मेरे लिये किसी के टॉप होने से बड़ी खबर है कोमल का मैट्रिक पास करना

कोमल का मैट्रिक पास होना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैसी उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि है उसमें एक लड़की का पढ़ना जंग जीत लेने जैसा है।

New Delhi, Jun 27 : कल बिहार में दसवीं का रिजल्ट आया है. आज मीडिया में हर तरफ उन बच्चों का जिक्र है जो अपने राज्य या अपने जिले के टॉपर हैं. ऐसे में कहलगांव के हमारे पत्रकार मित्र प्रदीप विद्रोही एक अलग ही कहानी लेकर आये हैं. यह कहानी कोमल की है, महादलित जाति की कोमल को वैसे तो सिर्फ 42.4 फीसदी अंक आये हैं. मगर उसकी कहानी इसलिए महत्वपूर्ण है कि 150 साल से बसे भागलपुर के घोघा के मुशहरी टोला की वह पहली मैट्रिक पास है. 50-60 घरों के उस टोले में आजतक कोई चौथी-पांचवी से आगे पढ़ ही नहीं पाया.

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कोमल का मैट्रिक पास होना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जैसी उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि है उसमें एक लड़की का पढ़ना जंग जीत लेने जैसा है. पिता दिहाड़ी मजदूर हैं और मां ईट-भट्ठे पर काम करती है. घर में पांच बहनें और एक भाई है. मां बीमार हुई तो उसके बदले मजदूरी करने कोमल को ईट भट्ठे पर जाना पड़ता है. नहीं तो घर और भाई-बहनों को संभालना, खाना-पकाना. गांव का समाज इतना दंभी और जातिवादी है कि इस टोले के लोगों पर कई किस्म के जातिवादी प्रतिबंध लगाता है. आज भी इस टोले में किसी की मौत होती है तो लोग शवयात्रा नहीं निकाल पाते. लाश को कपड़े में लपेट कर चुपके से ले जाना पड़ता है. इन परिस्थितियों में महादलित समुदाय की एक लड़की अगर पढ़कर मैट्रिक पास कर जाती है तो वह टॉपरों से बड़ी उपलब्धि है.

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बड़ी बहनों ने उतनी पढ़ाई नहीं की, मगर कोमल इन तमाम बाधाओं के बीच लगातार पढ़ती रही. उस परिवेश के बीच जहां हर सुबह यह फिक्र की जाती थी कि शाम के खाने का किसी तरह इंतजाम हो जाये, वह रोज समय निकाल कर स्कूल जाती रही. और जब उसने दसवीं का फार्म भरा तो पता चला कि अपने टोले से इस परीक्षा में शामिल होने वाली वह पहली लड़की है.
फिर प्रदीप विद्रोही जी कोमल को लेकर फिक्रमंद हो गये. प्रभात खबर में उसकी कहानी छापी तो कहलगांव के व्यापारी मदद करने के लिए तैयार हो गये. विद्रोही जब भी उधर से गुजरते एक कॉपी या कलम लेकर जाते और कोमल को दे आते. सीख देते कि पढ़ लो बेटा यही काम आयेगा.

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कोमल को पढ़ने में मन लगता था और वह होशियार भी थी. मगर अपने जीवन की परेशानियों के बीच उसे इतना कम समय मिलता कि वह हमेशा डरती रहती कि पास कर पायेगी या नहीं. उसने कभी नहीं सोचा था कि टॉप करेगी. वह पास करना चाहती थी. और वह पास कर गयी, इतने से ही वह खुश है.
एक ओर जहां सीबीएसई बोर्ड की परीक्षा देने वाले संपन्न घर के बच्चे टेन सीजीपीए लाने के लक्ष्य के साथ पढ़ाई करते हैं, वहीं बिहार जैसे राज्य स्तरीय बोर्ड का महत्व इसलिए है कि कोमल जैसी लड़कियां भी पढ़ लिखकर आगे बढ़ती है. इसलिए कोमल का मैट्रिक पास होना मेरे लिए किसी के सीबीएसई टॉप करने से बड़ी खबर है.

(वरिष्ठ पत्रकार पुष्य मित्र के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)