प्रणब मुखर्जी ने संघ की लाठी से कांग्रेस को इतना चोट पहुंचाया है कि कांग्रेस छलनी हो गई

सबसे पहला झटका प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस को तब दिया जब उन्होंने विजिटर बुक में ये लिख दिया ”मैं आज यहां भारत मां के महान सपूत डॉ के बी हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने आया हूं.”

New Delhi, Jun 10 : लाठी.. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गणवेश यानि यूनिफार्म का एक हिस्सा है. बड़ी कमाल की चीज है. इस पर कई मुहावरे और कहावत है. एक तो बड़ा फेमस है – उपर वाले की लाठी में आवाज़ नहीं होती लेकिन चोट बहुत आती है. ऐसी ऐसी जगहों पर चोट पड़ती है कि इंसान न तो उसे दिखा सकता है और न ही बता सकता है. पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संघ की लाठी से कांग्रेस को इतना चोट पहुचाया है कि कांग्रेस छलनी हो गई और किसी को पता भी नहीं चला. कांग्रेस और सेकुलर गैंग के मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही है. इसकी वजह ये है कि प्रणब दा ने पांच ऐसी बातें कह दी जिससे कांग्रेस की विचाधारा की नींव हिल गई है.

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वो पांच बातें क्या है उसका जिक्र थोड़ा आगे लेकिन भाषण के बाद कांग्रेस पार्टी के कुछ नेता और कांग्रेसी विश्लेषक और लुटियन मीडिया प्रणब दा के भाषण को ट्विस्ट करने में लग गए हैं. कुछ ये कह रहे हैं कि प्रणब दा ने कांग्रेस की राष्ट्रवाद की अवधारणा को केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया. कुछ ये साबित करना चाह रहे हैं कि प्रणब दा ने संघ को राष्ट्रवाद पर सीख दी. संघ मुख्यालय में ही संघ की क्लास लगाई. तो कुछ इस बात पर खुश हैं दादा ने कांग्रेस पार्टी को नुकसान नहीं पहुंचाया है. लेकिन इनकी कोशिशे कामयाब नहीं हुई. क्योंकि देश बदल गया है. लुटियन-मीडिया दंतहीन-विषहीन हो चुका है. वर्ना, कांग्रेस के स्पिन-डॉक्टर्स तो प्रणब दा के भाषण को संघ के मुख्यालय में जाकर संघ की ऐसी-तैसी करने वाला भाषण साबित कर चुके होते. हकीकत ये है कि प्रणब दा एक माहिर राजनीतिज्ञ हैं. उन्होंने संघ के मुख्यालय में संघ की विचारधारा पर मुहर भी लगा दी और किसी को पता भी नहीं चला.

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सबसे पहला झटका प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस को तब दिया जब उन्होंने विजिटर बुक में ये लिख दिया ”मैं आज यहां भारत मां के महान सपूत डॉ के बी हेडगेवार को श्रद्धांजलि देने आया हूं.” इसमें नोट करने वाले शब्द हैं – भारत मां और महान सपूत. अब तक तो यही बताया गया था कि भारत को मां कहना सांप्रदायिकता है. इसकी वंदना मूर्ति पूजा के बराबर है. कांग्रेस पार्टी और कांग्रेसी इतिहासकार तो अब तक यही बताते रहे हैं कि हेडगेवार एक खलनायक हैं. हिंदूवादी हैं. सांप्रदायिकता के जनक हैं. उन्हें महान सपूत बता कर श्रद्धांजली देना अगर कांग्रेस की विचारधारा है तो बहस ही खत्म हो गई. अगर नहीं, तो कांग्रेसी किस मुंह से कह रहे हैं कि दादा ने संघ को नसीहत दी? दादा ने तो वही बात लिखी जो संघ का हर स्वयंसेवक अब तक कहता और मानता रहा है कि हेडगेबार एक देशभक्त थे. भारत मां के महान सपूत थे.

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दूसरी अहम बात, प्रणब मुखर्जी ने अपने भाषण में भारत को 5000 साल पुरानी सभ्यता बताया. इतना ही नहीं उन्होंने ये कहा कि भारत की सभ्यता 5000 साल से अंखण्डित रहा है.. निरंतर इसका विकास होता रहा है. पांच हजार साल का मतलब है 3000 BC. अगर प्रणब दा ने संघ को राष्ट्र के बारे में ज्ञान दी है है तो कांग्रेसी इतिहासकारों को बताना चाहिए किसी इतिहास की किताब में ये पढ़ाया गया है? किस सेकुलर इतिहासकार ने ने ये माना कि हिंदुस्तान की सभ्यता 3000 बीसी से लगातार बिना टूटे हुए चल रही है? हमने तो यही पढ़ा कि हमारा इतिहास सिधू घाटी सभ्यता से शुरु होती है जिसके बाद आर्य आए. लुटियन मीडिया और सेकुलर गैंग अब तक तो भारत के इतिहास को 5000 साल पुराना बताने वाले लोगों का मजाक ही उड़ाते दिखे. तो प्रणब मुखर्जी के भाषण के बाद इन इतिहासकारों ने क्या ये मान लिया है कि भारत का इतिहास 5000 साल पुराना है? हकीकत ये है संघ ही अकेला संगठन है जो भारत को 5000 साल पुरानी सभ्यता मानता है.

