बीजेपी के लिए कर्नाटक में अगर डरने के लिए तो कुछ था तो वो था बंगलेरू का रिजल्ट

अगर बंगलेरू के रिजल्ट को बीजेपी अभी भी संकेत नहीं मानेगी तो 2019 में बड़ी कीमत देनी होगी।

New Delhi, May 21 : कर्नाटक में विश्वास मत पर जो नाटक हुआ वह कोई न पहली बार हुआ न अंतिम बार। इससे बीजेपी की सेहत पर कोई बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। अगर बीजेपी के लिए कर्नाटक में अगर डरने के लिए तो कुछ था तो वह था बंगलेरू का रिजल्ट। अगर बंगलेरू के रिजल्ट को बीजेपी अभी भी संकेत नहीं मानेगी तो 2019 में बड़ी कीमत देनी होगी।

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बीजेपी, जिसके बारे में धारणा है कि मिडिल क्लास अधिक वोट देते हैं, शहरों में अधिक मजबूत है, वह बंगलेरू के 25 सीटों में 11 सीटों पर ही जीती। 13 कांग्रेस ने। मात्र 50 फीसदी लोगों ने वोट भी किया था। मतलब या तो शहर के लोगों ने वोट नहीं देने में रूचि नहीं दिखायी या दिखाई तो बीजेपी के प्रति वह आकर्षण नहीं रहा। अगर बंगलेरू में बीजेपी को जीत मिली होती तो आज बहुमत में होती।
बंगलेरू भारत का असली कास्मोपोलिटन है। कई युवा भी रहते हैं। संकेत समझें। पिछले चार साल में मोदीजी ने मिडिल क्लास को लगातार टेकेन फॉर ग्रांटेड लिया। टैक्स पर टैक्स। कोई रिलीफ नहीं।

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“वहां सेना जान दे रहे हैं और आप कष्ट नहीं सह सकते?” “देश में पुल बनने के लिए आप त्याग नहीं कर सकते हैं” जैसे तर्क के साथ बहलाया गया। modi shahमिडिल क्लास पूरी तरह उपेक्षित क्लास रही। 2014 में जिन उम्मीदों के साथ पीएम मोदी को चुनने में इस क्लास ने मदद की वह टूट गया। उससे भी बड़ी बात यह रही कि सरकार अैर पार्टी ने पर्याप्त संकेत दिये कि उन्हें इस क्लास की अब जरूरत भी नहीं।

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क्योंकि मिडिल क्लास में जोर कोर सपोर्टर है वह वोट देगा ही। चाहे उनपर कितने सितम हो। यहीं गलती कर रहे हैं। ठीक है कि अगर मोदीजी से नाराज होंगे तो वह दूसरे दल को वोट न दें लेकिन वह नाराज हाेकर घर तो बैठ ही सकते है। बंगलेरू में यही हुआ। मिडिल क्लास वोट देने नहीं निकला। 2004 में भी अटल सरकार को अरबन शॉक का सामना करना पड़ा था। वक्त तेजी से बीतता जा रहा है। अब 300 दिन से कम बचे हैं। मिडिल क्लास को मनाना अभी सबसे बड़ी चुनौती है।क्योंकि अगर वह घर बैठ गये ताे जो टीस कर्नाटक में महसूस हो रही जीत के बाद भी,2019 में भी इसका सामना करना हो सकता है।

(वरिष्ठ पत्रकार नरेन्द्र नाथ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)