरी पैठ है। तमाम आरोपों के बावजूद उनका समर्थन कम होता नहीं दिख रहा। लेकिन राजनीतिक प्रभामंडल जरूर फीका हुआ है। प्रायः सभी बड़े नेताओं और राजनीतिक दलों ने लालू परिवार से दूरी बना ली है। शादी समारोह में बड़े और नामचीन राजनीतिक चेहरों का नजर नहीं आना इसका प्रमाण है। हालांकि लालू के उनके नजदीकी नेता लगातार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी समेत तमाम बड़े नेताओं का नाम अंत अंत समय तक गिना रहे थे कि उनके आने की स्वीकृति मिल गई है। हल्ला पीएम के आने का भी उड़ाया गया था।

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लेकिन राहुल -प्रियंका तो दूर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमेशा लालू की पालकी उठानेवाले वामपंथी दलों का भी कोई राष्ट्रीय नेता नहीं आया। ममता बनर्जी भी नहीं आईं। खुद लालू के समधी मुलायम सिंह यादव ने भी आना जरुरी नहीं समझा। 74 आंदोलन में लालू के साथ रहे बीजेपी के केंद्रीय मंत्रियों का भी चेहरा कहीं नजर नहीं आया। जबकि कुछेक वर्ष पूर्व हुए लालू की बेटी और मुलायम के पोते की शादी के रिसेप्शन में पीएम नरेंद्र मोदी समेत तमाम बड़े नेताओं ने शिरकत की थी। दक्षिण की पार्टियों का भी कोई नेता नहीं आया।
इसका मतलब क्या यह समझा जाए क़ि लालू प्रसाद अलग -थलग पड़ गए हैं ? उनका राजनीतिक आभामंडल अब अवसान की और है ? उनपर एवं उनके परिवार पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के चलते कोई बड़ा नेता या दल उनके साथ खड़ा होने को तैयार नहीं है ? हालंकि राजनीति और पारिवारिक समारोह दो अलग -अलग चीजें हैं। राजनीतिक मतभेद और विरोध के बावजूद पारिवारिक सुख -दुःख में राजनेता एक साथ दिखते रहे हैं। अबतक की परंपरा यही रही है। लेकिन लालू के मामले में यह परंपरा भी टूट गई। बड़े नेता के नाम पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ही नजर आये।

जयमाल के मंच पर लालू परिवार ने नीतीश कुमार के प्रति जो आत्मीय भाव दर्शाया वह यूँ ही नहीं है। जिस तरह लालू देर तक नीतीश का हाथ पकडे रहे, राबड़ी देवी ने अपनी बेटियों से उनका परिचय कराया और तेजस्वी बगल में बैठे रहे उसके गहरे राजनीतिक मायने हैं। यह दर्शाता है कि नीतीश के लालू से अलग होने के बाद भी दोनों के बीच बहुत कुछ बचा हुआ है। इसमें नई राजनीति की आहट सुनी जा सकती है। वहीँ खड़े रामविलास पासवान के लिए वैसी आत्मीयता नहीं दिखी।
सब कुछ बदल सकता है लेकिन लालू के लोग नहीं बदल सकते। लालू का कोई भी कार्यक्रम हो और उसमे हंगामा न हो यह संभव नहीं। यह रश्म यहाँ भी पूरी हुई। भोजन के लिए हंगामा हो गया। क्राकरी तोड़े गए। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठियां भांजी गई। लात -घूंसे भी चले। भीड़ के चलते जयमाल स्टेज की सीढ़ी टूट गई। कई को चोटें आई। जानकारों के मुताबिक एक दूसरी शादी में जा रहे हाथी को महावत समेत पकड़कर जबरन समर्थक बारात में ले आये। ये सारे रश्मों -रिवाज हुए। बिडंबना देखिये कि जो तेज प्रताप सुशील मोदी के पुत्र की शादी में हंगामा करने की धमकी दे रहे थे , उसमें तो कुछ नहीं कर पाये लेकिन खुद उनकी शादी में ही हंगामा हो गया।

दहेज़ प्रथा और शादी में फिजूलखर्ची के खिलाफ अभियान छेड़नेवाले नीतीश का इस शाही शादी में शामिल होना भी कम हैरान करनेवाला नहीं है। थाईलैंड से मंगाये गये फूलों से सजे स्टेज पर बैठे नीतीश कभी असहज नहीं दिखे। पता नहीं उनके समर्थक इससे क्या सन्देश ग्रहण करेंगे ? कुछ ही महीने पहले इस ग्राउंड ने पटना विवि छात्रसंघ में लालू के ‘सचिव’ रहे सुशील मोदी के पुत्र की भी शादी देखी थी। दोनों 74 आंदोलन के नेता रहे। जेपी के सामने व्यवस्था परिवर्तन की कसमें खाई थीं। लेकिन ‘अध्यक्ष’ ने कसम की ऐसी -तैसी कर दी। जबकि ‘सचिव’ ने कसम का मान रखा। शायद 74 आंदोलन के उसूल अब बेमानी हो गए हैं।
बहरहाल नव दम्पत्ति को ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें, इस उम्मीद के साथ की वे अपने परिवार के लिए कोई नई लकीर खींच पायें।

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)