तीसरी अहम बात जो दादा ने नागपुर में कही उससे सेकुलर गैंग का कलेजा छलनी हो गया. प्रणब मुखर्जी ने साफ साफ कहा कि मुगल आक्रांता थे.. आक्रमणकारी थे. उन्होंने बाबर को मुस्लिम इनवेडर बताया जिसने दिल्ली पर कब्जा किया. ये कांग्रेस की विचारधारा कब से हो गई? ये तो सिर्फ संघ की शाखाओं में ही बताया जाता रहा कि बाबर एक लुटेरा था. जिसने तोपों के बल पर भारत पर कब्जा कर लिया. सेकुलर इतिहासकार तो तैमूर लंग के परपोते बाबर को कला-प्रेमी, लेखक व दयालु शहंशाह बताते रहे. बाबर को आक्रमणकारी कहने वालों को तो सांप्रदायिक ही माना जाता रहा है. अब प्रणब दा ने भी संघ की तरह बाबर को आक्रमणकारी बता दिया तो फिर कांग्रेस के स्पिन-डॉक्टर्स किस बात की खुशियां मना रहे हैं?

चौथी बात इसी से जुड़ी है लेकिन नोट करने लायक है. प्रणब दा ने चंद्रगुप्त मौर्य का उल्लेख किया. राजा अशोक का बखान किया लेकिन उन्होंने किसी भी मुस्लिम सुल्तान का नाम नहीं लिया. जबकि, कांग्रेसी तो अब तक यही मानते रहे हैं कि भारत में महान राजा हुए. अशोका द ग्रेट और अकबर द ग्रेट. आप जब भी अशोक के बारे में बात करेंगे तो आपके बीच बैठा कांग्रेसी तपाक से अकबर का नाम ले आएगा. ये कांग्रेसियों की मानसिक दासता की निशानी है. ये उनके चरित्र में शामिल है. सवाल ये है कि दादा ने अशोक का नाम लिया लेकिन अकबर का नाम क्यों भूल गए. हकीकत ये है कि वो लिखे हुए भाषण को पढ़ रहे थे. इसलिए भूलने का सवाल नहीं है. मतलब साफ है उन्होंने जानबूझ कर अकबर का नाम नहीं लिया. अब कांग्रेसी-स्पिन डॉक्टर्स को बताना चाहिए कि क्या प्रणब दा का भाषण कांग्रेस की विचारधारा को संघ मुख्यालय में सामने रखा या फिर संघ के मूल-विचारों को अपनी भाषा में रखा.

पांचवी बात, प्रणब दा ने कहा कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:.. भारत के राष्ट्रवाद का आधार है. कांग्रेस के समर्थक अब ये कह रहे हैं कि प्रणब दा ने संघ की संकीर्ण विचारधारा को आइना दिखाया है. समस्या ये है कि जिन लोगों को हिदुत्व की एबीसीडी नहीं आती, जब वो संघ पर टिप्पणी करते हैं तो इस तरह की गलती स्वभाविक है. हकीकत ये है कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिऩः’ – ये दोनों वाक्य हिंदुत्व का भी आधार है. संघ के सरसंघचालकों के भाषणों में अक्सर ये दो वाक्य सुनने को मिलता है. अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी ने संसद में कई बार इन दोनों वाक्यों की व्याख्या की है. ये भी सच है कि दस साल तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह को कभी ये कहते नहीं सुना. न ही राहुल गांधी ने कभी इसका जिक्र किया है. लेकिन प्रणब दा के इन दोनों वाक्यों के इस्तेमाल को सर्वपल्ली राधाकृष्णण के एक बयान से जोड़ कर देखा जाना चाहिए. इन दोनों वाक्यों के साथ दादा ने अपने भाषण राधाकृष्णण को उद्धत किया. उन्होंने कहा कि सर राधाकृष्षण ने कहा है कि भारत के समाज में जो कुछ अंतर नजर आता है वो सिर्फ सतही है लेकिन भारत एक विशिष्ट सांस्कृतिक इकाई हैं जो एक समान/सर्वनिष्ट इतिहास, समान साहित्य और समान सभ्यता से जुड़ा हैं. अब मेरी नजर में तो ये इतिहास प्राचीन इतिहास ही है. ये साहित्य रामायण, महाभारत, वेद और पुराण आदि ही हैं. और जो सभ्यता है उसे भारतीयता कह लें या फिर हिंदुत्व बात एक ही है.

ये पांच बातें प्रणब दा के भाषण की आत्मा है. उन्होंने ये भी कहा हमारे राष्ट्रवाद का प्रवाह संविधान से होना चाहिए. ये एक सुझाव है क्योंकि प्रणब दा ने तो भारत के इतिहास को 5000 साल पुराना बताया. 2500 साल पुराने स्टेट का उल्लेख किया. इस दौरान न तो संविधान था, न एक व्यवस्था थी और न ही एक झंडा था. इसके बावजूद हिंदुस्तान था. भारत था. समझने वाली बात ये है कि संघ वामपंथियों की तरह संविधान विरोधी नहीं है. संघ संविधान का पालन करने वाला संगठन है.

हकीकत ये है कि कांग्रेस पार्टी ने प्रणब दा को नागपुर जाने से रोकने की हर कोशिश की. प्रणब दा फिर गए. कांग्रेसी नेता प्रणब दा से मिलकर मिन्नतें की. फिर भी प्रणब दा नहीं माने. थक हार कर उन्होंने प्रणब दा से ये गुजारिश की कि नागपुर जाकर कम से कम संघ की तारीफ न करें. प्रणब दा शायद मान गए. यही वजह है दादा ने अपने भाषण में संघ के बारे में एक शब्द नहीं कहा. लेकिन जैसे ही विजिटर्स बुक में डॉ. हेडगेवार को भारत मां का सपूत बताया तो कांग्रेसियों ही हालत पतली हो गई. कांग्रेस पार्टी और उनके समर्थक जितनी भी कोशिश कर लें.. प्रणब दा ने कांग्रेस को संघ की लाठी से ऐसा प्रहार किया है कि कई सदियों तक कांग्रेस छटपटाती रहेगी.

(वरिष्ठ पत्रकार मनीष कुमार के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)