ये दौर शर्मनिरपेक्षता का है, मोदीजी आखिर क्या बना दिया आपने अपने पद को ?

सच बताउं तो आपकी फजीहत देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि कोई अरबपति आदमी किसी मॉल दो-चार सौ रूपये की कोई मामूली चीज़ चुराता हुआ रंगे हाथो पकड़ा गया हो।

New Delhi, May 21 : जिस दौर में मैं कॉलेज में दाखिल हुआ, एंटायर पॉलिटिकल साइंस का कोर्स बंद हो चुका था। लिहाजा मुझे सिर्फ पॉलिटकल साइंस पढ़ना पड़ा। तमाम प्रोफेसर और लेक्चरर दुनिया भर के विद्वानों का हवाला देकर बार-बार समझाते थे कि संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री का पद वैसा ही होता है, जो उसे धारण वाला व्यक्ति बनाता है।
आज यही बात जेहन में बार-बार घूम रही है। मोदीजी आखिर क्या बना दिया आपने अपने पद को? ठीक है कि यह दौर शर्मनिरपेक्षता का है। लेकिन क्या वाकई सत्ता के ऐसे निर्लल्ज खेल में उतरे बिना आपका काम नहीं चल सकता था?

Advertisement

पार्टी की फजीहत, नेताओं के झुके कंधे और विरोधियों के गर्वोन्मत अट्टाहास। आखिर क्यों मोल लिया आपने यह सब? सच बताउं तो आपकी फजीहत देखकर मुझे ऐसा लग रहा है कि कोई अरबपति आदमी किसी मॉल दो-चार सौ रूपये की कोई मामूली चीज़ चुराता हुआ रंगे हाथो पकड़ा गया हो।
प्रधानमंत्री अगर चाहते तो सीना ठोककर यह कह सकते थे कि कर्नाटक की जनता ने हमें सबसे बड़ी पार्टी बनाया है और कांग्रेस को नकार दिया है। हमारे पास नंबर नहीं है तो हम विपक्ष में बैठेंगे।
अगर कांग्रेस चुनाव के बाद सत्ता की खातिर गठजोड़ करके अपने विरोधी के साथ सरकार चलाना चाहती है तो चला लें। प्रधानमंत्री अगर यह स्टैंड लेते तो गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों में बीजेपी की पुरानी कारगुजारियों के दाग धुल जाते।

Advertisement

कार्यकर्ताओं में एक अलग तरह का नैतिक बल आता और कांग्रेस बैकफुट पर होती। यह भी संभव था कि कुछ समय बाद जेडीएस-कांग्रेस की सरकार गिर जाती और बीजेपी किसी तरह सत्ता में आ जाती।
लेकिन इसके बदले मोदीजी ने खुलेआम खरीद-फरोख्त का घटिया रास्ता चुना। बीजेपी तमाम नेता खुलेआम दावा करते रहे कि वे जरूरी विधायक खरीद लेंगे।
राज्यपाल बेहयाई की सीमाएं तोड़ते हुए अनूठी स्वामीभक्ति दिखाई और जोड़-तोड़ के लिए 15 दिन का वक्त दिया। सुप्रीम कोर्ट की दखल के बाद फ्लोर टेस्ट हुआ और नतीजा सबके सामने हैं। क्या आधुनिक भारत के सबसे बड़े नेता यह नहीं समझ पाये कि गलत रास्ता अपनाने के नतीजे भी गलत हो सकते हैं?

Advertisement

20 से ज्यादा राज्यों में सरकार और अभूतपूर्व जनसमर्थन के बावजूद मोदीजी ने ऐसा रास्ता इसलिए चुना क्योंकि उनके बिना बालो वाले चाणक्य अपनी चुटिया खोलकर कांग्रेस के विनाश पर तुले हुए हैं।
खुद मोदीजी परशुराम बनकर कांग्रेसियों के संहार के लिए निकल पड़े हैं। संहार उसी का होगा जो खरीदे जाने या बीजेपी में शामिल होने से बच जाएगा। लेकिन परशुराम भी क्षत्रियों का संहार पूरी तरह कहां कर पाये? जोगी ठाकुर तो आज भी बीजेपी के मुख्यमंत्री हैं।
कहना बहुत दुखद है, लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने हर छोटी-बड़ी राजनीतिक लड़ाई को निजी शत्रुता में बदल दिया है। व्यक्तिगत कुंठा और अहंकार की कीमत पूरा देश चुकाएगा और यकीनन बीजेपी को भी चुकाना पड़ेगा।

2014 में दिया गया जनादेश एक पॉजेटिव मैंडेट था, देश की जनता ने नरेंद्र मोदी में बहुत उम्मीदें देखी थीं। यह जनादेश देश को आगे ले जाने के लिए था, नफरत, घृणा और बदले की भावना को राष्ट्रीय चरित्र बनाने के लिए नहीं।
राजनीति एक गंभीर विमर्श है, लेकिन मोदी ने इसे क्रिकेट मैच बना दिया है। विराट कोहली स्लेजिंग करता है तो क्या हुआ, मैच जीतता तो है। जीत के इसी सिलसिले पर भक्तगण गर्वोन्मत है।
लेकिन यह भी याद रखना पड़ेगा कि देश की जनता आजीवन जंघा पीटने और गला फाड़ने वाली मुद्रा में नहीं रह सकती।थकान होगी तो नींद आएगी और जब सुबह आंख खुलेगी तो भूख लगेगी और रोजगार का सवाल भी याद आएगा।
देश के प्रधानमंत्री को बिन मांगी सलाह है। उन्हे कुछ समय अकेले में आत्मचिंतन करना चाहिए कि वे कर क्या रहे हैं। चलो पूरा भारत जीत लेंगे लेकिन उसके बाद क्या?
प्रधानमंत्री को थोड़ा वक्त आडवाणी जी के साथ बिताकर उनके अनुभवों से कुछ सीखना चाहिए। मार्गदर्शक मंडल में बैठे आडवाणी जी कब से अपने प्रिय शिष्य का मार्ग देख रहे हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)