क्रिकेट वर्ल्डकप में जीता था मैन ऑफ द सीरीज का अवॉर्ड, आज भैंस चराने को हैं मजबूर

साल 1998 वर्ल्डकप में मैन ऑफ द सीरीज जीतने के बाद उन्होने पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन ने सम्मानित भी किया था।

New Delhi, Jun 01 : जहां एक तरफ भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाडियों पर करोड़ों रुपये की बारिश हो रही है, वहीं दूसरी ओर एक क्रिकेटर ऐसा भी है, जिसने क्रिकेट वर्ल्डकप में मैन ऑफ द सीरीज का अवॉर्ड जीता, लेकिन आज दाने-दाने को मोहताज है। जी हां, हम बात कर रहे हैं भालाजी डोमोर की, आज आज पशु चराकर अपनी जीविका चलाने को विवश हैं। उन्हें सम्मानित तो किया गया, लेकिन नौकरी नहीं दी गई, ताकि उससे वो अपनी जीविका चला सकें।

Advertisement

1998 विश्वकप में बनें थे मैन ऑफ द मैच
भालाजी डामोर दृष्टिबाधित क्रिकेट में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, साल 1998 में आयोजित विश्वकप में उन्होने शानदार प्रदर्शन किया था, bhalaji1जिसके लिये उन्हें मैन ऑफ द सीरीज के अवॉर्ड से नवाजा गया था, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने की वजह से उन्हें आज गाय और भैंस चराने पड़ रहे हैं।

Advertisement

शानदार करियर
41 साल के भालाजी डामोर का करियर बेहद शानदार रहा, उन्होने 125 मैचों में 3125 रन बनाये। इसके साथ ही उन्होने 150 विकेट भी हासिल किये, bhalaji11साल 1998 विश्वकप में मैन ऑफ द सीरीज जीतने के बाद उन्होने पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन ने सम्मानित भी किया था, हालांकि उन्हें सिर्फ सम्मानित किया गया, उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली, जिसकी उन्हें सबसे ज्यादा जरुरत थी।

Advertisement

भालाजी डामोर जैसा कोई नहीं
नेशनल एसोसिएशन ब्लाइंड क्रिकेट के वाइस प्रेसिडेंट भास्कर मेहता ने कहा कि भारतीय दृष्टिबाधित टीम में भालाजी जैसा दूसरा कोई ऑलराउंडर नहीं आया। bhalaji2भालाजी की तुलना उस दौर में सचिन तेंदुलकर से की जाती थी। लेकिन उन्हें उनके टैलेंट का कुछ खास फायदा नहीं मिला, उन्होने भले भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया हो, लेकिन आज उनका परिवार दाने-दाने को मोहताज है।

ऐसे कर रहे गुजारा
भालाजी डामोर खेती-बाड़ी और गाय-भैंस चराकर अपने परिवार का गुजारा कर रहे हैं। क्रिकेटर भालाजी गुजरात के साबरकांठा में रहते हैं, bhalaji2उनके परिवार में उनकी पत्नी और एक बच्चा भी है। घर की हालत का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं, कि उनके घर में बर्तन तक नहीं है, साथ ही पूरा परिवार जमीन पर सोने के लिये विवश है।

तीन हजार भी नहीं है परिवार की आमदनी
भालाजी और उनके भाई के पास अरावली जिले के पिपराणा गांव में करीब एक एकड़ पुस्तैनी जमीन है, जिस पर उनका परिवार खेती-बाड़ी करता है, ब्लाइंड होने की वजह से उन्हें दूसरों के खेतों में भी काम नहीं मिल पाता। उनकी पत्नी अनू भी खेती-बाड़ी से लेकर दूसरी जिम्मेदारी संभालती हैं, भालाजी अपनी पत्नी के काम में उनका सहयोग करते हैं। भालाजी ने बताया कि परिवार की महीने की आमदनी तीन हजार रुपये भी नहीं है।

काम नहीं आया कोटा
भालाजी डामोर ने बताया कि 1998 विश्वकप के बाद मुझे उम्मीद थी कि सरकार कोई नौकरी दे देगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, हैंडिकेप्ड खिलाड़ियों का कोटा भी काम नहीं आया।bhalaji41 इस मामले में जब ब्लाइंड पीपुल्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भूषण पुनानी से बात की गई, तो उन्होने कहा कि स्पेशल कैटेगरी वाले खिलाड़ियों पर सरकार ज्यादा ध्यान नहीं देती है, इसी वजह से उन्हें नौकरी नहीं मिली।