देश में हर तीसरी लड़की होती है ‘ बैड टच’ का शिकार

यह रिपोर्ट देश भर के चार हजार से अधिक किशोरों अौर किशोरियों से बातचीत के आधार पर तैयार की गयी है ।

New Delhi, Mar 18 : देश में हर तीसरी लड़की को सार्वजानिक स्थलों पर गलत तरीके से छुआ या घूरा जाता है। सेव द चिल्ड्रेन की रिपोर्ट विंग्स 2018 वर्ल्ड ऑफ इंडियाज गर्ल्स ए स्टडी ऑन द परसेप्शन ऑफ गर्ल्स सेफ्टी इन पब्लिक प्लेसेस में यह जानकारी दी गई है। इस रिपोर्ट को मंगलवार को दिल्ली में आवास अौर शहरी मामलों के राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने जारी की।

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यह रिपोर्ट देश भर के चार हजार से अधिक किशोरों अौर किशोरियों से बातचीत के आधार पर तैयार की गयी है । आठ सौ अभिभावकों से भी बात की गयी। सर्वेक्षण में विभिन्न राज्यों के 12 जिले , 30 शहर अौर 84 गांवों में लड़कियों से की गई बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है। श्री पुरी ने कहा कि आर्थिक प्रगति से महिलाअों को मिलने वाले अवसर बढ़ते हैं। हालांकि व्यक्तिगत सुरक्षा की चिंता इस प्रगति में बाधा बनती है। महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि समानता वाले समाज के लिए महिलाअों अौर लड़कियों के अधिकारों अौर सुरक्षा के प्रति उनकी चिंता पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

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सेव द चिल्ड्रेन की मुख्य कार्यकारी अधिकारी विदिशा पिल्लई के मुताबिक इस अध्ययन से घर से बाहर निकलते समय लड़कियों के डर का पता चलता है। girlइस डर की वजह से उनके आत्मविश्वास को चोट पहुंचती है अौर भविष्य भी जोखिम में पड़ता है। इस डर की वजह से उनकी शादी जल्दी हो जाती है अौर उनके शिक्षित होने, रोजगार पाने अौर दुनिया से जुड़ने में कठिनाई होती है। उन्होंने कहा कि 25 प्रतिशत लड़कियों ने महसूस किया है कि उनके साथ छेड़छाड़ या दुष्कर्म हो सकता है।

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रिपोर्ट के मुताबिक दो तिहाई लड़कियों ने कहा कि सार्वजनिक स्थलों पर छेड़छाड़ होने पर वे अपनी मां को जानकारी देंगी। जबकि आधी लड़कियों ने आशंका प्रकट की, कि यदि उनके माता-पिता को उनसे छेड़छाड़ के बारे में पता चलेगा, तो उनका घर से बाहर अकेले जाना बंद हो जायेगा। रिपोर्ट में लड़कियों की सुरक्षा के लिए पुलिस व्यवस्था में सुधार, पुलिस में महिलाअों का अधिक से अधिक प्रतिनिधित्व, सार्वजनिक स्थलों पर रोशनी की व्यवस्था, स्व सहायता समूह, बाल समूह अौर माता समूह को बढ़ावा देना, उबर अौर अोला जैसी सभी परिवहन व्यवस्था के ड्राइवरों के लिए प्रशिक्षण जैसे सुझाव दिए गये हैं। जरा सोचिये हम किधर जा रहे हैं ?

(वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)