महाभारत के युद्ध में मारे गए थे 1 अरब 66 करोड़ से ज्यादा योद्धा, आखिर इतने शवों का क्या हुआ ?
मानव इतिहास में महाभारत का युद्ध अब तक का सबसे बड़ा युद्ध माना जाता है । ये तो सभी जानते हैं कि इस युद्ध में किस प्रकार से भयंक युद्ध हुआ था, लेकिन क्या कोई ये जानता है कि युद्ध में मारे गए लोगों के शवों का क्या किया गया ।
New Delhi, Jun 27 : कौरवों और पांडवों के बीच हुए महाभारत के युद्ध का वर्णन सभी ने सुना है । इस युद्ध में एक ही परिवार के बीच हुए युद्ध का उस समय पृथ्वी पर मौजूद हर कोई गवाह बना । यहां तक की स्वयं भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण इस युद्ध में मैदान में उतरे और पांडवों के सारथी बने । इस महायुद्ध का परिणाम भी उतना ही भयावह था । युद्ध के बाद विजय भले पांडवों की हुई लेकिन अपने बंधु-बांधु बांधवों का रक्त पात कर उन्हें भी कहां चैन मिलता ।
करोड़ों योद्धाओं का रक्तपात
महाभारत की ये गौरव गाथा सबने सुनी है, लेकिन इसके पीछे की कई विचित्र कहानियां ऐसी भी हैं जो आपके सोच से परे हैं या कहें कि कभी इन प्रश्नों पर आपने गौर ही नहीं किया । आज जानिए वो कथा जो युद्ध खत्म होने के बाद की है । वो कहानी जिसने ना जाने कितनी विधवा औरतों का रूदन सुना, ना जाने कितने अनाथ बच्चों की चीखें भी सुनी हैं । क्या कभी आपने सोचा कि इस युद्ध में मारे गए योद्धाओं के शव का क्या हुआ ।
युद्ध समाप्त होने के बाद क्या हुआ ?
जब पांडवों ने युद्ध जीत लिया तो सभी पांडव श्रीकृष्ण के साथ धृतराष्ट्र और गांधारी से मिलने पहुंचे। यहां धृतराष्ट्र ने भीम को मारने का प्रयास किया, लेकिन श्रीकृष्ण की सूझ-बुझ से उनकी जान बच गई। इसके बाद पांडव गांधारी से मिले, वह भी पांडवों पर क्रोधित थी, लेकिन थोड़ी देर में उनका गुस्सा भी शांत हो गया। इसके बाद महर्षि वेदव्यास के कहने पर युधिष्ठिर सभी को साथ लेकर कुरुक्षेत्र गए।
इतने योद्धाओं का हुआ रक्तपात
यहां पहुंचकर धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर से युद्ध में मारे गए योद्धाओं की संख्या पूछी तो उन्होंने बताया कि- इस युद्ध में 1 अरब, 66 करोड़, 20 हजार योद्धा मारे गए हैं। इसके अलावा 24 हजार 165 योद्धाओं की कोई जानकारी नहीं है। इतनी संख्या में शवों की जानकारी पाकर एक पल को धृतराष्ट्र का भी दिल बैठ गया । सैनिकों के अलावा मरने वालों में ज्यादातर उनके अपने ही परिजन जो थे ।
युधिष्ठिर ने करवाया दाह संस्कार
इस युद्ध में मारे गए योद्धाओं के बारे में जानकर धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर को उन सभी का अंतिम संस्कार करने के लिए कहा । युधिष्ठिर ने कौरवों के पुरोहित सुधर्मा और अपने पुरोहित धौम्य को तथा संजय, विदुर, युयुत्यु आदि लोगों को युद्ध में मारे गए सभी योद्धाओं का शास्त्रोत अंतिम संस्कार करने की आज्ञा दी। इसके बाद सभी गंगा तट पर पहुंचे और मृतकों को जलांजलि दी।