महज विरोध के लिये ये अच्छे विचारों का भी चुटकुला मत बनाइये

कई ऐसे लोगों की वाल पर यह चुटकुला देखा जिन्हें मैं अमूमन संवेदनशील समझता था। यह नहीं जानता था कि वे महज विरोध करने के लिये अच्छे विचारों का भी चुटकुला बना देंगे।

New Delhi, May 28 : दो दिन से यह स्क्रीन शॉट सोशल मीडिया में घूम रहा है। लोग मजाक उड़ा रहे हैं। जाहिर है बीजेपी सरकार का मजाक उड़ाना है तो ज्यादातर मजाक उड़ाने वाले गंभीर किस्म के बुद्धिजीवी हैं। कई ऐसे लोगों की वाल पर यह चुटकुला देखा जिन्हें मैं अमूमन संवेदनशील समझता था। यह नहीं जानता था कि वे महज विरोध करने के लिये अच्छे विचारों का भी चुटकुला बना देंगे। क्योंकि यह मसला सिर्फ बीजेपी या कांग्रेस का नहीं है, मसला हमारी शिक्षा पद्धति के प्रति नजरिये का है।

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वैसे तो जैसा बताया जा रहा है कि स्कूली सिलेबस में पंचर बनाने को शामिल किया जा रहा है, वह गलत जानकारी है। सच यह है कि गुजरात के स्कूलों में जीवन कौशल मेले लगेंगे, जिसमें छात्रों को फ्यूज बांधने, स्क्रू लगाने, कुकर बंद करने, कील लगाने, टायर का पंक्चर लगाना आदि सिखाया जाएगा। यह एक तरह का वर्कशॉप होगा। मगर मुझसे पूछा जाए तो इसका सिलेबस बनाकर इसे एक विषय के रूप में स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करना ही चाहिये।
इस प्रकरण पर बात करते हुए मुझे रांची यूनिसेफ में कार्यरत शिक्षा विशेषज्ञ बिनय पट्टनायक याद आ जाते हैं। 2012-13 में जब मैं पंचायतनामा में काम कर रहा था तो एक मुलाकात में उन्होंने जिक्र किया था कि वे पंचर बनाने, साईकल ठीक करने, जूते की मरम्मत करने, बाइक और ट्रैक्टर की मरम्मत करने, लकड़ी के फर्नीचर बनाने आदि पारंपरिक हुनरों का प्रोसेस डॉक्यूमेंटेशन कर रहे हैं और इसपर एक किताब लिखने की तैयारी में हैं।

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ताकि इन पारंपरिक हुनरों को सुरक्षित रखा जा सके। वे इन हुनरों को स्कूलों में पढ़ाये जाने के भी पक्षधर थे। उन्होंने आदिवासियों की भाषा में स्कूली पाठ्यक्रम तैयार करवाया था। मुझे नहीं लगता कि वे संघी रहे होंगे या कोई बेवकूफ राजनेता। वे बड़ी निष्ठा से अपना काम करते हैं।
कुछ माह पहले तक हमारे सीनियर राजेन्द्र तिवारी जी भी अक्सर अपनी स्कूली शिक्षा का जिक्र करते थे। जिसमें वे बताते थे कि उन्हें खास तौर पर खेती और बागवानी सिखाया जाता था। हर बच्चे के नाम एक क्यारी अलॉट कर दी जाती थी और उसमें फसल उगाना बच्चे का काम होता था।

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पिछले साल जब चम्पारण में गांधी जी द्वारा खोले गए बुनियादी विद्यालयों के पूर्व छात्रों से मिला तो उन्होंने भी बताया कि उन्हें खेती और ऐसी रोजगारपरक स्किल की शिक्षा स्कूल में दी गयी। मगर आज स्कूल का मतलब 90 परसेंट से अधिक नम्बर लाना और बीटेक या एमबीबीएस में से किसी एक पाठ्यक्रम में दाखिला ले लेना भर है। इसलिये जब किसी स्कूल में पंचर बनाने या फ्यूज जोड़ने की शिक्षा की बात होती है तो यह हमारे लिये चुटकुला बन जाता है।
मगर यह कोई हंसने की बात नहीं। तिया के स्कूल में तीन माह पहले फ्यूचर स्किल वर्कशॉप हुआ था जिसमें उसे सिंपल मशीन बनाना सिखाया गया था। तब मैं बहुत खुश हुआ था। अगर मुमकिन हुआ तो मैं भी उसे पंचर बनाना और फ्यूज जोड़ना सिखाऊंगा। आप राजनीतिक विरोध के कारण चुटकुले बनाते रहें।

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)